डीन जोंस | शानदार खिलाड़ी और बिंदास कमेंटेटर

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व क्रिकेटर डीन मर्विन जोंस उर्फ़ प्रोफेसर डीनो ने 59 साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया. एकदम अचानक से. मानो अचानक से लोगों को चकित करना उनका शगल हो. याद कीजिए, ऑस्ट्रेलिया टीम का 1994 का दक्षिण अफ्रीका का दौरा. आठ मैचों की सीरीज़ में ऑस्ट्रेलिया तीन मैचों के मुक़ाबले चार मैचों से पीछे थी. आख़िरी मैच में डीन जोन्स को टीम में नहीं चुना गया. और इस सीरीज़ का सातवां मैच उनके कॅरिअर का अंतिम मैच सिद्ध हुआ. उन्होंने सफ़ेद गेंद के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अचानक अलविदा कहकर इसी तरह दुनिया को चौंका दिया था.

यूं तो वो लाल गेंद से भी कम नहीं खेले. उन्होंने कुल 52 टेस्ट मैच खेले. पर वे सफ़ेद गेंद के चैंपियन खिलाड़ी थे. उनका शुमार उन खिलाड़ियों में है, जिन्होंने अस्सी के दशक में सफ़ेद गेंद के एक दिनी क्रिकेट की सूरत बदल दी. आजकल क्रिकेट खिलाड़ी मैदान पर जो रंगीन चश्मा पहनते हैं वो दरअसल उनकी ही देन है. वे बहुत आक्रामक खिलाड़ी थे. गेंद पर ताबड़तोड़ प्रहार, विकेटों के बीच तीव्र गति से दौड़ और मैदान में शानदार फ़ील्डिंग के लिए जाने जाते रहे. शुरुआती दिनों में ऐसा करने वाले चुनिंदा खिलाड़ियों में वह भी थे. 1989 से 1992 तक लगातार चार साल तक सफ़ेद गेंद के नंबर एक खिलाड़ी रहे.

विक्टोरिया के कोबर्ग में 23 मार्च 1961 को जन्मे दाएं हाथ के बल्लेबाज़ और ऑफ़ स्पिनर डीन जोन्स ने अपने अंतरराष्ट्रीय कॅरिअर की शुरुआत एक दिनी क्रिकेट से जनवरी 1984 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ की और कुछ ही दिन बाद मार्च 1984 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध टेस्ट मैच खेले. उनके टेस्ट मैच कॅरिअर का समापन श्रीलंका के ख़िलाफ़ सितंबर 1992 में और एक दिनी क्रिकेट में दो साल बाद यानी अप्रैल 1994 में दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ हुआ. इस तरह 11 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कॅरिअर के दौरान उन्होंने 52 टेस्ट मैच खेले, 11 शतक और 14 अर्द्ध शतकों की सहायता से 3631 रन बनाए और एक विकेट भी लिया.

और एक दिनी क्रिकेट में 164 मैचों में 7 शतक और 46 अर्द्ध शतकों की सहायता से 44.61 की औसत से 6068 रन बनाए और तीन विकेट भी लिए. टेस्ट मैच में दो शानदार मैराथन पारियों के लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे. 1986 में चेन्नई में भारत के विरुद्ध अनिर्णित मैच में भीषण गर्मी और उमस भरे वातावरण में 210 रनों की पारी और 1989 में एडिलेड में वेस्टइंडीज के विरुद्ध 216 रनों की कॅरिअर की सर्वश्रेष्ठ पारी.

खेल से सन्यास लेने के बाद उन्होंने कोचिंग और कमेंट्री में हाथ आज़माया. और कमेंट्री में तो उन्होंने बहुत नाम कमाया. इस समय भी वह स्टार स्पोर्ट्स के लिए आईपीएल की ऑफ़ ट्यूब कमेंट्री के लिए ही मुम्बई में थे. वह अपनी खरी-खरी बातों के लिए जाने जाते थे. शायद इसीलिए वे अक्सर विवादों में रहते.

दो विवादों के लिए वह बेहद चर्चित रहे. 1993 में वेस्टइंडीज के विरुद्ध सिडनी में कर्टली एम्ब्रोस से उन्होंने सफ़ेद रिस्ट बैंड उतारने के लिए कहा. इससे क्रुद्ध होकर एम्ब्रोस ने पूरी सीरीज़ में ज़बरदस्त गेंदबाज़ी की. उस मैच में उन्होंने 32 रन पर पांच विकेट लिए. अगले एडिलेड मैच में 10 विकेट और आख़िरी पर्थ मैच में प्रसिद्ध स्पैल किया जिसमें एक रन देकर सात विकेट लिए. इसके बाद 2006 में कमेंट्री करते हुए दक्षिण अफ़्रीकी बल्लेबाज़ हाशिम अमला को आतंकवादी कहने के कारण उनकी बहुत आलोचना हुई.

जो भी हो, एक दिनी क्रिकेट के अपने समय के सबसे शानदार खिलाड़ी के रूप में, सफेद बॉल क्रिकेट में नए ट्रेंड्स लाने वाले खिलाड़ी के रूप में और एक शानदार और बिंदास कमेंटेटर के रूप में वह हमेशा याद किए जाएंगे.

अलविदा प्रोफेसर डीनो!


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