(‘आख़िरी चट्टान’ मोहन राकेश का यात्रा वृतांत है. गोआ से कन्याकुमारी तक की यह यात्रा उन्होंने दिसम्बर 1952 और फ़रवरी 1953 के बीच की थी. बकौल लेखक, ‘यात्रा से लौटते ही मैंने यह पुस्तक लिख डाली थी. उन दिनों हर चीज़ की छाप मन पर ताज़ा थी. पूरे अनुभव को लेकर मन में एक उत्साह भी था, इसलिए कहीं-कहीं अतिरिक्त भावुकता से अपने को नहीं बचा सका.’ यहां उसी यात्रा के दो पड़ाव…) [….]