वे बचपन के दिन हुआ करते थे जब हम भी चौंसठ ख़ानों की बिसात पर शह और मात के खेल के दीवाने होते थे. पर इससे पहले कि हम बिसात के मोहरों की चालों के उस्ताद हो पाते, उन चालों को सिखाने वाले उस्ताद पिता को सरकार ने किसी एक स्थान पर जमने न दिया और उनका साथ न मिलने के कारण हम शतरंज के खेल के उस्ताद बनते-बनते रह गए. [….]
लेखक संतोष सिंह और आदित्य अनमोल द्वारा अंग्रेज़ी में लिखी गई ‘दी जननायक कर्पूरी ठाकुर: वॉइस ऑफ़ दी वॉइसलेस’ एक प्रेरक जीवनी है, जो कर्पूरी ठाकुर की साधारण शुरुआत से लेकर एक परिवर्तनकारी राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित होने की यात्रा दर्ज करती है. यह किताब उनके समाजवादी आदर्शों, दूरदर्शी नीतियों और बिहार के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में [….]
बहुत सालों से यह सिलसिला जारी है. इन दोनों बच्चियों के जन्म से भी पहले से. अगर हम लोग शहर में हैं तो हमें शाम को साथ बैठना ही है. अरुण जी के घर पर रोज़ घंटे-दो घंटे एक दूसरे के घर परिवार की, दुख दर्द की बातें सुन लेना, सुना देना. चाय-पानी के साथ तरह- तरह की बहसों-चर्चाओं में उलझे रहना. बाद में धीरे-धीरे घर के अन्य लोग भी हमारी बैठकी में [….]
(‘एक मस्त फ़कीरः नीरज’ गोपालदास नीरज की सर्जना के तरीक़े और उनकी फ़िक़्र को बेहतर ढंग से समझने की कुंजी भी है. इस किताब में डॉ. प्रेम कुमार ने उनकी शख़्सियत के कितने ही रंग संजोये हैं, उनके कृतित्व को समझने में मददगार तमाम पहलुओं पर विस्तार से और बेबाकी से बातचीत की है. नीरज से उनका लंबा साक्षात्कार हम यहां तीन कड़ियों में छाप रहे हैं. -सं [….]
(गोपालदास नीरज ने लंबे समय तक फ़िल्मों के गीत भी लिखे, इन गीतों में उन्होंने ख़ूब प्रयोग किए, नए-नए रूपक और बिम्ब भी रचे. उनकी फ़िल्मी ज़िंदगी के बारे में प्रेमकुमार से उनकी यह बातचीत ‘एक मस्त फ़क़ीरः नीरज’ से. –सं) [….]
साल के आख़िरी हफ़्ते में पीछे मुड़कर देखने और गुज़रे दिनों का लेखा-जोखा मीडिया की पुरानी रवायत है, पिछले कुछ सालों से किताबें भी इसका हिस्सा बन गई हैं. इस बीत रहे साल में किताबों की हमारी दुनिया यक़ीनन समृद्ध हुई है, संवाद न्यूज़ के दफ़्तर की अलमारी में भी कई और नई किताबों को जगह मिली है. इसकी कोई ख़ास तरतीब तो नहीं है, और न ही [….]
यह सफ़रनामा तीसरी सदी में अधूरे छूट गए एक सफ़र को पूरा करने की ऐसी दास्तान है, जिसमें तमाम संस्कृतियों, सभ्यताओं, जाति, नस्ल, धर्मों और फ़लसफ़े की विविधताओं वाली छवियाँ हैं और उन्हें एक सूत्र में बाँधने वाले तत्वों की तलाश भी. मोइन मीर का यह सफ़रनामा [….]
हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले का मुख्यालय नारनौल. शहर से क़रीब सात किलोमीटर दूर ढोसी आश्रम. बरेली में बैठकर भी मेरे लिए अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीं है कि नए साल की सुबह ढोसी की पहाड़ियों पर कितनी ख़ुशनुमा होगी. हो सकता है, कोहरा लपेटे जनवरी की कड़कड़ाती ठंड में चोटी की ओर चढ़ती उन सर्पाकार सीढ़ियों पर कम लोग दिखें, लेकिन उनकी गर्मजोशी [….]