जीवन बहुत बार एक ही मौक़ा देता है. लेकिन कई बार क़िस्मत आप पर मेहरबान होती है और आपको दूसरा मौक़ा भी देती है. अब ये व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो इन मौक़ों को किस तरह से लेता है. क़िस्मत ने चंद्रकांत पंडित को एक दूसरा मौक़ा दिया और इस बार उन्होंने चूक नहीं की. [….]
ज़माने में बहुतेरे लोग ऐसे हैं, जिनके लिए ‘उमराव जान’ या ‘गमन’ की ग़ज़लें ही शह्रयार की पहचान हैं. यों ख़ुद शह्रयार अपनी इस पहचान पर ख़ुश लेते थे मगर अदब, इतिहास, इंसान और अपने दौर के मसाइल पर उनकी निगाह बराबर रहती. [….]
कमलेश्वर शह्रयार को ख़ामोश शायर मानते हैं. एक ऐसा ख़ामोश शायर कि वह जब इस कठिन दौर व ख़ामोशी से जुड़ता है, तो एक समवेत चीख़ती आवाज़ में बदल जाता है. बड़े अनकहे तरीके से अपनी ख़ामोशी भरी शाइस्ता आवाज़ को रचनात्मक चीज़ में बदल देने का यह फ़न शह्रयार की महत्वपूर्ण कलात्मक उपलब्धि है. [….]
ग़ालिब के ऐसे तमाम मुरीद हैं, जिनको शिकायत है कि जिस-तिस के ऊल-जुलूल अशआर ग़ालिब के नाम से मंज़रे-आम पर दिखाई देते हैं और बहुतेरे तो उन पर यक़ीन भी कर लेते हैं. तो इन मुरीदीनों को मालूम हो कि यह सिलसिला तो ग़ालिब की ज़िंदगी से ही चला आ रहा है. [….]
रियासत के दिनों में हरम में रहने वालों की ज़िंदगी बाहर से जितनी चकाचौंध भर लगती थी, क़रीब से देखने पर उनकी आत्मा उतनी ही उदास, ख़ामोश, बेबस और तारीकी में डूबी हुई मिलती. ‘द बेग़म एण्ड द दास्तान’ ताक़त और वैभव के ख़ौफ़ के बीच ख़ुद की ख़ुशियों-आकांक्षाओं को पीछे धकेलकर ज़िंदगी गुज़ार देने वालों की ख़ामोशी को ज़बान देती है. [….]
कैसा तो समय आ गया है, मुहावरे तक उल्टे होते जा रहे हैं. अब यह मुहावरा ही ले लीजिए, ‘दूर के ढोल सुहाने’. सब जानते ही हैं इसका मतलब. लेकिन अब ये मुहावरा उलट गया है! अब दूर वाले ढोल में भले मीन-मेख निकाल ले कोई, पास बजते फटे ढोल भी सुहाने लगने लगे हैं. [….]
यात्रा, सिर्फ़ वह नहीं होती बंधु
जो एक शहर से दूसरे शहर की जाती है.
यात्रा वह भी है, जब हम यात्रा से लौट कर, [….]
एक ख़बर | वह 28 मई 2022 का दिन था. पेरिस के स्टेडियम फ्रांस में चैंपियंस ट्रॉफ़ी का फ़ाइनल लिवरपूल और रियाल मेड्रिड के बीच खेला जा रहा था. उस मैच में रियाल ने लिवरपूल को 1-0 से हराकर 14वीं बार चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीती थी. [….]
कल शाम एक महफिल में शरीक होने का मौक़ा मिला. वहीं एक गाना पहली बार सुनने को मिला, ‘…और जिसको डांस नहीं करना/ वो जाके अपनी भैंस चराए.’ झमाझम संगीत के बीच ये बोल समझने में भी काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी. समझ न पाया कि यह गाना है कि धमकी! [….]
रामपुर के अहल-ए-ज़बान और तहज़ीब के क़द्रदान लोगों के बीच यह क़िस्सा पुराना है कि पाकिस्तान के किसी शहर में सड़क से गुज़रते हुए दो रामपुरी लोगों ने एक शख़्स को रामपुरी टोपी पहनकर आते देखा तो सोचा कि दिखने में तो हमवतन मालूम होता है, क्यों न मिलकर दरयाफ़्त कर लें. [….]
रूहेलखंड की क्रांति तारीख़ का ऐसा पन्ना है, जो किताबों में तो महफ़ूज़ रहा मगर अवाम के ज़ेहन से कब का बाहर हो चुका है. अंग्रेज़ी हुकूमत के दौर में ग़ुलामी की जज़ीरों से आज़ादी की छटपटाहट के साथ ही उसे हासिल करने के जज़्बे और बहादुरी के क़िस्सों का इतिहास भर नहीं है यह [….]
प्रयागराज। शहर की रंग-संस्था ‘बैकस्टेज’ के कलाकारों ने मंगलवार को स्वराज विद्यापीठ में ‘पक्षी और दीमक’ का मंचन किया. प्रवीण शेखर निर्देशित इस नाटक का सार ज़्यादा सुख बटोरने के लालच में अपना सब कुछ गंवा बैठने वाले बुद्धिजीवी और उनका आलस्य है. [….]