शनिवार , 27  जुलाई  2024

अतीत में आवाजाही करने की लत ने सोमड़ा बाज़ार का सफ़र करा ही दिया. हुगली ज़िले में हुगली नदी के किनारे बसा सोमड़ा बाजार अपने टेराकोटा मंदिरों, ज़मींदारों की हवेलियों के खंडहरों और अपनी हरे-भरे खेतों के लिए पहचाना जाता है. सोमड़ा बाजार स्टेशन से कुछ ही दूरी पर सुखारीया गांव में 25 रत्नों वाला टेराकोटा का आनंद भैरवी मंदिर है. सन् 1813 में बनकर तैयार हुआ यह मंदिर स्थानीय ज़मींदार वीरेश्वर मित्र मुस्तफी ने बनवाया था. यह मंदिर वास्तुकला का अत्यंत दुर्लभ नमूना है. कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल में अब केवल पांच ऐसे मंदिर रह गए हैं. इस मंदिर परिसर के दोनों ओर आटचाला और पंचरत्न शैली में निर्मित बारह मंदिर हैं.आनंद भैरवी मंदिर के कुछ टेराकोटा पैनल अब भी अच्छी हालत में हैं. मंदिर से सटा हुआ बड़ा तालाब इसके सौन्दर्य की अभिवृद्धि करता है. आनंद भैरवी मंदिर के पास ही भग्न अवस्था में राधाकुंज है, जो कभी मित्र मुस्तफी परिवार की हवेली हुआ करता था. इस परिवार के वंशज अब कोलकाता में जा बसे हैं, और दुर्गा पूजा के दिनों में ही उनका यहां आना होता है.
फ़िल्मकार मृणाल सेन ने अपनी फ़िल्म ‘अकालेर संधाने’ (१९८०) के कुछ दृश्य इसी सुखारीया के आनंद भैरवी मंदिर और राधाकुंज में फ़िल्माए थे. सुखारीया यात्रा के दौरान राधाकुंज को अंदर से नहीं देख पाया क्योंकि इसकी देखभाल के लिए तैनात मोशाय कहीं बाहर गए हुए थे.
इस गांव में मित्र मुस्तफी परिवार के बनवाए कई और मंदिर भी हैं – हरसुंदरी मंदिर, निस्तारिणी मंदिर. लेकिन यहां का सबसे प्राचीन मंदिर है, सन् 1785 में बना सिद्धेश्वरी मंदिर. लगता है कि कई बार की मरम्मत से इस मंदिर की प्राचीनता का नुकसान हुआ है. दूसरे मंदिरों की मुक़ाबले यह मंदिर साधारण है, लेकिन इसका ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व अलग है. बताते हैं कि इस मंदिर के किनारे से गुज़रते हुए लोक माता रानी रासमणि को दक्षिणेश्वर के प्रसिद्ध काली मंदिर के निर्माण की आध्यात्मिक प्रेरणा मिली थी.
यहां के लोगों का मुख्य पेशा है – खेती बाड़ी और तांत की साड़ियां बुनना. बुनकर दिहाड़ी मजदूर हैं. यहां एक ईंट भट्टा है, जहाँ झारखंड से आए मजदूर काम करते मिले और पकी हुई ईंटों के बीच खेलते उनके बच्चे, अपनी अलग दुनिया में…कुछ खंडहरों पर सूखते कपड़े इस बात की गवाही देते हैं कि वे जगहें पूरी तरह खंडहर तो नहीं हैं.
आलेख-फ़ोटोः एस.संतोष

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