अवसान | बासु चटर्जी
फ़िल्म निर्देशक बासु चटर्जी नहीं रहे. 90 वर्ष के बासु दा ने आज सुबह मुंबई में आख़िरी सांस ली.
दस जनवरी 1930 को अजमेर में जन्मे और वहीं पले-बढ़े बासु चटर्जी ने हिन्दी फ़िल्मों की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई. उन्होंने चालीस फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिसमें पांच बांग्ला फ़िल्में भी शामिल हैं. इनमें ‘सारा आकाश’, ‘रजनीगंधा’, ‘खट्टा मीठा’, ‘शौक़ीन’ और ‘चमेली की शादी’ सहित तेरस फ़िल्मों की स्क्रिप्ट भी उन्होंने लिखी. कई फ़िल्मों के डायलॉग लिखे, कुछ फ़िल्में भी बनाई. दूरदर्शन के लिए उन्होंने ‘काकाजी कहिन’ ‘व्योमकेश बख्शी’ और ‘रजनी’ सहित कई सीरियल का निर्देशन किया और टेलीफ़िल्म ‘एक रुका हुआ फ़ैसला’ भी बनाई थी.
अजमेर से बंबई गए बासु चटर्जी का फ़िल्मों में आना काफ़ी देर में हुआ. शुरू के 18 साल तक तो वह ‘ब्लिट्ज़’ में इलस्ट्रेटर और कार्टूनिस्ट के तौर पर काम करते रहे. फ़िल्मों से उनके रिश्ते की शुरुआत ‘तीसरी क़सम’ हुई, जिसमें उन्होंने बासु भट्टाचार्य के सहायक के तौर पर काम किया. सन् 1969 में उन्होंने अपनी पहली फ़िल्म बनाई – ‘सारा आकाश’. बासु दा के मुताबिक राजेंद्र यादव के इस उपन्यास में कथा की जटिलताओं ने उन्हें आकर्षित किया था. ‘सारा आकाश’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का फ़िल्मफेयर अवॉर्ड मिला.
उन्हें उस दौर के मध्य वर्ग की ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभवों पर अलग तरह फ़िल्मों के लिए याद किया जाएगा – ‘रजनीगंधा’, ‘बातों बातों में’, ‘चितचोर’, ‘खट्टा मीठा’, ‘शौकीन’. राजेन्द्र यादव के उपन्यास ‘सारा आकाश’ और शिवमूर्ति की कहानी ‘तिरियाचरित्तर’ पर भी उन्होंने फ़िल्म बनाई है मगर ‘सफ़ेद झूठ’ और ‘मनपसंद’ जैसी उनकी फ़िल्मों की तरह ही ये फिल्में बहुत चर्चा में नहीं आ सकी. गंभीर फ़िल्मों के चाहने वाले उन्हें ‘एक रुका हुआ फ़ैसला’ सरीखी लीक से अलग फ़िल्म के लिए भी ज़रूर याद रखेंगे.
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