पंजाबी की मशहूर लेखक दलीप कौर टिवाणा का निधन
अभी-अभी | पंजाबी की जानी-मानी लेखिका दलीप कौर टिवाणा का शुक्रवार की शाम को मोहाली में निधन हो गया. वह 84 साल की थीं. क़रीब 30 उपन्यास, 15 कहानी संग्रहों के साथ-साथ उनकी कई गद्य पुस्तकें पंजाबी के साथ ही हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मराठी, गुजराती, तमिल और कन्नड़ में भी अनूदित होकर छपीं.
पाकिस्तान में भी उनका विशाल पाठक समुदाय है. उनके दो उपन्यासों ‘ऐहो हमारा जीवणा’ (यही है हमारा जीवन) और ‘लंघ गए दरिया’ (गुजर गए दरिया) के संस्करण रिकॉर्ड संख्या में प्रकाशित होते रहे हैं. उनका नाम पंजाबी की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली लेखिकाओं में शुमार है. अमृता प्रीतम उन्हें अपनी बेटी और छोटी बहन मानती-कहती थीं. डॉक्टर टिवाणा पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रही हैं. 1971 में बहुत कम उम्र में उन्हें ‘ऐहो हमारा जीवणा’ के लिए अखिल भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. उनकी रचनाओं में पंजाबी सभ्याचार के तमाम रंग और विसंगतियां मिलती हैं. उनकी आत्मकथा के भी कुछ खंड प्रकाशित हैं. आख़िरी खंड की बाबत उन्होंने कहा था कि इसे उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित किया जाए.
सुश्री दलीप कौर को भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान के साथ ही सन् 2004 पद्मश्री से नवाज़ा गया. हालांकि सन् 2015 में उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया था. तब सरकार को लिखे ख़त में उन्होंने कहा था कि फ़िरक़ापरस्त ताकतें देश में जो माहौल बना रही हैं, उसके विरोध स्वरूप मैं पद्मश्री लौटा रही हूं. डॉक्टर दिलीप कौर टिवाणा ने लिखा था, ‘गौतम बुद्ध और गुरु नानक की धरती पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं. एक संवेदनशील लेखक के तौर पर मुझे यह बर्दाश्त नहीं. यहां हिंसा और नफ़रत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. लेकिन इस तरह के हालात पैदा किए जा रहे हैं. मैं इसका पुरजोर विरोध करती हूं.’
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