ऑटो की आवाज़ तुमने सुन ली थी. इसीलिए मेरे घंटी बजाने से पहले तुम दौड़कर गेट तक आ चुकी थीं. धूप चटख़ नहीं थी, पर तुम्हारा चेहरा एकदम लाल था. ‘आइए’ कहकर तुम्हारे मुस्कराने ने जैसे वहाँ ढेर सारे फूल बखेर दिए थे. गेट खोलने के लिए उठे दाएँ हाथ ने गोलार्द्ध बनाकर क्षण भर को जैसे कोई बन्दनवार टाँगनी चाही थी. यूँ चहक और [….]