बसंत का उत्सव किसी ख़ास धर्म-संप्रदाय या जाति-बिरादरी से जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि हर शख़्स के लिए यह बराबर की अहमियत रखता है. और ऐसा सिर्फ़ इसलिए कि यह ऋतु परिवर्तन का पर्व तो है ही, मन को भी इतनी ख़ुशी, उल्लास और जोश भर देता है कि हर किसी के [….]
चचा रामगोपाल के कंधे पर टिका सिर मैंने उठाया तो उनका चेहरा धुंधला नजर आया. तब मुझे लगा कि मेरी आंखों में आंसू तैर रहे हैं. वह कह रहे थे, ‘अब तो चचा के गले लग जाओ बेटा, मतदान हो चुका. जो होना होगा वह पेटी में बंद हो चुका है. समझो, चुनाव ख़त्म हुआ.’ [….]
सीताराम गारखेल की कहानी बंटवारे के मारे बेशुमार कुनबों से बहुत अलग नहीं है. भरा-पूरा कारोबार पीछे छोड़कर उनके पिता अपना कुनबा लेकर जब हिंदुस्तान आए तो उनके पास पुराने दिनों की स्मृतियां थीं और परिवार के भरण-पोषण लायक़ कमाने के ज़रिये की तलाश. [….]
रामपुर की दोमहला रोड से गुज़रते हुए एक गली के मुहाने पर लगा पत्थर यक़ीनन ऐसे लोगों को हैरत में डाल सकता है, जो इस शहर के बाशिंदे नहीं हैं. और जो इस सड़क को मिले नाम की कहानी से वाक़िफ़ नहीं. वजह इस सड़क का नाम ही है – बेतुक रोड. [….]
हर शहर की तरह बरेली में भी पान खाने वालों के लिए कितनी ही दुकानें हैं, मगर पुराने शौकीनों के अपने पसंदीदा ठिकाने हैं. अब अपने महबूब शायर वसीम बरेलवी को ही ले लीजिए, वह अपने घर में हों या शहर में कहीं और, पान की तलब लगने पर वह एक ही शख़्स को याद करते हैं – सोबरन प्रसाद. [….]