संकेत भये इकठौर सबै, बिच मोहन सोहत हैं बलराम-कन्हाईं, नंदलाल सखा सब आय रहे, संकेत करै संकेतन ठांई. ढप झांझ बजाय कें होरी सुनाय के, लट्ठ खायबे कूं नंदगईयां बरसाने धाए, सिर पै पगड़ी तन पै झगुली, कटि फैंट गुलाल कसी, पिचकारी कंधन ढाल सजाय संभार, लगे जंग जीतन की तैयारी. नंद भौंनहिं के जगमोहन में, इकठौर भये सब फाग खिलारी कर, ढाल हिलाय कें गाय बजाय के अनुमति मांगत नंद अगारी. नंदगांव के हुरियारे ऐसे ही पद गाते हुए नाचते-ठिठोली करते बुधवार को कान्हा की ससुराल बरसाना होली खेलने पहुंचे. बरसाना और नंदगांव की लठामार होली में हुरियारों-हुरियारिन की एक जैसी वेषभूषा और ढाल की वजह से समानता नज़र आती है, फिर भी अगले रोज़ यानी बृहस्पतिवार को नंदगांव में हुई होली का भाव अलग है. समाज गायन के दौरान रसिकजन ये भाव प्रदर्शित करते हैं. पद गायन के अनुसार कृष्ण ग्वाल सखाओं के साथ बरसाना से राधारानी और सखियों के साथ होली खेल कर बिना नेग (होली का उपहार) दिए नंदगांव लौट आए. इस पर बरसाना की ग्वालिनें नंदबाबा के पास फगुवा मांगने पहुंचीं. गोपी फगुवा मांगन आइ, कियौ जुहार, नंद जू कौं भीतर भवन बुलाई. इस दौरान नंदभवन में नृत्य-गायन होता है. मेवे और मिठाइयों से स्वागत किया जाता है और केसर, अरगजा, अबीर-गुलाल से होली खेली जाती है. केसर के रंग से भरे मिट्टी के घड़ों को एक-दूसरे पर डालकर दोहरे अर्थ वाली शब्दावली का प्रयोग कर हंसी-ठिठोली की जाती है. प्रेम पगी गालियां दी जाती हैं. इसके बाद फगुवा दिया जाता है. इसी परंपरा के निर्वहन के लिए बरसाना की लठामार से अगले दिन ग्वालबाल सखी वेष में होली खेलने नंदगांव आते हैं. सखी भाव का प्रदर्शन करने के लिए हुरियारे चुन्नी बांध कर आते हैं.
फ़ोटो | के.के.अरोड़ा