जैसे अयोध्या में बसती है दूसरी अयोध्या/ सरजू में बहती है दूसरी सरजू/ वैसे ही पागलदास में था दूसरा पागलदास/ और दोनों रहते थे अलग-अलग और उदास (बोधिसत्व की कविता ‘पागलदास’ का अंश) एक और इलाहाबाद रहता है इलाहाबाद के भीतर. प्रयागराज के [….]
(जोश मलीहाबादी की आत्मकथा ‘यादों की बरात’ में दर्ज यह यात्रा-संस्मरण रेलगाड़ी के पहले और 13 मील के छोटे-से सफ़र की याद भर नहीं है, यह उस दौर के लखनऊ का ऐसा मंज़र-नामा भी है, जो लखनवी तहज़ीब, शहर के भूगोल, वहाँ के लोगों और खान-पान के सलीक़े की बानगी पेश करता है. ऐसा ब्योरा जो शायद थोड़े से लोगों की स्मृति में अब भी बचा हुआ हो. -सं ) [….]