इस साल तीन ऐसे हादसे हुए, जिनमें ज़हरीली शराब पीने से तमाम लोगों की जान चली गई – कुशीनगर, सहारनपुर और फिर बाराबंकी में. मजदूर तबक़े के लोग ही इन हादसों का शिकार होते हैं, इस बार भी हुए. [….]
चंबल की पहचान अकेले डाकुओं-बागियों से नहीं, इस सरजमीं पर कई क्रांतिकारी भी पैदा हुए, जिन्होंने देश की आज़ादी की लड़ाई में अपनी जान तक दे दी. यह धरती आज भी पूरी तरह से बंजर नहीं है. इस इलाक़े के तमाम नौजवान फ़ौज में शामिल हैं. [….]
आमतौर पर गांवों में घर पर ताले डालने का रिवाज़ नहीं है. कुंडी लगाने भर से काम चल जाता है ताकि जानवर घर में घुसकर नुकसान न करने पाएं. दरवाज़े पर ताले का एक ही मतलब होता है- लंबी यात्रा. बुंदेलखंड के गांवों में तमाम वर्षों से ताले वाले घर आम हो गए हैं. [….]
ताले, तालीम और तहज़ीब की याद दिलाने वाले इस शहर को जाने किसकी नज़र लगी कि अब इसे दंगे और उपद्रव से जोड़कर पहचाना जाने लगा है . [….]