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वामिक़ जौनपुरी | भूका बंगाल नज़्म होने से पहले का वह ख़ौफ़नाक ख़्वाब
वामिक जौनपुरी के ख़्वाब के तजुर्बे बहुत दिलचस्प भी हुआ करते. उन्होंने कई ऐसे ख़्वाबों के बारे में लिखा है जो हर रोज़ रात को वहाँ से शुरू होते, जहाँ सुबह आँख खुलने पर छूट गए थे. ‘भूका बंगाल’ के नज़्म होने के पहले कलकत्ते के होटल में भी उन्होंने ख़्वाब देखा था – एक ख़ौफ़नाक ख़्वाब.
इसके बारे में ख़ुद वामिक़ जौनपुरी की क़लम से.
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रंगमंच इब्राहिम अल-क़ाज़ी की बेमिसाल शख़्सियत का बस एक पहलू
इब्राहिम अल-क़ाज़ी भारतीय रंगमंच में उस किंवदंती की तरह है जो हमारी पीढ़ी तक दंतकथाओं के रास्ते पहुंचे हैं. ठीक वैसे ही जैसे भारतीय मिथकों और महाकाव्यों का पारायण किए बिना हम उनका अधिकांश जानते हैं या जानने का दावा करते हैं. इसी तरह हमारी पीढ़ी के लोगों तक अल-क़ाज़ी साहब अनेक स्रोतों से पहुंचे थे.
संस्कृतिकर्मी अमितेश कुमार का लेख.
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फ़ोटो स्टोरी | बहुरूपिया और उनकी कला
बहुरूपिया लोक कलाकार हैं. अभिनेता तो ख़ैर हैं ही, अपने डायरेक्टर, कोरियोग्राफर, मेकअपमैन और स्क्रिप्ट लेखक भी ख़ुद ही होते हैं. मनोरंजन की बदलती हुई दुनिया में उनकी कला का दायरा सिमटता गया है मगर वे सामने हों तो आप प्रभावित हुए बग़ैर नहीं रह सकते.
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वीडियो | ख़तरे में बहुरूपिया
स्मृति के पन्नों में उनके कितने ही रूप बसे हैं – हँसाते तो कभी डराते, चौंकाते तो कभी अनायास श्रद्धा भाव जगाते रूप. वक़्त के साथ बहुत कुछ बदला तो बहुरूपिया भी बदल गए. उनकी कला वही है, जो पुरखों ने उन्हें सौंपी. बस, क़द्रदान बदल गए. महामारी और ज़िंदगी की बंदिशों से ये लोग भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. घर चलाने के लिए वे मजदूरी से लेकर दुकानदारी तक कर रहे हैं.
यह वीडियो रिपोर्ट कोविड के कहर से पहले की है.
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किताब | पुरखों की रहगुज़र पर छूटे हुए क़दमों के निशान
ऐसे दौर में जब तरक़्क़ीपसंद ख़्याल और उन पर अमल की ज़रूरत हमेशा से ज़्यादा लगती हो और जब लिखने-पढ़ने और सोचने के पैमाने ज़माने की सहूलियत से तय होते हों, ऐसी किताबों की उपयोगिता और महत्व क़ाबिल-ए-ग़ौर लगता है.
ज़ाहिद ख़ान की नई किताब पर कंवल.
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एक मिनट का यह वीडियो ‘संवाद न्यूज़’ का परिचय है.
साथ ही हमारे लेखक साथियों और आप पाठकों का भी.
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