क्रिकेट | गाबा के मैदान पर भारतीय खिलाड़ियों ने तिरंगा लहराया

गाबा के मैदान पर तिरंगा लहाराया तो दुनिया भर में हिंदुस्तानी टीम का डंका बज उठा. यह भारतीय टीम की शानदार जीत है, जो भारतीय क्रिकेट के इतिहास में ही नहीं बल्कि क्रिकेट प्रेमियों की स्मृति में भी हमेशा के लिए दर्ज हो गई है.

इतिहास हमेशा से ही इस बात की ताईद करता रहा है कि अजेय समझे जाने वाले मज़बूत से मज़बूत क़िले और दुर्ग भी कभी न कभी ध्वस्त हो ही जाते हैं, ढह जाते हैं और जीत लिए जाते हैं. और ये भी कि लड़ाइयां हमेशा श्रेष्ठ योद्धाओं और शस्त्रों के बल पर ही नहीं जीती जातीं बल्कि जोश, ज़ज्बे और भावनाओं के उद्वेलन से भी जीती जाती हैं. आज जब ब्रिस्बेन के गाबा में ऑस्ट्रेलिया के अजेय दुर्ग को भारतीय क्रिकेट टीम अपने श्रेष्ठ योद्धाओं के बग़ैर भी तीन विकेट से ढहा रही तो इतिहास के इस सबक को ही पुनः याद करा रही थी. निसन्देह, यह भारतीय टेस्ट क्रिकेट की सबसे शानदार जीतों में से एक है, जो हमेशा याद रखी जाएगी.

1947-48 के पहले भारतीय क्रिकेट के पहले दौरे से लेकर इस मैच के पहले तक ब्रिस्बेन में खेले गए 6 मैचों में से भारत एक भी मैच नहीं जीत सका था. याद कीजिए भारतीय टीम का 1967-68 के दौरे का तीसरा टेस्ट मैच. वह आज के दिन 19 जनवरी को शुरू हुआ था. उस टेस्ट मैच में भारत ने टॉस जीतकर पहले फ़ील्डिंग का निर्णय लिया. चौथी पारी में उसे 394 रनों का लक्ष्य मिला और एम.एल. जयसिम्हा की 101 रनों की शानदार पारी के बावजूद 39 रन पीछे रह गई. उसने चौथी पारी में 355 रन बनाए. यह गाबा में खेला गया भारत का दूसरा मैच था.

इससे पहले 1947-48 के पहले दौरे में गाबा में खेला गया मैच भारत पारी से हार चुका था. लेकिन 1967-68 के दौरे में गाबा में तीसरे टेस्ट मैच में 19 जनवरी को शुरू हुए उस संघर्ष को आज ठीक 52 साल बाद जीत में बदल कर अंजाम तक पहुँचाया. इतना ही नहीं पिछले 32 सालों में किसी भी देश की टीम गाबा के मैदान में ऑस्ट्रेलिया को हरा नहीं हरा सकी थी. आख़िरी बार 1988 में वेस्टइंडीज़ की टीम ने ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से हराया था.

चार टेस्ट मैचों की इस श्रृंखला का आगाज़ भारत के लिए इससे खराब नहीं हो सकता था. पहली पारी में 53 रनों की बढ़त के बावजूद भारतीय टीम दूसरी पारी में मात्रा 36 रनों पर ढेर हो गई और मैच आठ विकेट से हार गई. इस मैच के बाद कप्तान विराट कोहली वापस स्वदेश लौट चुके थे. ऐसे में टीम की कमान अजिंक्या ने संभाली. भारत ने पलटवार किया. 195 रनों पर ऑस्ट्रेलिया को आउट करके 112 रनों की शानदार कप्तानी पारी की बदौलत 131 रनों की बढ़त ली और फिर दूसरी पारी में 200 रनों पर आउट कर 70 रनों का लक्ष्य दो विकेट खोकर आसानी से हासिल कर सीरीज 1-1 से बराबर कर उसे रोचक बना दिया.

तीसरे टेस्ट में भारतीय खिलाड़ियों ने जीवट का परिचय दिया और मैच ड्रा करा लिया. इस मैच में पहली पारी में 94 रनों से पिछड़ने के बाद चौथी पारी में 407 रनों का लक्ष्य था जीतने के लिए भी और चार सेशन सर्वाइव करके ड्रॉ करने के लिए भी और वो भी उस स्थिति में जब भारतीय खिलाड़ी घायल हों. लेकिन घायल पंत 97 और बिहारी हनुमा 23 और अश्विन 39 ने जीवट और धैर्य का परिचय देते हुए पारी को न केवल संभाला बल्कि मैच ड्रा करा दिया. खेल समाप्ति पर भारत की चौथी पारी का स्कोर 334 रन 5 विकेट पर था. इस पारी में उसने 131 ओवर खेले.

अब सीरीज का परिणाम चौथे टेस्ट के परिणाम पर निर्भर था. जब भारतीय टीम गाबा आई तो श्रीहीन हो चुकी थी. उसका नायक तो पहले ही घर लौट चुका था. दीगर बात है कि उसके नायब ने इस कमी को महसूस नहीं होने दिया और कुशल नेतृत्व दिया. लेकिन गाबा तक आते-आते तमाम खिलाड़ी घायल हो चुके थे और संघर्ष से बाहर थे.

आप कल्पना कर सकते हैं कि विराट, बुमराह, उमेश यादव, रविन्द्र जडेजा, हनुमा बिहारी और अश्विन के बिना भारतीय टीम कैसी थी. यह कल्पना से परे था कि भारतीय तेज आक्रमण में सिराज़, सैनी, शार्दूल और नटराजन चारों को मिलाकर कुल 8 टेस्ट मैचों के अनुभव था. लेकिन जब आपके दिल में जीत का जज्बा हो तो आप दुनिया बदलने की ताकत रखते हैं. भारतीय खिलाड़ियों ने एकदम यही किया. पहली पारी में लड़खड़ाने के बाद भी शार्दूल और सुंदर की शानदार बल्लेबाजी और दूसरी पारी में पंत, पुजारा और सुंदर की शानदार बल्लेबाजी और निसन्देह सिराज़ की शानदार गेंदबाजी की बदौलत एक इतिहास रच दिया.

जब आपमें हौसला होता है तो विपक्ष का हर दाँव ख़ाली जाता है. ऑस्ट्रेलियाई टीम के पक्ष में जो बात जाती है, वो यह कि गाबा की पिच की अतिरिक्त तेज़ी और अतिरिक्त उछाल से विपक्षी टीम को सामंजस्य बिठा पाना बहुत कठिन होता है. पर भारतीय खिलाड़ियों ने यह भी कर दिखाया.

जो भी हो, यह बात तय है कि सही और असली क्रिकेट पाँच दिनी क्रिकेट ही है. हाँ, क्रिकेट के छोटे फॉर्मेट ने खेल की शास्त्रीयता को चाहे जितना नुकसान पहुंचाया हो पर एक बात ज़रूर है कि उसने टेस्ट क्रिकेट को परिणामोन्मुखी बनाया है, जिसके कारण अब ज़्यादातर मैचों में परिणाम आ रहे हैं और उनमें रुचि बनी हुई है.

इस यादगार मौक़े पर भारतीय टीम को बधाई तो बनती है. जीवट मुबारक.

कवर| ट्विटर से साभार


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