गुरूवार , 25  अप्रैल  2024

उन्होंने नाटक लिखे, गीत लिखे, मजमून लिखे और फ़िल्मों के लिए भी लिखा, मगर दुनिया भर में उनकी पहचान रामायण है – राधेश्याम रामायण. रामायण जिसकी भाषा और शैली इसे गेय बनाती है और जिसके चलते हिन्दी पट्टी के गांव-चौपाल पर जुटने वाले लोग इसके शैदाई हुए और रामलीला के मंच से लेकर ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड तक इसका जादू छाया. और ख़ुद पंडित राधेश्याम कथावाचक जिस विशिष्ट तरीके से इसे सुनाते, वह तर्ज राधेश्याम बन गया. यों उनके तमाम नाटकों में ‘वीर अभिमन्यु’ की ख्याति भी कम नहीं.
बरेली के बिहारीपुर मोहल्ले में जहां उनका जन्म हुआ था, वहां बना राधेश्याम भवन अभी है हालांकि ख़स्ता हालत में. उनका छापाख़ाना और घर के पास ही उनके नाम पर खुला डाकख़ाना भी अब नहीं रहा. अलबत्ता उनकी डायरी, कुछ पाण्डुलिपियां, हारमोनियम, कुछ प्रशस्ति-पत्र और स्मृति-चिन्ह सहेजकर उनके परिवार वालों ने रख छोड़े हैं. ये तस्वीरें उन्हीं के संग्रह की हैं.

फ़ोटो | प्रभात

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