आठ बजे अन्नप्राशन की पूजा शुरू होनी थी, मगर बिद्यापुर से आते-आते ख़ुद पंडित दिजेन भट्ट को देर हो गई. बालीकोरिया से बिद्यापुर का फ़ासला तीन-चार किलोमीटर का ही है, मगर दिजेन बाबू को अपने जुगाड़ी के साथ बालिकोरिया पहुंचने में ही साढ़े आठ या शायद नौ से ऊपर हो गए. [….]
जैसे अपने यहां, मने पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्रह्मभोज की शुरुआत गूला खोदने से होती है, ठीक वैसे ही यहां भी खाना बनाने के वास्ते आग दहकाने के लिए गूले खोदे गए, फिर आग जलाने से पहले इनकी पूजा हुई. अग्नि पूजा कहीं न कहीं हम सारे भारतीयों को एक-सी तपिश देती है. [….]
आगरा | प्रयागराज की रंग-संस्था ‘बैकस्टेज’ के कलाकारों ने कल शाम को दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट परिसर में ‘पक्षी और दीमक’ का मंचन किया. प्रवीण शेखर निर्देशित इस नाटक का सार ज़्यादा सुख बटोरने के लालच में अपना सब कुछ गंवा बैठने वाले बुद्धिजीवी और उनका आलस्य है. [….]
बालीकोरिया पहुंचते-पहुंचते शाम होने लगी थी. दिसंबर-जनवरी के दिनों में तो देश के इस हिस्से में तीन-साढ़े तीन बजे तक शाम होने लगती है और पांच-साढ़े पांच बजे तक रात हो जाती है. मेरी सास मेरी पत्नी के साथ पहले ही दिल्ली से यहां आ पहुंची थीं. [….]
कटे पहाड़ों को देखते रहने से उपजी शर्म और जाम से जूझते हुए हम आगे बढ़े. आगे हमें ब्रह्मपुत्र पार करनी थी. पहले इसे पार करने के लिए लोहे का पुल था, मगर अब नया पुल बन गया है. बनावट में यह काफी-कुछ अयोध्या में सरयू पार करने के लिए बने पुल जैसा है [….]
हम आज गुवाहाटी से नलबाड़ी के रास्ते में हैं. नलबाड़ी में मेरी साली की ससुराल है और कल सुबह उसके आठ महीने के बेटे के अन्नप्राशन का उत्सव है. हम सब उसी उत्सव में शरीक होने के लिए जा रहे हैं. [….]
काजीरंगा से लौटते वक़्त हमने तय किया कि ‘चिरांग नेचर ट्रेल’ का भी चक्कर लगाएंगे. हम काजीरंगा के कोहोरा वाले प्रवेश द्वार पर रुके थे, जहां से चिरांग वाला रास्ता तक़रीबन 25-30 किलोमीटर दूर था. [….]
(भारत में 15वां हॉकी विश्व कप 13 से 29 जनवरी के बीच खेला जाएगा. भुवनेश्वर और राउरकेला को इसकी मेज़बानी मिली है. हॉकी विश्व कप की शुरुआत सन् 1971 में हुई. भारत अब तक केवल एक बार ही चैंपियन बन सका है [….]
हिंदुस्तानी सिनेमा में यथार्थवाद की बुनियाद रखने वाले बिमल रॉय ऐसे फ़िल्मकार हुए, जिन्हें ‘स्कूल’ का दर्जा हासिल है और जो जीते-जी किंवदंती बन गए. हिंदी की महान फ़िल्मों की कोई सूची उनकी फ़िल्मों के ज़िक्र के बग़ैर पूरी नहीं होती. [….]
कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, पत्रकार, स्तंभकार, संपादक, स्क्रिप्ट राइटर और नौकरशाह, ये सभी भूमिकाएं किसी एक शख़्स की हों तो कोई भी पूछ सकता है – अच्छा, कितने कमलेश्वर! [….]
उर्दू अदब की दुनिया में ख़ालिद जावेद की पहचान ऐसे अफ़सानानिगार की है, जिन्होंने अपने लेखन से नई लीक बनाई है, जो गहरी अंतर्दृष्टि वाले और ख़ामोशी से अपने काम में जुटे रहने वाले अदीब हैं. पढ़ाई के दिनों में फ़लसफ़ा उनका विषय था, और उसके बाद ज़िंदगी के मायने की अनथक तलाश का अहम् साधन. [….]