इनटेक | ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी की इमारत बचाने के लिए सीएम को लिखा
इनटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फ़ॉर आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज) ने बिहार के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर ख़ुदा बख़्श लाइब्रेरी की इमारत के सामने के हिस्से और कर्ज़न रीडिंग रूम को ध्वस्त होने से बचाने में हस्तक्षेप का अनुरोध किया है. प्रदेश सरकार ने पटना में एलिवेटेड फ़्लाईओवर बनाने के लिए लाइब्रेरी के एक हिस्से को अधिग्रहित करने का प्रस्ताव किया है.
इनटेक के पत्र में कहा गया है कि इस प्रस्ताव पर अमल से पटना ही नहीं, दुनिया की ऐतिहासिक विरासत का नुकसान होगा. 130 साल पुरानी इस लाइब्रेरी के मुख्य भवन से अलग कर्ज़न रीडिंग रूम का नाम भारत के पहले वायसराय रहे लॉर्ड कर्ज़न के नाम पर है. सन् 1903 में वह इस लाइब्रेरी में आए थे और इसके विस्तार के लिए फ़ंड दिया था.
देश भर में संस्कृतिकर्मियों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों ने सरकार के इस प्रस्ताव का विरोध किया है. इस पर अमल रोकने की मांग को लेकर हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया गया है.
ख़ुदा बख़्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी 29 अक्टूबर 1891 को शुरू हुई. लाइब्रेरी के संस्थापक ख़ान बहादुर ख़ुदा बख़्श खान ने 4,000 पांडुलिपियों के साथ इसकी शुरूआत की. इन पांडुलिपियों में 1,400 पांडुलिपियां उन्हें अपने पिता मौलवी मोहम्मद बख़्श से विरासत में मिली थीं. अभी इस लाइब्रेरी के संग्रह में अरबी, फ़ारसी और तुर्की की दुर्लभ पांडुलिपियों के साथ ही 21 हज़ार पांडुलिपियों सहित ढाई लाख किताबें और राजपूत और मुग़ल शैली के तमाम चित्र शामिल हैं.
‘तारीख़-ए-ख़ानदान-तिमूरिया‘ की दुनिया की एकमात्र पांडुलिपि भी इस संग्रह में है. बाइस सालों में तैयार इस पांडुलिपि में अकबर के दरबार के चित्रकारों की बनाई 132 पेंटिंग और जहांगीर का लेखन भी दर्ज है. सन् 2011 में यह पांडुलिपि यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ़ वर्ल्ड रजिस्टर‘ में भी दर्ज की गई. शाहनामा, बादशाहनामा और दीवान-ए-हाफ़िज़, महाराजा रंजीत सिंह की सैन्य रणनीति के दस्तावेज़ भी यहाँ की धरोहर हैं.
ख़ुदा बख़्श खान ने अपने पिता की ख़्वाहिश पूरी करने के लिए लाइब्रेरी की दोमंज़िला इमारत बनवाई और लाइब्रेरी पटना के लोगों को समर्पित की थी. उन्होंने इसे ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी नाम दिया था और उनकी इस ख़िदमत का मान रखने के लिए लोगोंं ने इसे ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी की पहचान दी. औपचारिक रूप से लाइब्रेरी के नाम से पहले उनका नाम तो बाद में जुड़ा.
सन् 1969 में केंद्र सरकार ने संसद अधिनियम के ज़रिए इस लाइब्रेरी को राष्ट्रीय महत्व स्थल का दर्ज़ा दिया था. इसका संचालन संस्कृति मंत्रालय के अधीन होता है.
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