रवींद्रनाथ टैगोर ने ताज को ‘वक़्त के गाल पर ठहरा हुआ आंसू’ कहा, नेहरू ने ताज के सामने खड़े होकर आइज़ेनहॉवर से कहा था, “आप एक महान राष्ट्र के नेता हैं… कभी-कभी आप जैसी शख़्सियत का सम्मान करने से बड़ा भी कुछ होता है – ऐसा कुछ जो इंसान के दिल को सुकून बख़्शे, तसल्ली दे.”
शकील बदायूंनी का ख़्याल था – इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है. तो क़ैफ़ी आज़मी ने कहा – चाँदनी और ये महल आलम-ए-हैरत की क़सम/ दूध की नहर में जिस तरह उबाल आ जाए, और बक़ौल परवीन शाकिर – हर नए चाँद पे पत्थर वही सच कहते हैं/ उसी लम्हे से दमक उठते में उन के चेहरे/ जिस की लौ उम्र गए इक दिल-ए-शब-ज़ाद को महताब बना आई थी!/ उसी महताब की इक नर्म किरन/ साँचा-ए-संग में ढल पाई तो/ इश्क़ रंग-ए-अबदिय्यत से सर-अफ़राज़ हुआ.
दुनिया भर में कितने ही विशेषणों के साथ याद किया जाने वाला ताजमहल यों तो सफ़ेद संगमरमर का है मगर दिन भर बदलते मौसम के साथ इसकी छटा भी बदली ही रहती है. और हर छवि का देखने वाले पर ख़ास असर होता है.
फ़ोटो स्टोरी| तन्मय भगत