टेनिस | विदा की बेला में भावुक एंडी

गुरुवार की रात को आंखें सिर्फ़ एंडी मरे की नहीं भरी थीं, बल्कि विम्बलडन के सेंटर कोर्ट में मौजूद बहुत से लोगों की आंखें नम थीं. ये इक्कीसवीं सदी के टेनिस खेल के ‘फैबुलस फ़ोर’ के एक और नगीने की कोर्ट से विदाई की उदास शाम थी. दिल की उदासी थी कि आंखों में नमी के रूप में रह-रहकर बाहर आती जाती थी.

एंडी मरे अपने भाई जेमी मरे के साथ विम्बलडन के सेंटर कोर्ट पर अपना मैच खेल रहे थे. इस मैच में ऑस्ट्रेलियाई जोड़ी जॉन पीअर्स और रिंकी हिजीकाता ने उन्हें 7-6(8-6), 6-3 से हरा दिया था. अब एंडी मरे अपने लंबे शानदार कॅरिअर का समापन कर रहे थे. उनकी आंखें आँसुओं से भरी थीं.

अपने विदाई वक्तव्य में वह कह रहे थे-
‘यह (सन्यास) कठिन है. मैं जीवन भर खेलना चाहता हूँ. मुझे इस खेल से प्यार है. इस खेल ने मुझे इतना कुछ दिया है. साल दर साल इतने पाठ पढ़ाए हैं जिनका मैं शेष सारे जीवन में उपयोग कर सकता हूँ. क्योंकि मैं रुकना नहीं चाहता, इसलिए ये बहुत कठिन है.’

और यह उनके उनके जीवन का सच था. टेनिस उनके लिए खेल भर नहीं था, बल्कि बचपन की त्रासदियों से बचने का एक माध्यम भी था. बचपन में उन्होंने न केवल अपने परिचित द्वारा स्कूल में नरसंहार को अपनी आंखों से देखा, जिसमें उनके 16 साथी और एक शिक्षक मारे गए थे, बल्कि अपने माँ और बाप का अलगाव भी देखा था.

बात साल 2012 की है. इंगलैंड में यही बसंत था. यही सीज़न था. यही हरी घास थी. यही विम्बल्डन प्रतियोगिता थी. उस दिन भी मरे की आंख में ऐसे ही पानी भरा था. वे अपना पहला ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल हार जो गए थे.

लेकिन यहीं से एक नए सितारे का उदय हुआ था जिसने इंग्लिश टेनिस को बदल देना था. एंडी मरे उस साल फ़ाइनल में चार सेटों में फेडरर से हार गए थे. लेकिन एक महीने बाद ही उन्होंने उन्हीं फेडरर को हराकर लंदन ओलंपिक 2012 का स्वर्ण पदक जीत लिया. ये एक स्वीट रिवेंज भर ही नहीं था, बल्कि ‘बिग थ्री’ को फैबुलस फ़ोर में बदलने और अपने शानदार कॅरिअर को शिखर पर पहुंचाने का आगाज़ भी था.

उसी साल यूएस ओपन के फ़ाइनल में अपने कॅरिअर का पहला ग्रैंड स्लैम जीता. यहां उन्होंने फ़ाइनल में नोवाक जोकोविच को पांच सेटों हराकर शानदार जीत हासिल की. 2013 में पुनः लंदन आए और इस बार सीधे तीन सेटों में नोवाक जोकोविच को हराकर पहला विम्बलडन और कॅरिअर का दूसरा ग्रैंड स्लैम जीता. ये एक ऐतिहासिक जीत थी जिसने इंग्लैंड का 77 सालों का इंतज़ार ख़त्म किया था. वे 1936 में फ्रेड पैरी के बाद पहले ब्रिटिश विजेता थे.

उन्होंने अपने खेल कॅरिअर में तीन ग्रैंड, दो ओलंपिक गोल्ड, 2015 में डेविस कप, और कुल 46 ए टी पी खिताब जीते. फेड, राफा और नोल ने मानक इतने ऊंचे कर दिए हैं कि ये उपलब्धियां साधारण लग सकती हैं. लेकिन इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि इन तीन के होते हुए भी अपने कॅरिअर की इन ऊंचाइयों पर मरे जैसा खिलाड़ी ही पहुंच सकता था. और ये भी कि उसे अगर कूल्हे और कमर की चोट ने परेशान नहीं किया होता, तो उपलब्धियां कुछ और ज़्यादा होती और निश्चित ही नोल, राफा और फेड की उपलब्धियों की क़ीमत पर.

वे मूलतः बेसलाइन के डिफ़ेंसिव खिलाड़ी थे जो शानदार ग्राउंड स्ट्रोक्स लगाते. लेकिन उतने ही शानदार ड्राप शॉट्स भी खेलते. मैदान को बहुत ही चपलता से कवर करने वाला ये खिलाड़ी बेहतरीन पूर्वानुमान कर तीव्र गति से रिटर्न कर प्रतिद्वंद्वी को हतप्रभ कर देता. यही उनके खेल की विशेषता थी.

क्रिकेट और फ़ुटबॉल के दीवाने देश में टेनिस की क़िस्मत बदल देने और 21वीं सदी पहले ढाई दशक के टेनिस इतिहास में बिग थ्री फेड, राफा और नोल के वर्चस्व को सफल चुनौती देने वाले एकमात्र खिलाड़ी के रूप में उन्हें टेनिस इतिहास में हमेशा याद किया जाता रहेगा.

खेल मैदान से विदा.

(पुनश्चः वे मिक्स्ड डबल्स में रादुकाने के साथ खेलकर अपने कॅरिअर का समापन करेंगे)


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