पहली बोलती हुई फ़िल्म ‘आलमआरा’ 1931 में आई, और उसी साल ब्रजलाल वर्मा के निर्देशन वाली ‘शकुंतला’ भी रिलीज़ हुई. शकुंतला के गीत पंडित राधेश्याम कथावाचक ने लिखे. कथावाचन और पारसी थिएटर पर अपनी गहरी छाप छोड़ने वाले पंडित राधेश्याम के फ़िल्मी सफ़र का यह आग़ाज़ भी था. [….]
सन् 1931 में आई ब्रजलाल वर्मा के निर्देशन वाली फ़िल्म ‘शकुंतला’ के गीत पंडित राधेश्याम कथावाचक ने लिखे. यह उनके फ़िल्मी सफ़र का आग़ाज़ भी था. फ़िल्मी दुनिया में जाकर कथावाचक की पहचान राधेश्याम बरेलवी हो गई. [….]
बरेली | नाटक दृश्य काव्य है. और इसका उद्देश्य तरह-तरह की वेदनाओं से क्लांत दर्शकों का मनोरंजन है – यह देव, दानव और मानव सभी के लिए आमोद-प्रमोद का आसान साधन है. नाट्यते अभिनयत्वेन रूप्यते- इति नाट्यम्. हमारा लोक कितनी ही तरह की कहानियां रचता और सुनाता आया है [….]
रुड़की | देश के सबसे बड़े तकनीकी उत्सवों में से एक ‘कॉग्निज़ेंस फ़ेस्ट’ 24 से 26 मार्च तक यहां भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में आयोजित होगा. आईआईटी के विद्यार्थियों की ओर से हर साल किए जाने वाले प्रतिभा, कौशल और रचनात्मकता के तकनीकी उत्सव के इस आयोजन का देश भर में तकनीकी के अध्येताओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है. [….]
बात साल 2017 की है. उस वक़्त अचानक मेरी नौकरी छूट गई थी. ख़ुद को बदहवासी से बचाए रखने के लिए अपनी पसंद का जो कुछ पढ़ सकता था, पढ़ने लगा. यह मेरा आजमाया हुआ नुस्ख़ा था क्योंकि ऐसी परिस्थितियों में दो-चार होता रहा हूं. [….]
आज़मगढ़ | चौथे आज़मगढ़ इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल के तीसरे और आख़िरी दिन बुधवार कैफ़ी आज़मी की शख़्सियत पर बनी फ़िल्म ‘कैफ़ीनामा’ और ‘72 हूरें’ सहित पांच फ़िल्मों का प्रदर्शन हुआ. इस मौक़े पर शबाना आज़मी भी शारदा टॉकीज़ आईं. [….]
लोक कलाओं के पास कथाओं का अथाह समंदर है. हर मौक़े, घटना और वस्तु के लिए कथा है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ये कथाएं नए संस्करण में पहुँचती हैं. नई पीढ़ी इस कथा में कुछ नया जोड़ देती है. हमारी लोक कलाओं में अपने पूर्वजों को याद करने की परम्परा है. [….]
लोकश्रुति में शेरगढ़ के भाँड़ों की बहुत अहमियत रही है. भाँड़ का मतलब यों तो विदूषक या मसख़रा ही होता है मगर भूरे यानी ग़ुलाम हसन को इस लफ़्ज़ से ही परहेज़ है. ज़माने ने भाँड़ लफ़्ज़ कुछ इस तरह बरता है कि अब उन्हें यह अपमानजनक लगता है, [….]
लोकनाट्य और मनोरंजन की पुरानी परंपराओं में भाँड़ों का शुमार भी हुआ करता था. और वे हाव-भाव की नक़ल करने वाले नक़्क़ाल भर नहीं थे, उनके फ़िकरों और उनकी ज़बान की लज़्ज़त लोगों को लुभाती भी थी. लखनऊ के भाँड़ों पर श्री जुगुल किशोर का यह लेख सन् 1996 में इलाहाबाद के कैंपस थिएटर की पत्रिका में छपा था, [….]
मरयम मीरज़खानी पहली ईरानी महिला थीं जिन्हें साल 2014 में गणित के क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान फिल्ड्स मैडल मिला था. उनका जन्म 3 मई, 1977 को ईरान के तेहरान शहर में हुआ था. जुलाई, 2017 में 40 वर्ष की उम्र में ब्रेस्ट केंसर के कारण मरयम का देहांत हो गया. [….]
आख़िर क्या होता है खेल को ‘अलविदा’ कहना. खेल से ‘सन्यास’ लेना. इसे कोई खेल प्रेमी भला कहां समझ पाएगा. और यह इसलिए मुमकिन नहीं होता कि खेल के मैदान से उनका एक चहेता रुख़सत होता है, तो दो और खिलाड़ी उसकी जगह भरने के लिए आ जाते हैं. और प्रशंसक पुराने को भूलकर नए के साथ हो लेते हैं. [….]
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन और शोध का केंद्र. उतरते अंधेरे के बीच की उस नाकाफ़ी रौशनी में खुले में कुर्सी पर बैठकर कविता सुनाते नरेश सक्सेना. दो घंटे तक एकाग्रभाव से दत्तचित्त होकर उनका काव्यपाठ सुनते प्राध्यापक, रचनाकर्मी और शोधछात्र. [….]