पंजाबः अब घरों को लौटना मुश्किल बड़ा है
पंजाब में कर्फ़्यू का आज पांचवां दिन रहा. सरकार के दावे और घोषणाएं अपनी जगह मगर अवाम की दुश्वारियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. आम लोगों की ज़िंदगी पटरी से उतरी हुई है. किसानों, व्यापारियों और छोटे-बड़े दुकानदारों को चौतरफ़ा मार पड़ रही है. जाने क्यों पुलिस को कर्फ़्यू पर अमल का एक ही क़ायदा याद है? अभी दो रोज़ पहले कर्फ़्यू में बाहर निकले लोगों पर पुलिस ज्यादती की वीडियो पर सोशल मीडिया में तमाम प्रतिक्रियाएं आईं. मुख्यमंत्री ने ट्वीट करके कहा कि ऐसे पुलिस वालों की जगह पुलिस लाइंस में होगी, मगर पुलिस ने इस ट्वीट से कोई नसीहत ली हो, ऐसा नहीं लगता. जालंधर में ‘संवाद’ के सहयोगी अमरीक की डायरी का आज का पन्ना,
शनिवार, सुबह 4:00 बजेः वेरका रोड पर पुलिस ने 65 साल के एक बुज़ुर्ग करतार सिंह को पीट दिया. वह अकेले अपने कुत्ते को घुमाने के लिए उसी सड़क पर निकल गए थे, जहां अक्सर जाते हैं. नाके पर तैनात पुलिस ने बग़ैर कुछ पूछे-जांचे बुज़ुर्ग की टांगों पर लाठियां बरसाईं और कुत्ते पर भी! दोनों को करहाता पाकर अपने चैनल के लिए रिपोर्टिंग करते हुए एक पत्रकार के हस्तक्षेप करने पर करतार सिंह को पुलिस ने इस शर्त पर बख़्शा कि यह ख़बर वह टीवी पर नहीं दिखाएंगे. पुलिस वालों की अगुवाई कर रहे एक अफ़सर को भरोसा दिलाने के लिए पत्रकार को मौक़े पर ही अपनी फुटेज डिलीट करनी पड़ी.
सुबह 8:00 बजे: गुरदीप भट्टी एक कॉलोनी में राशन की दुकान चलाते हैं. कॉलोनी के क़रीब तीन सौ घरों में ज़रूरी राशन पहुंचाने के इरादे से वह रेलवे रोड पर किराने की थोक मंडी पहुंचे. पुलिस ने 51 साल के इस गुरसिख शख़्स के कंधों पर अंधाधुंध लाठियां चलाईं. ज़रूरतमंदों को राशन पहुंचाने की कौन कहे, अब वह ख़ुद जेरे-इलाज हैं.
11 बजे: ज्योति चौक के क़रीब पुलिस ने एक बाप-बेटे को दनादन थप्पड़ मारे क्योंकि वे घर में बीमार पड़ी मरीज़ की दवाई लेने दिलकुशा मार्केट में नज़र आ गए. क़रीब आधे घंटा बाद एक रिक्शा वाला रामलाल यादव भी पुलिस की लाठियों का शिकार हुआ क्योंकि वह भी अपने पड़ोसी के लिए दवाई लेने आया था.
दोपहर 1:00 बजे: कपूरथला रोड पर एक महिला को पुलिस गालियां देते हुए घर लौटने को कहती है. उनका अपराध यह था कि वह अपने किसी आत्मीय की ख़ातिर जोशी हॉस्पिटल जा रही थीं.
दोपहर 2:30 बजे: झुग्गी-झोपड़ियों वाले एक इलाक़े में सरकारी अमले के तीन घंटे पहले के एलान पर भरोसा करके लोग ‘लंगर’ के इंतज़ार में खड़े मिले. हालांकि देर शाम तक उनका इंतज़ार ख़त्म नहीं हुआ था. बेशक वे इससे भी अन्जान थे कि ऐसे लाइन लगाकर खड़े होने से वे वायरस का भी शिकार हो सकते हैं.
शाम 4:00 बजे: कई तरह की अफवाहें फ़िज़ां में हैं. कई लोग यह भी कहते मिले कि सरकार की सख़्ती कोरोना वायरस से भी ख़तरनाक साबित हुई है. पॉश कॉलोनी अर्बन स्टेट (फ़ेज़-दो) के ललित शर्मा ने पूछ लिया, “क्या यूट्यूब पर यह ‘रामायण’ नहीं देखा जा सकता? बच्चे तक इसे इंटरनेट पर ही देख लेते हैं. आप मीडिया वाले क्यों सरकार के इशारे पर इस बात का प्रचार कर रहे हैं?”
शाम 5:00 बजे: कुछ लोग शराब की होम डिलीवरी लेने और देने पर भी आमादा मिले. उनके हाव-भाव बहुत कुछ बताते हैं. कर्फ़्यू के बीच बहुत सारी चोर गलियां हैं, जो इस आपदा में भी बंद नहीं हुईं. इस मौक़े पर अवाम को अपने प्रतिनिधि से बड़ी उम्मीद लगी हुई है, मगर वे हैं ही कहां? कई तो सिरे से लापता.
इस बीच रेल की पटरियों पर पैदल आते-जाते लोग भी मिले. इनमें से कइयों ने सैकड़ों किलोमीटर का फ़ासला अपने घरों की ओर लौटने के लिए तय किया है. पंजाबी कवि सुरजीत पातर याद आते हैं, ‘अब घरों को लौटना मुश्किल बड़ा है/ मत्थे पर मौत दस्तक कर गई है!!’
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