भीमबेटका के शैलचित्रों को देखते हुए एकबारगी यक़ीन नहीं होता कि इनमें से कुछ तीस हज़ार तो कुछ दस हज़ार साल पुराने हो सकते हैं. हालांकि इन्हें देखते हुए चित्रकारों के बारे में कल्पना करना सचमुच रोमांचित करता है. विन्ध्य की उन पहाड़ियों, जंगल और गुफाओं में कभी हमारे पुरखे रहा करते थे – तीन लाख साल पहले! गुफाओं की दीवारों पर बनी ये तस्वीरें उनकी डायरी हैं और स्केचबुक भी, और जीवन और सभ्यता के विकास को समझने के महत्वपूर्ण सूत्र हैं. कोयला, लाल पत्थर, पत्तियों और चूने के रंगों वाले चित्रों में बहुसंख्य सफ़ेद और गेरुआ हैं, कहीं-कहीं पीला, हरा और नारंगी रंग भी. पशु-पक्षी, शिकार, युद्ध और उत्सव की ये तस्वीरें आदिमानवों के जीवन के राग-रंग की झलकियां हैं. भला हो डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर की जिज्ञासा का, जिसकी वजह से हम इन गुफाओं और चित्रों के बारे में जान सके.
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