इतवार | मनोज छाबड़ा की पेंटिंग और प्रताप सोमवंशी की कविताएं
“चित्रकला वह कविता है, जिसे देखा जाता है और कविता वह चित्रकला है, जिसे महसूस किया जाता है।”
-लियोनार्डो दा विंची
यह दो कला रूपों, अभिव्यक्ति के अलग-अलग माध्यमों का सौंदर्य भरा, आत्मिक, अर्थ-भरा संवाद है. इस संवाद के ताप और खूबसूरती को बयान करती 31 कृतियां दिल्ली के आईफैक्स की बी गैलरी की दीवारों पर सजी, देखी और सराही गईं. चित्रकार मनोज छाबड़ा के चित्रों की आधारभूमि प्रताप सोमवंशी की नज़्में, शेर हैं. इस काव्य-रंग अनुष्ठान का नाम ‘इतवार’ है. प्रताप सोमवंशी के कविता संग्रह का नाम ‘इतवार छोटा पड़ गया’ के मानीखेज़ लफ़्ज़ों ने मनोज छाबड़ा के हाथों से दिलकश रंगत पाई है.
यह कविता और पेंटिंग के बीच का सुंदर अंतरसंबंध है, जिसे ‘इंटरमीडियलिटी’ के तहत देखा जा सकता है, जहां विभिन्न कला रूप आपस में संवाद स्थापित करते हैं. भाषा के दृष्टिकोण से देखें तो कविता, भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति का अमूर्त रूप है, जबकि पेंटिंग दृश्य रूप में विचारों का ठोस रूप प्रस्तुत करती है. इस प्रदर्शनी में प्रेक्षकों से कविता और पेंटिंग का अर्थपूर्ण संवाद बनता है.
रोलां बार्थ कला रूपों की ‘पॉलिसेमी’ की चर्चा करते हैं, जो दर्शकों के लिए बहुअर्थीय अनुभव प्रदान करती है. पेंटिंग के ‘पिक्टोरियल टर्न’ और कविता के ‘लिंग्विस्टिक टर्न’ के बीच सांस्कृतिक संवाद कला और साहित्य दोनों को समालोचनात्मक रूप से समृद्ध करते हैं, विशेष रूप से बौद्धिक और सामाजिक संदर्भों में. प्रदर्शनी की इस समृद्धि का हिस्सा दर्शकों को भी हासिल होता है.
सांस्कृतिक पाठ के रूप में दोनों कला रूप विचार और भावनाओं के अद्वितीय लेकिन समानांतर माध्यम बनते हैं. कविता भाषाई सौंदर्य, ध्वनि, और प्रतीकों के माध्यम से समय और स्थान का विस्तार करती है, जबकि पेंटिंग दृश्य सौंदर्य और रंग-रूपों के माध्यम से ठोस संवेदनाओं को मूर्त करती है. ‘इतवार’ प्रदर्शनी के चित्रों को देखते हुए दर्शक अपनी तरह का सौंदर्य और सांस्कृतिक पाठ की निर्मिति और बहुआयामिता को स्पष्ट करते हैं. इन चित्रों को देखते कविता का रूपक और पेंटिंग का दृश्य रूप दर्शक या पाठक में ‘एस्थेटिक रेस्पॉन्स’ को प्रभावी ढंग से उत्पन्न करते हैं. दोनों ही अपनी विशिष्टता के कारण गहन अनुभव उत्पन्न करती हैं. कविता और पेंटिंग का यह सम्मिलन कला को न केवल बौद्धिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध करता है, बल्कि सौंदर्य, अनुभव और अभिव्यक्ति की सीमाओं का भी विस्तार करता है. इसका परिणाम यह हुआ है कि कला का प्रभाव बहुस्तरीय और अंतर्दृष्टिपूर्ण हो गया है. कह सकते हैं की मनोज छाबड़ा के यह चित्र बिना शब्दों की कविता है और इन चित्रों के साथ टांकी गई काव्य पंक्तियां बिना रंगों एवं रेखाओं के चित्र.
मनोज छाबड़ा की यह तस्वीरें क्यूबिज्म शैली से प्रेरित प्रतीत होती है. इसमें आकृतियों और वस्तुओं को ज्यामितीय आकारों और सरल, अमूर्त रूपों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जो क्यूबिज्म की विशेषता ही है. उज्ज्वल रंगों और परतों का उपयोग गहराई और जटिलता जोड़ता है, जबकि यह यथार्थवाद के बजाय अमूर्तन पर ध्यान केंद्रित करता है. इसमें आधुनिक अमूर्त कला के तत्वों को भी अनुभव किया जा है, जो रंग और आकार के माध्यम से भावनाओं या किसी कहानी को व्यक्त करती है.
मनोज छाबड़ा इस श्रृंखला के चित्रों को साल 2021 से रच रहे हैं. प्रदर्शनी में लोई और कबीर से जुड़े तीन चित्र भी लगे हैं. ‘लोई’ प्रताप सोमवंशी का लिखा नाटक है. मनोज छाबड़ा के कबीर-लोई चित्र ‘लोई’ नाटक के हिंदी, उर्दू और नेपाली संस्करणों के कवर पेज के चित्रों के मूल रूप हैं.
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