राफ़ेल नडाल | जन्मदिन पर चैंपियन के खेल की यादें

राफ़ेल नडाल टेनिस के सार्वकालिक महानतम खिलाड़ियों में से एक हैं. महानतम इसलिए नहीं कि आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं बल्कि इसलिए भी कि वे टेनिस के खेल को इस क़दर प्रभावित करते है कि उनका नाम टेनिस खेल का पर्याय बन जाता है.
वे खेल में प्रतिद्वंद्विता की नई परिभाषा गढ़ते हैं, संघर्ष के नए पैमाने और सफलता के नए प्रतिमान. 22 ग्रैंड स्लैम और दो ओलंपिक गोल्ड सहित 92 एकल ख़िताब ही उनकी असाधारण उपलब्धियों से बड़ी उपलब्धि अपने असाधारण खेल से अपने चाहने वाले लाखों-करोड़ों प्रशंसकों का दिल जीत लेना था, जिनके लिए वे टेनिस के सबसे बड़े खिलाड़ी हैं. जिनके दिलों पर ही उनकी असाधारण सफलताओं के चरण चिह्न ठीक वैसे ही अंकित हैं जैसे फ़िलिप कार्टियर एरीना के सेंटर कोर्ट पर अंकित हैं.
वे बड़े विजेता ही नहीं बल्कि महान प्रतिद्वंद्वी भी थे. उन्होंने अपने खेल से सिर्फ़ अपने लिए सफलता ही अर्जित नहीं की बल्कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के खेल की सीमाओं को भी अन्यतम विस्तार दिया. उन्होंने केवल 22 ग्रैंड स्लैम भर नहीं जीते बल्कि 08 ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल हारे भी.
राफ़ा पर पहली बार 2014 में लिखा था. उसके बाद से लगातार लिखना हुआ और अब तक कुल दस पोस्ट लिखी गई. उनसे होकर गुज़रना दरअसल उनके खेल को बार-बार देखना है. उनकी हार की कसक और जीत की ख़ुशी को महसूस करना है. उनके रैकेट और बॉल के मिलन से निकले संगीत को सुनना है.
आज अपने चैंपियन का जन्मदिन है. चैंपियन को जन्मदिन मुबारक.
1.
10 जून 2014. फ़्रेंच ओपन.
ये आंसू भी अजीब शै हैं. ख़ुशी में छलक जाते हैं और ग़म में बहने लगते हैं. 8 जून को रोलाँ गैरों की लाल मिट्टी पर समकालीन लॉन टेनिस के इतिहास के दो महान खिलाड़ी फ़्रेंच ओपन का फ़ाइनल मैच खेलने उतरे होंगे तो न तो जोकोविच को और न ही राफ़ा को ये पता होगा कि उनकी आँख से आँसू छलकेंगे या बहेंगे. वे दोनों तो अपना-अपना नाम खेल इतिहास में लिखने आए थे. यदि जोकोविच चारों ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सात महान खिलाड़ियों की लिस्ट को और बड़ा करना चाहते थे तो नडाल निश्चित ही रोलाँ गैरों पर जीत की सूची को कुछ और लम्बा करने की चाहत लिए मैदान में उतरे होंगे. साढ़े तीन घंटे बीतते-बीतते राफ़ा हाथ में मस्केटियर ट्रॉफ़ी उठाए थे. ट्रॉफ़ी से चिपकी उँगलियों पर लगे टेप उनकी असाध्य परिश्रम की कहानी बयाँ कर कर रहे थे और उनके भीतर सफलता के असीम आनंद से फूटे सोते की कुछ बूंदे आँखों से छलक-छलक बाहर आ जाती थी. आँखों से छलका ये पानी खारा नहीं शहद जैसा मीठा था जिसे राफ़ा ही नहीं बल्कि उन जैसी सफलता पाने वाला हर शख़्स जानता होगा. कुछ क्षणों बाद जोको की आँख भी नम थीं ठीक राफ़ा की तरह. फ़र्क इतना-सा था कि इस पानी में सारे समन्दरों का खारापन सिमट आया था जो उनके ग़म को डूबने नहीं देता था बल्कि फिर-फिर दिल से उबारकर चेहरे पर ले आता था. सच में अजीब शै है ये आँसू.
2.
14 मई 2017. मैड्रिड ओपन.
यूँ कहने को तो ये मैच साल भर चलने वाले एटीपी मास्टर्स टूर्नामेंट्स में से एक और साल के दूसरे ग्रैंड स्लैम फ़्रेंच ओपन से ऐन पहले होने वाले मेड्रिड ओपन टेनिस प्रतियोगिता का रूटीन सेमीफ़ाइनल मैच भर था. उस लिहाज़ से कोई बड़ा मैच नहीं था. लेकिन किसी मैच को बड़ा कोई इवेंट नहीं बल्कि प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों का क़द और उनकी प्रतिद्वंद्विता की इंटेंसिटी बनाती है. कल मेड्रिड ओपन का पहला सेमीफ़ाइनल मैच हमारे समय के दो महान खिलाड़ियों नोवाक जोकोविच और राफ़ेल नडाल के बीच था. दरअसल ये इन दोनों के बीच होने वाला 50वां मैच था जो टेनिस इतिहास में ओपन युग का किन्ही दो खिलाड़ियों की आपसी प्रतिद्वंद्विता के मैचों का पहला पचासा था. आधुनिक टेनिस का इतिहास फेबुलस फोर का इतिहास है और उनके बीच प्रतिद्वंद्विता का इतिहास है. ये चारों मिलकर 48 ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत चुके हैं. हमारे समय की टेनिस पर इन चारों के प्रभुत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पहली चार प्रतिद्वंद्विताएं आपस में इन चारों के नाम हैं यानी जोकोविच बनाम नडाल 50 मैच, जोकोविच बनाम फ़ेडरर 45 मैच, फ़ेडरर बनाम नडाल 37 मैच, जोकोविच बनाम मरे 36 मैच. तब जाकर पांचवें नम्बर पर इवान लैंडल बनाम मैकनरो (36 मैच) की प्रतिद्वंद्विता आती है.
इन चार ‘फेबुलस फोर’ को पसंद करने के अपने-अपने कारण हो सकते हैं. पहले आप इन चारों के रंग-रूप, क़द-काठी, चेहरे-मोहरे, उनके अंदाज़, मैदान पर उनके व्यवहार को ध्यान से देखिए. जहां फ़ेडरर, मरे और जोकोविच अभिजात से लगते हैं, वहीं नडाल अकेले ऐसे हैं जो मध्यम वर्ग के प्रतीत होते हैं. अब चारों के खेलने की शैली को बूझिए. पहले तीनों को कृत्रिम तेज़ सतह रास आती हैं. ये तीनों तेज़ सर्व एंड वॉली के पॉवर गेम में सहज महसूस करते हैं. वे खेल के दौरान पूरी प्रोसीडिंग पर नियंत्रण रखने में माहिर हैं. इन तीनों को ही धीमी सतह रास नहीं आती. तभी तो फ़ेडरर 18 और जोकोविच अपने 13 ग्रैंड स्लैम में से धीमी मिट्टी की सतह वाले फ़्रेंच ओपन को केवल बमुश्किल एक- एक बार जीत पाए हैं. जबकि मरे को अभी इसे जीतना बाक़ी है. इसके विपरीत नडाल को धीमी सतह रास आती है. वे बेसलाइन से टॉप स्पिन से प्रतिद्वंद्वी को छकाते हैं. फ़ील्ड में हद से ज़्यादा चपल दीखते हैं और ज़्यादा भागदौड़ भी. वे मिट्टी की सतह पर लगभग अपराजेय हैं. उन्होंने अपने 14 ग्रैंड स्लैम खिताबों में से 9 फ़्रेंच ओपन की लाल बजरी वाली सतह पर जीते हैं. शायद अपनी पूरी आभा में मध्यम वर्ग के से प्रतीत होने के कारण ही वे ज़मीन के अधिक क़रीब प्रतीत होते हैं और शायद मिट्टी भी उनको ज़्यादा अपना समझती है और ख़ुद पर उनको अपराजेय बना देती है. और अपनी इसी मध्यमवर्गीय आभा मंडल के कारण अधिक आकर्षित करते हैं और ज़्यादा अपने लगते हैं.
फिलहाल जोकोविच के विरुद्ध अपने इस ऐतिहासिक 50वें मैच में उन्होंने शानदार खेल दिखाया और सीधे सेटों में 6-2 ,6-4 से हरा कर 2014 में फ़्रेंच ओपन के बाद से लगातार सात मैचों के हारने के क्रम को ही नही तोड़ा बल्कि इस साल मिट्टी की सतह पर अपने रिकार्ड को 14-0 कर इस सात मिट्टी की सतह पर तीसरे ख़िताब को जीतने की तरफ मज़बूती से क़दम बढ़ा दिए हैं. इस समय वे अपनी पुरानी लय में लौट चुके हैं. जोकोविच के ख़िलाफ़ नडाल किस तरह हावी थे ये इस बात से जाना जा सकता है कि पहले सेट के चार गेम में जोकोविच केवल चार पॉइंट जीत सके.
जिस तरह नडाल खेल रहे हैं और जिस तरह की फॉर्म में वे हैं, यक़ीन मानिए 11 जून को रोलां गैरों के मैदान पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा होगा. वे कोई एक ग्रैंड स्लैम को दो अंकों में जीतने वाले पहले खिलाड़ी बन रहे होंगे और पूरी दुनिया उन्हें अपने असाध्य श्रम के बूते दोनों हाथों के बीच फंसी ‘कूप दे मस्केटियर’ ट्रॉफ़ी को अपने होठों से चूमते देख रही होगी.
कम ऑन राफ़ा !
3.
10 जून 2017. फ़्रेंच ओपन.
आज इतवार की शाम फ्रांस के ख़ूबसूरत शहर पेरिस के रोलां गैरों के फ़िलिप कार्टियर सेंटर कोर्ट की लाल मिट्टी पर जब राफ़ेल नडाल अपने प्रतिद्वंद्वी स्टेनिलास वारविंका को मिट्टी की सतह पर टेनिस खेलने का सबक़ सिखाते हुए 6-2,6-3,6-1 से जीत दर्ज़ कर रहे थे तो वे केवल अपना दसवां फ़्रेंच ओपन ख़िताब ही नहीं जीत रहे थे बल्कि 16 वीं शताब्दी के महान स्पेनिश लेखक और संगीतकार विंसेंट एस्पिनल की तरह ही एक ख़ूबसूरत ‘डेसिमा’ कविता लिख रहे थे जिसे एस्पिनल की कविताओं और संगीत की तरह ही उनके देश वासी लम्बे समय तक गुनगुनाते रहेंगे. डेसिमा के दस पंक्तियों वाले स्टेंज़ा को उन्होंने 2005 में लिखना शुरू किया और 2017 में पूरा किया. ओपन एरा में कोई भी ग्रैंड स्लैम 10 बार जीतने वाले वे पहले खिलाड़ी हैं. इस साल के शुरू में जब ऑस्ट्रेलियन ओपन का नडाल और फ़ेडरर के बीच जो फ़ाइनल मैच खेला गया वो केवल फ़ाइनल मैच भर नहीं था बल्कि आधुनिक टेनिस इतिहास के पहले और दूसरे पायदान को निर्धारित करने वाला मैच भी था और उस क्लासिक मैच में फ़ेडरर ने बाज़ी मारी थी. लेकिन आज नडाल ने बताया कि वे भी नम्बर दो नहीं हैं. हाँ सतह का फ़र्क़ हो सकता है. मिट्टी की सतह पर वे सार्वकालिक महानतम हैं इसमें किसी तरह का कोई शक नहीं किया जा सकता है. ये परफ़ेक्ट 10 था—’ला डेसिमा’. इतना भर नहीं पहले मोंटो कार्लो और बार्सेलोना के क्ले कोर्ट पर और अब यहाँ पर दसवां ख़िताब जीत कर ‘ट्रिपल टेन’ पूरा किया.
यहां पर याद कीजिये रियाल मेड्रिड फ़ुटबाल क्लब के दसवें यूरोपियन कप को जीतने के उसके ऑब्सेशन को कि ‘ला डेसिमा’ फ्रेज़ उसके इस ऑब्सेशन का समानार्थी बन गया था. उसने यूरोपियन कप जिसे अब चैम्पियंस लीग के नाम से जाना जाता है, नौवीं बार 2002 में जीता था. उसके बाद उसे 12 सालों तक प्रतीक्षा करनी पडी थी. तब जाकर 2014 में रियाल मेड्रिड की टीम अपना दसवां ख़िताब जीत सकी थी. लेकिन नडाल को केवल दो वर्ष लगे.
नडाल ने अपना नौवा ख़िताब 2014 में जीता था. उसके बाद के दो वर्ष चोटों और ख़राब फॉर्म के रहे. एकबारगी लगाने लगा था कि उनकी वापसी की संभावनाएं ख़त्म हो गई हैं. लेकिन उन्होंने चैम्पियन की तरह वापसी की. इस साल वे चोट से उबरे और साल के पहले ही ग्रैंड स्लैम ऑस्ट्रेलियन ओपन के फ़ाइनल में पहुँच कर अपनी फॉर्म की वापसी की घोषणा कर दी थी. और फिर मिट्टी की सतह पर तो वे लगभग अपराजेय से थे. वे इस पूरे सीज़न में केवल एक मैच हारे रोम मास्टर्स के फ़ाइनल में डोमिनिक थिएम से.
फ़्रेंच ओपन में उनकी जीत क्ले कोर्ट पर उनकी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करती है. उन्होंने इस पूरी प्रतियोगिता में एक भी सेट नहीं हारा. इस प्रतियोगिता में उन्होंने ऐसा तीसरी बार किया. सेमीफ़ाइनल में थिएम को सीधे सेटों में हराया जिसने नोवाक को हरा कर सेमीफ़ाइनल में प्रवेश किया था और इस प्रतियोगिता से ऐन पहले रोम मास्टर्स के फ़ाइनल में नडाल को हराया था. वारविंका से फ़ाइनल में कड़े संघर्ष की उम्मीद की जा रही थी. इस पूरी प्रतियोगिता में वारविंका भी ज़बरदस्त फॉर्म में थे. उनके पक्ष में कई बातें थी. उनमें गज़ब का स्टेमिना है जो इस समय किसी टेनिस खिलाड़ी के पास नहीं है. 30 डिग्री तापमान में खेलने के लिए वे शारीरिक रूप से सबसे अधिक सक्षम थे. उन्होंने अब तक के तीनों ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल जीते थे. और इस बार उन्हें नडाल की चौथी वरीयता के मुक़ाबले तीसरी वरीयता दी गई थी. उनका सबसे शक्तिशाली अस्त्र उनके ज़बरदस्त फोरहैंड शॉट्स थे, जिसे वे इस बार बहुत शानदार तरीक़े से लगा रहे थे. दूसरी और नडाल की भी सबसे बड़ी ताक़त उनके फोरहैंड शॉट्स ही थे. वे दोनों एक दूसरे को फोरहैंड शॉट्स खेलने से नहीं रोक सकते थे. ऐसे में ज़रूरी था कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी को फोरहैंड शॉट्स को पोजीशन न करने दें. आज नडाल ऐसा करने में सफल रहे. उन्होंने शानदार सर्विस की और इतने ज़बरदस्त क्रॉसकोर्ट और डाउन द लाइन फोरहैंड शॉट्स लगाए कि वारविंका अपने शॉट्स तो दूर की बात थी खुद को भी पोजीशन नहीं कर पाए.
दरअसल ये एकतरफ़ा फ़ाइनल था जिसमें एक महान स्पेनिश खिलाड़ी बाल और रैकेट से लाल मिट्टी पर शानदार डेसिमा की रचना कर वहां बैठे हज़ारों दर्शकों को सुना रहा था. ख़ुद उनका प्रतिद्वंद्वी मंत्रमुग्ध-सा उन्हें सुन और देख रहा था और वो था कि टेनिस जगत में एक असाधारण इतिहास लिख रहा था.
4.
12 जून 2018. फ़्रेंच ओपन.
कई बार किसी व्यक्तित्व और उसकी उपलब्धियों के लिए बड़े शब्द भी अपूर्ण से लगने लगते हैं. जब आप राफ़ेल नडाल को ‘किंग ऑफ़ क्ले’ कहकर सम्बोधित करते हो तो किंग शब्द ही छोटा महसूस होने लगता है. खेल की दुनिया में और ख़ासकर टेनिस की दुनिया में ‘राफ़ा’ और ‘क्ले’ एक दूसरे के पूरक हैं. एक है तो दूसरा है. एक के बिना मानो दूसरे का कोई अस्तित्व ही नहीं. मोंटे कार्लो से लेकर पेरिस के रोलां गैरों तक लाल/ भूरी मिट्टी पर खेल का जो साम्राज्य है, दरअसल राफ़ेल नडाल उसके चक्रवर्ती सम्राट है. एक ऐसा अपराजेय सम्राट जिसकी कीर्ति चारों दिशाओं में फ़ैली है और जिसने अपनी इस कीर्ति को अनंत समय तक बनाये रखने के लिए एक अश्वमेध यज्ञ शुरू किया हुआ है. इस यज्ञ का अश्व यानी उनका खेल निर्मुक्त निर्द्वन्द्व समय की सीमाओं को लाँघता चला जा रहा है जिसे बांधने की शक्ति या हुनर किसी में है ही नहीं.
11 फ़्रेंच ओपन, 11मोंटे कार्लो ओपन, 11 बार्सेलोना, 8 रोम मास्टर्स और डेविस कप के क्ले पर खेले हर मैच में जीत. ये आंकड़े अपने आप में अविश्वसनीय लगते हैं. फ़्रेंच में उनका रिकॉर्ड 86-2 का है यानी यहां खेले 86 में से केवल 2 मैच हारे. इस रविवार जब वे फ़िलिप कार्टियर कोर्ट में डोमिनिक थिएम के ख़िलाफ़ फ़ाइनल खेलने उतरे तो ये उम्मीद थी कि ये एक ज़ोरदार मुक़ाबला होगा क्योंकि पिछले दो सालों में क्ले कोर्ट में जिस खिलाड़ी से दो बार हारे वो और कोई नहीं थीएम ही थे. पिछले साल रोम मास्टर्स में और इस बार मेड्रिड ओपन में. लेकिन अपने 11वे फ़्रेंच आपने ग्रैंड स्लैम के लिए उन्होंने थीएम को 6-4,6-3,6-2 से लगभग रौंद ही डाला.
स्पेन एक ऐसा देश है जिसमें एक लाख से भी ज़्यादा क्ले कोर्ट हैं. वे बचपन से उस पर खेलते आये हैं. आखिर मिट्टी पर खेल नडाल के ख़ून में जो है. वे उस मिट्टी के कण-कण से वाक़िफ़ हैं. वे उसमें और मिट्टी उनमे रच-बस गयी है. इसीलिए उसके मिज़ाज को उनसे बेहतर कौन समझ सकता है. उसका व्यवहार ही उन्हें और उनके खेल को रास आता है. मिट्टी की सतह पर घास या कृत्रिम सतह की तुलना में रूक कर थोड़ा धीमी आती है. जिससे उनकी चपलता और फुर्ती को गेंद पर नियंत्रण बनाने में आसानी होती है और उसके बाद वे अपने ट्रेडमार्क मारक टॉप स्पिन फोरहैंड शॉट खेलते हैं. टॉप स्पिन गेंद टप्पा खाने के बाद तेजी से आगे की ओर स्किट करती है और थोड़ा ज़्यादा ऊंची भी आती है जिसका कोई जवाब विपक्षी खिलाड़ी के पास नहीं होता. वे न गेंद को और न खेल को नियंत्रित कर पाते हैं. लाल सतह पर राफ़ा के नियंत्रण को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि 17 और 18 में फ़्रेंच ओपन में केवल एक सेट खोया इस साल के क्वार्टर फ़ाइनल में स्वार्त्ज़मान के ख़िलाफ़. दरअसल उनका खेल इतना लयबद्ध होता है मानो अपने इस कभी न ख़त्म होने वाले अश्वमेध यज्ञ में मंत्रोचार कर रहे हों. उनके खेल की आभा सूरज की तरह इतनी दीप्त होती है कि उसकी रोशनी में बाक़ी कुछ नहीं सूझता.
5.
10 जून 2019. फ़्रेंच ओपन.
राफ़ेल नडाल के 12वीं बार ‘कूप डी मस्केटीएर’ ट्रॉफ़ी जीतने के बाद उनसे हारने वाले युवा थिएम कह रहे थे ‘राफ़ा हमारे खेल के लीजेंड हैं और ये (12 बार फ़्रेंच ओपन जीतना) अवास्तविक है, तो राफ़ा को मस्केटीएर ट्रॉफ़ी प्रदान करने के बाद रॉड लेबर ने ट्वीट किया कि ‘यह अविश्वसनीय है.’ दरअसल राफ़ा का उस समय वहां होना ही अपने आप मे अविश्वास से परे होना था. वे पीले रंग की टी-शर्ट पहने थे. जैसे ही जीते तो पीठ के बल कोर्ट पर लेट गए. और वे जब उठे तो लाल मिट्टी उनकी पीली शर्त पर लिपटी थी. उस समय राफ़ा अस्त होने से ठीक पहले के सूर्य के समान लग रहे थे जिसकी स्वर्णिम आभा दिन भर की ओजपूर्ण परिश्रम के कारण रक्तिम आभा में बदल जाती है. उस रक्तिम आभा वाले सूर्य को उस मैदान में खड़े देखना वास्तव में अविश्वसनीय था जिसके खेल के प्रकाश में टेनिस खेल के आकाश के सारे तारे छुप जाते हैं. बिला शक वे ‘किंग ऑफ़ क्ले’ हैं, मिट्टी की सतह के खेल साम्राज्य के चक्रवर्ती सम्राट जिसकी जीत के अश्वमेध अश्व को पकड़ने की हिम्मत न तो फ़ेडरर और जोकोविच जैसे पुराने यशस्वी सम्राटों में है और न थिएम, सितसिपास और ज्वेरेव जैसे युवा राजकुमारों में. ऐसा प्रतीत होता है कि फ़िलिप कार्टियर मैदान की लाल मिट्टी से उनका इतना आत्मीय लगाव है कि वो भी उनके रक्त की तरह उनमें अतिशय उत्साह की ऑक्सीज़न से युक्त कर राफ़ा को अपराजेय बना देती है. भले ही रियल मेड्रिड मेरी सबसे नापसंदीदा टीम रही हो पर उनका एक फ्रेज तो अपने सबसे पसंदीदा खिलाड़ी के लिए उधार लिया ही जा सकता है. दरअसल वे टेनिस के ‘गैलेक्टिको’ हैं. सबसे अलग. सबसे सुपर.
राफ़ा को फ़्रेंच ओपन की 12वीं और ग्रैंड स्लैम की कुल 18वीं जीत की बहुत मुबारक.
6.
11 सितंबर 2019. यूएस ओपन.
इतवार की रात को न्यूयॉर्क के आर्थर ऐश स्टेडियम में 33 साल के राफ़ेल नडाल और उनसे 10 साल छोटे 23 साल के डेनिल मेडवेदेव जब यूएस ओपन के फ़ाइनल में आमने-सामने थे तो ये केवल एक फ़ाइनल मैच भर नहीं था बल्कि समय के दो अंतरालों के बीच द्वंद्व था, बीतते जाते और और आने वाले के बीच रस्साकशी थी, पुराने और नए के बीच संघर्ष था, दरअसल ये अनुभव और युवा जोश के बीच का महासंग्राम था. आने वाले नए के पास पर्याप्त समय होने से उपजी बेपरवाही तो है पर स्वयं को स्थापित करने की आतुरता भी है लेकिन बीतते जाते पुराने में मुट्ठी से समय रेत की तरह फिसलते जाने के अहसास से उपजी अधीरता है. उसमें बीतते समय के साथ चीज़ों को दोनों हाथों से समेटते जाने की लालसा है और वो हर चीज़ को पूरे जोश और जुनून से समेट लेने की चाहना है, लालसा है. दरअसल एक खिलाड़ी के जीवन में 30 साल की उम्र एक ऐसी विभाजक रेखा है जहां से उसकी ढलान शुरू हो जाती है. और तब खिलाड़ी के भीतर शीघ्रातिशीघ्र बहुत कुछ सिद्ध करने का एक आग्रह पैदा होता है. कुछ खिलाड़ियों के भीतर का ये आग्रह आग बन जाती है और तब राफ़ेल नडाल और रोजर फ़ेडरर और हां, जोकोविच जैसे खिलाड़ी खेल दुनिया को मिलते हैं.
जोकोविच (32साल), राफ़ा (33साल) और फ़ेडरर (38साल) तीनों ने मिलकर इस शताब्दी के 19 सालों में 55 ग्रेंड स्लैम अपने नाम किये हैं और इनमें से 13 ख़िताब 30 साल की उम्र के बाद. पिछले 12 ग्रैंड स्लैम इन तीनों ने ही जीते. इन 12 फ़ाइनल मुक़ाबलों में केवल चार बार 1990 के बाद जन्मे खिलाड़ी फ़ाइनल में चुनौती देने में सक्षम हुए पर हर बार उन्हें मुँह की खानी पड़ी. दरअसल इन तीनों खिलाड़ियों की प्रतिभा और अनुभव का आभामंडल इतना प्रकाशवान है कि जो भी उनकी तरफ़ नज़र भरकर देखता है, उसकी आंखें इस कदर चुंधिया जाती हैं कि उसे कोई रास्ता ही नहीं सूझता और असफलता के बियाबान में भटक जाता है.
तो बात कल के मैच की. ये फ़ाइनल ग्रैंड स्लैम के सबसे शानदार मैचों में एक था. 4 घंटे 52 मिनट चले इस मैच की अवधि ही इस संघर्ष की तीव्रता और गहनता का वक्तव्य है. ये यूएस ओपन के फ़ाइनल का दूसरा दूसरा सबसे लंबा मैच था. मेडवेदेव ने पहले ही गेम में ब्रेक पॉइंट लेकर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिए थे और तीसरे गेम में राफ़ा की सर्विस ब्रेक भी कर दी. लेकिन अगले ही गेम में राफ़ा ने मेडवेदेव की सर्विस ब्रेक कर दी तो लगा कि दर्शकों को कैसा शानदार मैच मिलने जा रहा है. हालांकि जब राफ़ा ने पहले दो सेट जीत लिए तो लगा कि यहां भी कनाडा ओपन की कहानी दोहराई जाने वाली है जहाँ राफ़ा ने फ़ाइनल में मेडवेदेव को 6-3,6-0 से हरा दिया था. मैच समाप्ति के पश्चात इंटरव्यू में मेडवेदेव ने कहा कि कि इस स्टेज (दो सेट से पिछड़ने के बाद) पर आकर वे रनर्स अप स्पीच के बारे में सोचने लगे थे. यानी उस समय उन्हें लग गया था कि अब उनके पास कुछ खोने के लिए कुछ नहीं है और शायद इस निश्चिंतता ने ही उनके खेल को एक ऊचांई की और ले जाने में मदद की होगी और अगले दो सेट उन्होंने जीतकर बताया कि एक महीने के अंदर सेंट लॉरेंस नदी से लेकर हडसन नदी तक बहुत पानी बह चुका है और अब अब वे वो नहीं रहे जो मांट्रियल में थे. वे बेहतर तैयारी के साथ और हार्डकोर्ट पर 22-2 के इस साल के सबसे सफल खिलाड़ी के रूप में फ्लशिंग मीडोज पहुंचे थे. तभी तो 5वें और अंतिम सेट में 5-2 से पिछड़ने के बाद भी उन्होंने हार नही मानी और 5-4 के स्कोर के बाद 10वें गेम में ब्रेक पॉइंट लेकर स्कोर 5-5 कर ही दिया था कि राफ़ा का अनुभव काम आया और अभी तक एकदम बराबरी को अपने पक्ष में मोड़ दिया. अंततः राफ़ा ने 7-5,6-3,5-7,4-6,6-4 से मैच जीतकर एक इतिहास की निर्मिति की. हां, इस मैच ने पुराने को बताया कि नए का आगमन बस कुछ समय का फेर है तो पुराने ने नए से कहा देखा पुराने को ख़ारिज किया जाना कितना कठिन होता है.
जो भी हो 33 वर्ष की उम्र में राफ़ा की 19वीं ग्रैंड स्लैम जीत अविस्मरणीय है जो फ़ेडरर की सर्वाधिक 20 जीतों से एक कम है. जिस तरह से राफ़ा अभी खेल रहे हैं आने वाले समय में वे कई और ग्रैंड स्लैम जीतने वाले हैं, ये तय है. दरअसल उन्होंने अपने खेल में समयानुरूप परिवर्तन किए हैं. समय की शानदार शिड्यूलिंग की है. और चोटों से उबर कर शानदार वापसी की है.
जो भी हो राफ़ा, फ़ेडरर और जोकोविच ऐसे विशाल वटवृक्ष हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा और अनुभव की छांव से पूरे टेनिस जगत को इस तरह से घेर रखा है कि नवोदित खिलाड़ियों को उनकी छाया से बाहर आने और स्वयं को मजबूत दरख़्त बनाने में लंबी जद्दोजहद करनी पड़ेगी.
फिलहाल तो राफ़ा को 19वीं जीत मुबारक और ये भी कि जीत की संख्या की ये बाली (टीन) उम्र ख़त्म होने को है और इस संख्या को युवावस्था में पहुंचाने की अग्रिम शुभकामनाएं क़ुबूल हों.
7.
12 अक्टूबर 2020. फ़्रेंच ओपन.
खबर : फ़िलिप कार्टियर मैदान पर आज स्पेन के राफ़ेल नडाल ने सर्बिया के नोवाक जोकोविच को 6-0,6-2,7-5 से हराकर फ़्रेंच ओपन के पुरुष एकल का ख़िताब जीत लिया. ये उनका रिकॉर्ड 13वां फ़्रेंच ओपन ख़िताब था. उन्होंने कुल 20 ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत कर रोजर फ़ेडरर की बराबरी कर ली है.
प्रतिक्रिया: असाधारण, अविश्वसनीय, अद्भुत, बेजोड़, किंग ऑफ़ क्ले, आदि-आदि, आदि-आदि.
विश्लेषण: आज राफ़ा फ़्रेंच ओपन के पुरुष एकल फ़ाइनल मैच के तीसरे सेट में 6-5 के स्कोर पर 12वें गेम में चैंपियनशिप के लिए सर्व कर रहे थे. उन्होंने पहले तीन अंक जीते. अब उनके पास तीन चैंपियनशिप अंक थे. उसके बाद उन्होंने शानदार ऐस लगाया और घुटनों के बल बैठ गए. ये अद्भुत जीत का शानदार समापन था. वे टेनिस इतिहास में अपना नाम दर्ज़ करा चुके थे. वे एक ऐसा कार्य कर चुके थे जो अब ‘न भूतो न भविष्यति’ की श्रेणी में आ चुका है.
याद कीजिए 1973 में एक फ़िल्म आई थी ‘बारूद’. उसमें एक गीत था ‘समुंदर समुंदर, यहां से वहां तक, ये मौजों की चादर बिछी आसमान तक, मेरे मेहरबां, मेरी हद है कहाँ तक, कहाँ तक.’ इन पंक्तियों को राफ़ेल नडाल की जीत से जोड़कर देखिए और उनसे पूछिए कि रोलां गैरों के इस समुंदर में उनकी जीत की हद है कहां तक, कहां तक. और इसका एक ही जवाब मिलेगा रोलां गैरों का पूरा समंदर ही उनकी जीत की हद है.
आप उनकी जीत के लिए चाहे किसी भी विशेषण का प्रयोग कर लें, पर वो अपर्याप्त लगेगा. 2005 में फ़िलिप कार्टियर कोर्ट पर 19 साल की उम्र में उन्होंने पहली जीत हासिल की थी. और आज 2020 तक 15 सालों में 13वीं जीत. 13 फ़ाइनल और 13 जीत. कुल मिलाकर रोलां गैरों में 100वीं जीत और क्ले कोर्ट पर 60 ख़िताब. वे ‘किंग ऑफ़ क्ले’ यूं ही थोड़े ही कहलाते हैं. पर क्या ये विशेषण उनकी महत्ता को सही अर्थों में अभिव्यक्ति देता है. शायद नहीं न.
प्राचीन भारतीय राज्य व्यवस्था में चक्रवर्ती सम्राट की संकल्पना है जो अपनी संप्रभुता सिद्ध करने के लिए प्रतिवर्ष अश्वमेध यज्ञ करता. अब इस रूपक को नडाल की जीत के संदर्भ में देखिए. रोलां गैरों नडाल का अपना साम्राज्य है, जिस पर प्रभुसत्ता सिद्ध करने के लिए वे साल दर साल आते और अपने खेल का अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न करते हैं. तमाम छोटे बड़े राजा से लेकर सम्राट तक मस्केटियर ट्रॉफ़ी रूपी अश्व को पकड़ने का असफल प्रयास करते. नडाल के अद्भुत खेल के प्रताप के आगे हर किसी की आभा फीकी पड़ जाती. दरअसल वे ‘क्ले के चक्रवर्ती सम्राट’ हैं.
और अगर किसी को इस बारे में कोई संदेह हो तो इस साल की प्रतियोगिता में उनके खेल पर एक नज़र भर डाल लें. बिना कोई सेट खोए ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीतने का ये कारनामा टेनिस इतिहास में सिर्फ चौथी बार हुआ है. 34 साल की उम्र में राफ़ेल ने 19 साल के जोश और ताकत से लबरेज सिनर से लेकर 33 साल के अनुभवी, विश्व के नम्बर एक खिलाड़ी चैंपियन खिलाड़ी नोवाक तक को बहुत ही आसान से और कन्विनसिंगली हराया.
आज तो वे गज़ब की फॉर्म में थे. एक सच्चे चैंपियन की तरह. आत्मविश्वास और उत्साह से लबरेज़. पूरे मैच में एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि वे चैंपियन नहीं बनेंगे, बल्कि कहें तो पूरी प्रतियोगिता में. यूं तो आज दोनों ही खिलाड़ी जीतकर नया इतिहास बनाने को बेताब थे. अगर नोवाक जीतते तो ओपन इरा में वे पहले ऐसे खिलाड़ी होते जिसने चारों ग्रैंड स्लैम कम से कम दो बार जीते हों. और उनके ग्रैंड स्लैम की संख्या 18 हो जाती और वे नडाल और फ़ेडरर के और करीब आकर गोट (सार्वकालिक महान खिलाड़ी) की रेस को और क़रीबी और रोचक बना देते. तो दूसरे ओर नडाल जीतते तो कोई एक प्रतियोगिता 13 बार जीतकर एक असाधारण रिकॉर्ड बनाते और अपनी ग्रैंड स्लैम की संख्या फ़ेडरर के बराबर 20 तक पहुंचा देते. सफलता नडाल के हाथ लगी.
मैच का पहला ही गेम ड्यूस में गया और नोवाक की सर्विस ब्रेक हुई. अगला गेम भी ड्यूस में गया और राफ़ेल ने तीन ब्रेक पॉइंट बचाए और 2-0 की बढ़त ले ली. अपनी सर्विस बचाते हुए नोवाक की अगली दोनों सर्विस भी ब्रेक की और पहला सेट 6-0 से जीतकर बताया कि क्ले के असली चैंपियन वे ही हैं और ये भी कि यहां फ़ाइनल में उनका अजेय रहने का रिकॉर्ड बरकरार ही रहना है. हालाँकि 6-0 के स्कोर से ये नहीं समझना चाहिए कि राफ़ा बहुत आसानी से जीते. दरअसल इसमें ज़ोरदार संघर्ष हुआ और सेट कुल 45 मिनट में समाप्त हुआ. औसतन साढ़े सात मिनट प्रति गेम समय लगा. नोवाक अच्छा खेल रहे थे लेकिन एक तो राफ़ा आज अपने सर्वश्रेष्ठ रंग में थे तो दूसरी और नोवाक ने अनफोर्स्ड एरर (बेजा गलतियां) बहुत ज़्यादा की. अगले सेट की भी कहानी पहले जैसे ही रही और दो सर्विस ब्रेक के साथ नडाल ने दूसरा सेट भी 6-2 से जीत लिया. और जब तीसरे सेट में दूसरी सर्विस ब्रेक कर 3-1 की बढ़त ले ली तो लगा नडाल की जीत की अब औपचारिकता बाक़ी है. तभी नोवाक कुछ रंग में आए और ना केवल अपनी सर्विस बचाई बल्कि नडाल की सर्विस ब्रेक कर 3-3 की बराबरी की. अब लगा मैच अभी बाकी है. पर 5-5 के स्कोर पर नडाल ने फिर नोवाक की सर्विस ब्रेक की और 6-5 चैंपियनशिप के लिए चैंपियन की तरह सर्विस की और शानदार ऐस से मैच समाप्त किया.
आज नडाल अपनी शानदार फॉर्म में थे. उन्होंने जिस शानदार खेल की शुरुआत पहले दौर के मैच में इ. गेरासिमोव को हराकर की थी, वो आज चरम पर था. वे आत्मविश्वास से भरे थे. उन्होंने न्यूनतम बेजा गलती की. उनकी कोर्ट की कवरेज अविश्वसनीय थी. हर बॉल तक आसानी से पहुंच जाते और असाधारण रिटर्न्स कर बार-बार नोवाक को हैरत में डाल देते. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस बार परिस्थितियां नडाल के प्रतिकूल थीं. एक तो खचाखच दर्शकों से भरे स्टैंड्स नहीं थे. दूसरे इस बार ये प्रतियोगिता मई-जून के बजाय अक्टूबर में हो रही थी जब ठंडा काफी ज्यादा होती है. ऊपर से इस बार नई गेंद का इस्तेमाल किया गया जो पहले की तुलना में थोड़ी भारी थीं. भारी मौसम और भारी गेंद से गेंद का स्पिन होना बहुत कठिन था और ये बात राफ़ेल के प्रतिकूल जा रही थी और इसीलिए गेंद बदलने पर प्रारंभ में ही राफ़ा ने अप्रसन्नता ज़ाहिर कर दी थी. लेकिन वो चैंपियन ही क्या जो विपरीत परिस्थितियों में खेल को एक अलग स्तर पर न ले जाए. नडाल ऐसे ही चैंपियन खिलाड़ी हैं. उनकी आज कोर्ट कवरेज तो असाधारण थी ही. साथ ही उन्होंने शानदार ड्राप शॉट खेले और टॉपस्पिन लॉब शॉट भी खेले जिससे न केवल उन्हें अपनी पोजीशन में आने का अतिरिक्त समय मिलता बल्कि नोवाक को रिटर्न करने में भी परेशानी होती. उन्होंने आज शानदार फोरहैंड वॉली लगाई. उन्हें बैकहैंड पर आई गेंद को भी फोरहैंड की पोजीशन में आकर विनर लगाते देखना दर्शनीय था.
निःसन्देह आज वे अपने सर्वश्रेठ रंग में थे. आख़िर जब वे इस लाल मिट्टी पर खेलने आते हैं तो क्या हो जाता है उन्हें. दरअसल वे इस प्रायद्वीप में बचपन से रहे हैं, पले हैं, बढ़े हैं और इसी मिट्टी पर खेलते हुए बड़े हुए हैं. इसका ज़र्रा-ज़र्रा उनके क़दमों की आहट पहचानता है, वे राफ़ा के पसीने की ख़ुशबू से सुवासित हो उठते हैं. वे राफ़ा के कदमों में बिछ-बिछ जाते हैं और उनके क़दमों को अद्भुत गति देते हैं. और फिर वे इतने गतिशील और लयबद्ध हो जाते हैं कि लगता है वे अपने रैकेट और बॉल से खेल नहीं रहे हैं बल्कि कोई कविता रच रहे हैं. स्पेनिश भाषा में कविता की एक फॉर्म है ‘डेसिमा’ जिसे 16वीं सदी के महान स्पेनिश लेखक और संगीतकार विंसेंट एस्पिनल ने विकसित किया था. इसमें 10 पंक्तियों के स्टेन्ज़ा होते हैं. अपनी जीत से लिखी जा रही ‘डेसिमा’ (कविता) का पहला स्टेन्ज़ा उन्होंने 2017 में वारविन्का को हराकर 10वां फ़्रेंच ओपन ख़िताब जीतकर पूरा किया था और आज 13वें फ़्रेंच ओपन के साथ 20वां ग्रैंड स्लैम जीत कर अपनी डेसिमा (कविता ) का दूसरा स्टेन्ज़ा पूरा किया है.
यहां पर याद कीजिये रियाल मेड्रिड फ़ुटबाल क्लब के दसवें यूरोपियन कप को जीतने के उसके ऑब्सेशन को कि ‘ला डेसिमा’ फ्रेज़ उसके इस ऑब्सेशन का समानार्थी बन गया था. उसने यूरोपियन कप जिसे अब चैम्पियंस लीग के नाम से जाना जाता है, नौवीं बार 2002 में जीता था. उसके बाद उसे 12 सालों तक प्रतीक्षा करनी पडी थी. तब जाकर 2014 में रियाल मेड्रिड की टीम अपना दसवां ख़िताब जीत सकी थी. लेकिन नडाल ने तो लगभग इस अवधि में दो ‘ला डेसिमा’ रच दिए.
दरअसल आज नडाल के रूप में एक महान स्पेनिश खिलाड़ी कोर्ट के भीतर एक एकतरफ़ा फ़ाइनल मैच में बाल और रैकेट से लाल मिट्टी पर शानदार डेसिमा की रचना कर दुनिया को सुना रहा था जिसे खुद उनका प्रतिद्वंद्वी भी मंत्र मुग्ध-सा सुन और देख रहा था .
और, और इस तरह राफ़ा था कि टेनिस जगत का एक असाधारण इतिहास लिख रहा था.
राफ़ा को 20वां ग्रैंड स्लैम बहुत मुबारक हो.
8.
01 फरवरी 2022. ऑस्ट्रेलियन ओपन.
आज मेलबोर्न क्लब के पुरुष एकल फ़ाइनल के बाद हारने वाले खिलाड़ी डेनिल मेदवेदेव अपने प्रतिद्वंद्वी राफ़ा के लिए लिए कह रहे थे ‘इनसेन’ और वो उन्हें बता रहे थे ‘अमेजिंग चैंपियन’. वे बता रहे थे कि उन्होंने मैच के बाद राफ़ा से पूछा कि ‘क्या वे थके हैं’. पांच घंटे चौबीस मिनट का मैच खेलने के बाद राफ़ा लाकर्स रूम के जिम में वर्कआउट कर रहे थे. वे अद्भुत हैं. वे असाधारण हैं. महानतम हैं. वे ऑस्ट्रेलिया ओपन 2022 के चैंपियन हैं. वे 21 ग्रैंड स्लैम विजेता हैं. दरअसल कई बार किसी को वर्णित करने के लिए आपके पास शब्द नहीं होते. सारी संज्ञाएँ और विशेषण छोटे लगने लगते हैं. राफ़ेल नडाल ऐसे ही खिलाड़ी हैं.
कुछ खिलाड़ी अपने खेल को उन ऊंचाइयों पर पहुंचा देते हैं जहां खिलाड़ी और खेल एक दूसरे का पर्याय बन जाते हैं. राफ़ा का मतलब टेनिस है. राफ़ा का मतलब जीत है. वे जीत को इतना आसान बना देते हैं कि जीत केवल एक नंबर बन कर रह जाती है. ऑस्ट्रेलिया ओपन 2022 के दौरान सिर्फ़ और सिर्फ़ एक नंबर की चर्चा थी. नंबर 21 की. राफ़ा इस नंबर को पाना चाहते थे और मेदवेदेव उनके रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध थे. उनके देशवासी पूर्व नंबर एक येवगेनी कफेलनीकोव ट्वीट कर कह रहे थे ‘आप चाहे या न चाहे तीनों (राफ़ा/फेड/नोवाक) 20 पर ही रहने वाले हैं क्योंकि अब यहां मेदवेदेव हैं.’ दरअसल वे राफ़ा को आंकने में चूक कर रहे थे.
कहावत है ‘मौका हर किसी को मिलता है.’ राफ़ा, नोवाक और राफ़ा तीनों 20 ग्रैंड स्लैम ख़िताब के साथ टाई पर थे. तीनों को 21 पर आने का मौका मिला. पर उस मौक़े को उपलब्धि में तब्दील केवल राफ़ा कर सके. उनमें ये सलाहियत थी. क़ाबिलियत थी. 2019 के विम्बलडन फ़ाइनल में फ़ेडरर के पास नोवाक के विरुद्ध दो मैच पॉइंट थे लेकिन निर्णायक टाई ब्रेक में हार गए. नोवाक ने फेड को 21वें नंबर पर जाने से रोक दिया. उसके बाद 2021 के यूएस ओपन में ये मौका नोवाक के पास था. वे साल के पहले तीन ग्रैंड स्लैम जीतकर विजय रथ पर सवार थे. पर उन्हें मेदवेदेव ने नोवाक को 21 पर जाने से रोक दिया. आज ये मौक़ा राफ़ा को मिला और उन्होंने मौक़े को हाथ से जाने नहीं दिया. उन्होंने एक इतिहास रच दिया.
वे ‘गोट’ की रेस में फ़िलहाल आगे निकल गए हैं. हालांकि अभी रेस ख़त्म नहीं है. नोवाक की वापसी होनी अभी बाक़ी है. लेकिन राफ़ा ने मेलबर्न जीतकर बताया कि वे 21 पर नहीं रुकने वाले हैं. अब उनके पैरों तले उनकी अपनी ज़मीन लाल मिट्टी का अपना रोलां गैरों जो होना है. वे सभी ग्रैंड स्लैम को कम से कम दो बार जीतने वाले रॉय इमर्सन, रॉड लेवर और नोवाक के बाद चौथे और ओपन इरा के दूसरे खिलाड़ी बन गए हैं. अब तक ये प्लस नोवाक के पास था.
आज का पुरुष एकल फ़ाइनल मैच किसी ग्रैंड स्लैम का एक फ़ाइनल मैच भर नहीं था. विश्व नंबर दो रूस के डेनिल मेदवेदेव और विश्व नंबर छह स्पेन के राफ़ेल नडाल दोनों टेनिस खेल के नए इतिहास की निर्मिति के लिए खेल रहे थे. दो में से एक इतिहास लिखा जाना था और दूसरे को इतिहास की बात हो जाना था. अगर राफ़ा जीतते तो सर्वाधिक 21 ग्रैंड स्लैम जीतने टेनिस के महानतम खिलाड़ी होते और मेदवेदेव जीतते तो अपने कैरियर के बैक टू बैक पहले दो ग्रैंड स्लैम जीतने वाले खिलाड़ी ओपन इरा के पहले खिलाड़ी होते. राफ़ा ने जीतकर अपने सपने को इतिहास बना दिया और मेदवेदेव का सपना हार के बाद इतिहास की बात हो गया.
लेकिन एक मैच, जिसे एक इतिहास रचना था, ख़ुद इतिहास में दर्ज हो गया. दरअसल इस मैच को बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए था जैसा ये हुआ. एक असाधारण मैच जिसका एक-एक पल रोमांच के चरम को छू रहा था. जिसमें पल-पल, अंक दर अंक संभावनाएं बन बिगड़ रही थीं.
इस मैच के शुरुआत लगभग वैसी ही थी जैसी कल महिला एकल फ़ाइनल की थी. उसका अंत भी वैसा ही था. लेकिन आगाज़ और अंत के बीच के अंतराल ने इसे अविस्मरणीय मैच में बदल दिया. बार्टी की तरह राफ़ा दर्शकों के फेवरिट थे. राफ़ा भी बार्टी की तरह अब तक पहले चार मुकाबलों में मेदवेदेव से 3-1 से आगे थे और ये भी कि आख़िरी मैच राफ़ा मेदवेदेव से हारे थे. और ये मैच अंततः राफ़ा जीते.
दोनों ही खिलाड़ी मानसिक रूप से सुदृढ और शारीरिक रूप से मजबूत थे. दोनों समान स्ट्रोक्स खेलने वाले थे. दोनों ही बेसलाइन के खिलाड़ी थे. लेकिन मेदवेदेव के पास रॉकेट गति की सर्विस प्लस थी तो राफ़ा के पास हैवी टॉप स्पिन फोरहैंड प्लस था. दोनों ने इस इसे दिखाया भी. मेदवेदेव ने राफ़ा के 02 के मुकाबले 23 ऐस लगाए तो राफ़ा ने शानदार टॉप स्पिन फोरहैंड लगाए. शुरुआत में मेदवेदेव शानदार फॉर्म में दिखे और राफ़ा ऑफ़ कलर. मेदवेदेव शानदार सर्विस कर रहे थे और स्ट्रोक्स लगा रहे थे तो दूसरी और राफ़ा ज़रूरत से अधिक बेज़ा गलतियां कर रहे थे. मेदवेदेव आसानी से अपनी सर्विस होल्ड कर पा रहे थे और राफ़ा को अपनी सर्विस को बनाए रखने के लिए ख़ासी मशक्कत करनी पड़ रही थी. जल्द ही राफ़ा की सर्विस ब्रेक हुई और पहला सेट मेदवेदेव आसानी से 6-2 से जीत लिया. दूसरा सेट पहले का उलट था. दोनों ने एक दूसरे की दो-दो सर्विस ब्रेक की. सेट टाई ब्रेक में मेदवेदेव ने 7-6 (7-5) से जीत लिया. अब लगने लगा कि राफ़ा की हार कुछ समय की बात भर है. इसके बाद तीसरे सेट में 3-3 कई बराबरी के के बाद राफ़ा 0-40 से पीछे थे और राफ़ा की हार में कोई शक नहीं रह गया था. लेकिन राफ़ा किसी और मिट्टी के बने हैं. यहां से उनके पास खोने को कुछ नहीं रह गया था. अब उन्होंने अपने खेल के स्तर को इतना ऊंचा उठाया जिसे मेदवेदेव छू नहीं सके. उन्होंने न केवल तीन ब्रेक पॉइंट बचाये बल्कि वो गेम जीता और अगले गेम में मेदवेदेव की सर्विस ब्रेक कर सेट 6-4 से जीत लिया. अब मैच का रुख बदल चुका था. अब मेदवेदेव के कंधे झुकने लगे. दो सेट से पिछड़ने के बाद राफ़ा ने अगले तीन सेट जीतकर लगभग असंभव को संभव कर दिखाया. उन्होंने 2-6, 6-7 (5-7), 6-4, 6-4, 7-5 से ये मैच जीत लिया.
दो सेट पिछड़ने के बाद मैच जीतने का ये ऐसा कारनामा था जो इससे पहले ऑस्ट्रेलिया ओपन के फ़ाइनल में पहले कभी नहीं हुआ था. दरअसल इस मैच में दोनों खिलाड़ियों ने अलग अंदाज से शुरू किया और अलग अंदाज से ख़त्म. शुरू में राफ़ा बहुत ख़राब और मेदवेदेव सबसे अच्छा खेल रहे थे. धीरे-धीरे राफ़ा अपने खेल के स्तर को ऊंचाइयों पर ले गए. जैसे-जैसे राफ़ा अच्छा खेल रहे थे वैसे वैसे मेदवेदेव के खेल का स्तर नीचे जा रहा था. पहले मेदवेदेव अपनी सर्विस आसानी से होल्ड कर रहे थे और राफ़ा के सर्विस गेम ज़्यादा समय ले रहे थे. लेकिन मैच जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ रहा था इसका उलट होने लगा.
ऑस्ट्रेलियाई समाज दरअसल एक खुला समाज है. ये अपेक्षाकृत नया समाज है जिसे बाहर के लोगों ने आकर निर्मित किया. शायद इसलिए उनका अपनी परम्पराओं के प्रति उस तरह का आग्रह नहीं है जैसा यूरोपीय समाज में है. वे अमेरिकी समाज के अधिक क़रीब हैं. उनका नए के प्रति विशेष आग्रह है. शायद यही कारण रहा हो कि मेलबोर्न ओपन जो कभी घास पर होता था, अब कृत्रिम सतह पर होने लगा है. ऐसा ही यूएस ओपन में भी हुआ. जबकि फ़्रेंच और विम्बलडन आज भी घास और मिट्टी पर होते हैं. इस हिसाब से आज मेलबोर्न के रॉड लेवर एरीना को पुराने के ऊपर नए को तरजीह देनी थी. पर हुआ इसके उलट. उन्होंने पुराने का साथ दिया.
ये ओल्ड ज़ेन और नेक्स्ट जेन के बीच मुक़ाबला था. ये शक्ति का अनुभव से मुक़ाबला था. ये जोश का धैर्य से मुक़ाबला था. ये 35 साल के राफ़ा का 25 साल के मेदवेदेव का मुक़ाबला था. जिस समय 8-9 साल के मेदवेदेव अभ्यास के दौरान फेड और राफ़ा के साथ खेलने के सपने देखते थे उस समय वे दोनों ग्रैंड स्लैम जीतकर शोहरत के आसमान पर उड़ान भरने लगे थे.
नए और पुराने का द्वंद्व हमेशा रहता है. पुराना जाता है और नया आता है. नया पुराने को रिप्लेस कर देता है. लेकिन नए को ये जगह हासिल करनी होती है. उसे अपनी क़ाबिलियत साबित करती होती है. पुराना अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए कड़ा संघर्ष करता है. आज रॉड लेवर एरीना ने सिद्ध किया पुराने को विदा कहने का समय अभी नहीं हुआ है.
आज की जीत दरअसल शक्ति पर अनुभव की, जोश पर धैर्य की, नए पर पुराने की जीत है. ये राफ़ा की मेदवेदेव पर जीत है. ये जीत कहती है कि राफ़ा अभी चुके नहीं हैं. अभी नोवाक और राफ़ा का समय ख़त्म नहीं हुआ.
चैंपियनों के चैंपियन राफ़ा को ये जीत मुबारक.
9.
05 जून 2022. पेरिस.
ख़बर
ये 28 मई 2022 का दिन था. पेरिस के स्टेडियम फ्रांस में चैंपियंस ट्रॉफ़ी का फ़ाइनल लिवरपूल और रियाल मेड्रिड के बीच खेला जा रहा था. उस मैच में रियाल ने लिवरपूल को 1-0 से हराकर 14 वीं बार चैंपियंस ट्रॉफ़ी जीती थी. रियाल राफ़ेल नडाल की पसंदीदा टीम है और उस दिन राफ़ा अपनी पसंदीदा टीम का समर्थन करने के लिए वो मैच देख रहे थे. ठीक आठ दिन बाद अपनी पसंदीदा टीम की तरह वे भी 14वीं बार मस्केटियर ट्रॉफ़ी जीत रहे थे. संयोग ऐसे ही होते हैं.
आज शाम रोलां गैरों के फ़िलिप कार्टियर अरीना में 36 वर्षीय राफ़ेल नडाल अपने से 13 साल छोटे 23 वर्षीय नॉर्वे के कैस्पर रड को बहुत आसानी से 6-3,6-3,6-0 से हराकर अपना 22वां ग्रैंड स्लैम ख़िताब जीत रहे थे. रड अपना पहला ग्रैंड स्लैम फ़ाइनल खेल रहे थे. वे राफ़ा की टेनिस अकादमी के पूर्व छात्र थे. यानी ये गुरु शिष्य के बीच मुक़ाबला था. और गुरु ने बताया कि गुरु गुरु ही होता है.
इस साल जब जनवरी में राफ़ा ऑस्ट्रेलियाई ओपन खेल रहे थे तो 21 नंबर की चर्चा सबसे ज़्यादा थी. उन्होंने वो नंबर अविश्वसनीय ढंग से प्राप्त किया. लेकिन इस बार 22 से ज़्यादा 14 नंबर महत्वपूर्ण था. 2005 में उन्होंने पहला फ़्रेंच ओपन जीता था और वे ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे. इन 18 सालों में वे 14वां फ़्रेंच ओपन जीत रहे थे तो वे सबसे अधिक उम्र फ़्रेंच ओपन जीतने वाले खिलाड़ी बन रहे थे. ये अविश्वसनीय है. लेकिन महान खिलाड़ी वही होता है जो असंभव को इतना आसान बना देता है कि अविश्वसनीय उपलब्धि भी साधारण प्रतीत होने लगती है.
दरअसल एक प्रतियोगिता को 18 में से 14 बार जीतना उन्हें टेनिस का ‘गोट’नहीं बनाई बल्कि सम्पूर्ण खेल जगत का ‘गोट’ भी बनाती है. ये असाधारण उपलब्धि है.
दरअसल लाल मिट्टी पर राफ़ा खेलते नहीं बल्कि वे अपने खेल से किसी राग की बंदिश रचते है,कोई प्रेम में पगा पत्र लिखते है,जादू का कोई खेल दिखाते है और आप हैं कि उसके खेल के सम्मोहन में पड़ जाते हैं.
आज राफ़ा पर क्या लिखना बल्कि राफ़ा को लिखना है. एक पत्र. राफ़ा के नाम.
पाती
प्रिय राफ़ा,
मैं जानता हूँ कि तुम ‘मस्केटियर ट्रॉफ़ी’ के अनन्य प्रेम में हो. और मैं तुम्हारे खेल के प्रेम में आपादमस्तक डूबा हूँ.
शायद तुम जानते हो प्रेम में दो चीजें सबसे अनोखी और ज़रूरी होती हैं जिनकी वजह से प्रेम में सघनता और तरलता दोनों एक साथ बनी रहती है?
एक प्रतीक्षा!
और दूसरा प्रेम पत्र!
प्रेम में प्रतीक्षाएँ होती हैं. और ख़ूब होती हैं. प्रतीक्षाएँ बेचैनियां पैदा करती हैं. और इन बेचैनियों में अलग सुख है. अपने यथार्थ को तसव्वुर में जीने का सुख. लोग जो प्रेम में हैं,वो समझते हैं कि तसव्वुर में जीना यथार्थ को कितना बेहतर, कोमल और ख़ूबसूरत बना देता है. ये प्रेम को घनीभूत करता. सघन बनाता है.
और प्रेम में पत्र भावनाओं की अभिव्यक्ति को उड़ान देता है. प्रेम में पत्र मन की अंतरतम भावनाओं को ज़ुबान देता है. पत्र जिसमें भावनाएं किसी नदी की तरह बह निकलती हैं, बारिश की तरह बरसने लगती हैं, ख़ुशबू की तरह महकने लगती हैं, धूप की तरह चमकने लगती हैं. पत्र जो अंतर्मन को भिगो-भिगो देता है. प्रेम में पत्र प्रेम को सूखने से बचाते हैं. उसे बदरंग होने से बचाते हैं. दरअसल ‘प्रेम-पत्र’ प्रेम को तरल बनाये रखते हैं.
हम जानते हैं , तुम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में खेलते रहो, किसी भी मैदान पर अपने खेल से सम्मोहित करते रहो, तुम प्रतीक्षारत रहते ही हो कि कब वो घड़ी आए कि तुम रोलां गैरों की लाल मिट्टी पर अपने प्रेम के सुर छेड़ सको, ‘मस्केटियर’ को रिझा सको और उसका स्पर्श पा सको. अपने हाथों में उठाकर अपने अंक में समेट सको, उसको चूम सको, उसके प्रेम में रो सको, अपने आंसुओं से बहे प्रेम से उसे सराबोर कर सको. कितनी ख़ूबसूरत होती है न ऐसी प्रतीक्षाएं. तुमसे बेहतर और कौन जान सकता है.
और फिर प्रतीक्षा ख़त्म होती है. तुम किसी पागल दीवाने से रोलां गैरों चले आते हो, अपने रैकेट और बॉल से लाल माटी पर एक ऐसा ख़ूबसूरत प्रेम में पगा पत्र लिखते हो कि उसे बांचने ‘मस्केटियर’ किसी दीवानी-सी तुम्हारे पास चली आती है. यूं उसे रिझाने तो न जाने कितने चले आते हैं. पर तुम- सा संगीत कौन छेड़ पाता है. तुम-सा पत्र लिखने की सलाहियत किसी में कहां आ पाती है. तुम-सा प्रेमी कौन हो पाता है. साल दर साल यही चला होता चला आता है. हैं न.
तुम्हारी तरह हम भी साल भर प्रतीक्षारत रहते हैं. तुम्हारे खेल को जीने की प्रतीक्षा में, लाल मिट्टी पर तुम्हारे खेल के जादू से सम्मोहित होने प्रतीक्षा में, तुम्हारे रैकेट से निकले संगीत को सुनने की प्रतीक्षा में, तुम्हारे प्रेम पत्र को पढ़ने की प्रतीक्षा में, ‘मस्केटियर’ को तुम्हारे हाथों में देखने की प्रतीक्षा में, उसके मिलन से निकले खुशी के आंसुओं में डूब जाने की प्रतीक्षा में, तुम्हें उसे चूमता हुए देखने की प्रतीक्षा में. ये तुम्हारी जीत की गंध इतनी मादक होती है न कि साल भर मदहोशी बनी रहती है.
तुम साल दर साल आते हो और एक प्रेम पत्र लिख जाते हो. तो तुम्हारे खेल के प्रेम में पड़कर इस बार मैंने भी एक चिट्ठी तुम्हारे नाम लिखी है. जानते हो पहली बार बचपन में पहले क्रश को लिखा था ‘तुम बहुत ख़ूबसूरत हो’. दूसरी बार, जवानी में प्रेमिका को लिखा ‘तुम मुझे ख़त लिखना’. तीसरा, जीवन के तीसरे पहर तुम्हारे खेल की दीवानगी में, तुम्हारे नाम ‘तुम-सा कोई नहीं’.
पर इस बार ये दीवानगी चार शब्दों में कहां समा पाएगी. और इस लंबी पाती में भी कहाँ समा पाएगी भला.
तुम जानते हो कितने ही लोग दुनिया भर में कितनी कितनी जगहों पर जाते हैं किसी ख़ास मक़सद से. राहुल सांकृत्यायन खोए ज्ञान को खोजने के लिए दुनिया भर की यात्रा करते हैं. असगर वजाहत अपनी जड़ों को खोजने और पांच सौ साल पहले भारत आए अपने पूर्वजों के निशान ढूंढने ईरान के दुर्गम इलाकों की यात्रा करते है. अमृत लाल बेगड़ भक्ति भाव से नर्मदा के सौंदर्य लोक में अवगाहन करने के लिए नर्मदा परिक्रमा करते हैं. ओमा शर्मा अपने अनन्य प्रेरणा स्रोत और गुरु स्टीफेन स्वाइग की आत्मा को महसूसने को ऑस्ट्रिया के चप्पे-चप्पे को छान मारते हैं. मानव कौल ख़ुद को ढूंढने यूरोप की ख़ाक छानते हैं. उधर अनिल यादव पूर्वोत्तर भारत को पूर्वोत्तर भारत में खोजने में बरसों बिता देते हैं. एक अकेली लड़की अनुराधा बेनीवाल ‘एकला चलो’ की तर्ज़ पर बिना संसाधनों के यूरोप भर में भटकती है और दुनिया भर की लड़कियों से घुमक्कड़ बन जाने का आह्वान करती है.
जानते हो राफ़ा ऐसे ही मैं भी दुनिया भर की अनेकानेक जगहों पर जाना चाहता हूँ, उन्हें महसूस करना चाहता हूँ. मैं हिसार की उन गलियों को देखना चाहता हूँ जिनमें साइना ने सारे बंधनों को तोड़कर आकाश में उन्मुक्त उड़ान सीखी. पयोली की मिट्टी को छूकर धन्य होना चाहता हूँ जिसने उषा के पैरों को असीमित गति और शक्ति भरी. मणिपुर के गांव कंगथेई की उस हवा को महसूस करना चाहता हूँ जिसमें मैरी कॉम के मुक्कों को फ़ौलादी ताक़त मिली. मैं पाकिस्तान में लाहौर के उस ट्रैक को अपनी आंखों से देखने का सुख चाहता हूँ, जहां मिल्खा ‘उड़न सिख’ बने थे.
और इंग्लैंड में लॉर्ड्स के मैदान के पवेलियन में भी तो एक बार बैठना बनता है जिसमें 1983 जीत ने भारत में एक खेल को धर्म बना दिया और कुआलालंपुर के मरडेका स्टेडियम का एक चक्कर लगाकर दो आँसू भी तो बहाने हैं जहां भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी का सितारा अंतिम बार चमका.
और जर्मनी में बर्लिन के ओलंपिक स्टेडियम जाकर एक बार गर्व करना चाहता हूँ जहां ध्यानचंद ने हिटलर के ऑफ़र को ठुकराया था.
मैं अर्जेंटीना के सांता फे प्रान्त में पारणा नदी के पश्चिमी तट के उस सौंदर्य को निहारना चाहता हूँ जहां मेस्सी और रोजुक्के कि प्रेम कथा ने जन्म लिया और अर्जेंटीना के शहर लानुस को भी तो देखे बिना कैसे रहा जाएगा जहां माराडोना जैसा खिलाड़ी जन्म लेता है. ब्राजील के साओ पाउलो प्रांत के कस्बे बोरु में चाय की चुस्कियों के साथ महसूस करना चाहता हूँ कि कैसे चाय की दुकान पर काम करते हुए पेले ने फ़ुटबॉल के गुर सीखे और दुनिया का महानतम फ़ुटबॉलर बना. और अमेरिका के कैलिफोर्निया के जंगलों में जाकर एक बार ज़ार-ज़ार रो कर कोबे को श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ.
दिल मे ऐसी ही हज़ारों ख़्वाहिशें हैं, जिन्हें पूरा होना है. पर जानते हो राफ़ा अगर ये ख़्वाहिशें न भी पूरी हों तो बस एक ही ख़्वाहिश रहेगी, फ्रांस के शहर पेरिस को देखने की. इसलिए नहीं कि सीन नदी के किनारे बसा पेरिस दुनिया का सबसे सुंदर शहर है, कि वो दुनिया की फ़ैशन की राजधानी है, कि रोमन सभ्यता की विरासत के सबसे ख़ूबसूरत अवशेष इस शहर में हैं, बल्कि इसलिए कि ये दो ‘लिविंग लेजेंड्स’ का शहर है. ये मेस्सी शहर है, राफ़ा का शहर है. इस शहर में ‘पार्क द प्रिंसेस’ है इस शहर में ‘रोलां गैरों’ है. और इन दो जादू घरों में अनंत काल तक के लिए दो जादूगरों के जादू के तिलिस्म में खो जाने की ख़्वाहिश से इतर और कोई क्या ख़्वाहिश हो सकती है.
और ये भी कि अगर इन दोनों में भी किसी एक को चुनना हो तो ‘फ़िलिप कार्टियर अरीना’ से ख़ूबसूरत चयन क्या हो सकता है. फ़िलिप कार्टियर अरीना, मैं और तुम्हारे खेल का जादू. इससे बेहतर दुनिया में और क्या हो सकता है.
विंसेंट नवार्रो अपरिसिओ हो जाने की चाहत के अलावा और क्या चाहा जा सकता है.
नवार्रो, सुपर फैन नवार्रो. जानते हो न. वही नवार्रो जो स्पेनिश फ़ुटबॉल क्लब वेलेंसिया का अनोखा फ़ैन था. वेलेंसिया क्लब का मेम्बर नंबर 18, जो साठ के दशक से अपनी मृत्यु तक लगातार वेलेंसिया के हर मैच में उपस्थित रहा था. सबसे बड़ी बात तो यह कि 54 साल की उम्र में दृष्टिहीन हो जाने के बावजूद उसने वेलेंसिया का कोई भी मैच नहीं छोड़ा. वेलेंसिया के घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम के ट्रिब्यूना सेंट्रल सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट न.164 पर बैठकर अपनी दृष्टिहीनता के बावजूद स्टेडियम के वातावरण और बेटे के आंखों देखे हाल से हर मैच का आनंद लेता. 2017 में वेलेंसिया के उसकी मृत्यु हुई. और तब क्लब ने उसके सम्मान में 2019 में उसकी उस सीट पर उसकी कांसे की मूर्ति स्थापित कर दी.
दस मार्च 2020 को चैंपियंस लीग के प्री क्वार्टर फ़ाइनल मैच के दूसरे चरण के मैच में वेलेंसिया क्लब अतलांता क्लब को अपने घरेलू मैदान मेस्तला स्टेडियम में होस्ट किया. कोरोना के कारण ये मैच बिना दर्शकों के आयोजित करने का निर्णय लिया गया. लेकिन यह कैसे संभव हो सकता था कि मेस्तला स्टेडियम में नवार्रो उपस्थित न हो. सेंट्रल ट्रिब्यूना सेक्शन की 15वीं पंक्ति की सीट नंबर 164 पर वेलेंसिया टीम का अनोखा दीवाना नवार्रो इस बार भी बैठा था. सच में क्या ही कमाल है उस मैच का नवार्रो एकमात्र दर्शक था, जो अकेले किसी राजा की तरह उस मैच का आनंद ले रहा था.
मैं भी नवार्रो की तरह एकांत में उस अद्भुत संगीत का आनंद लेना चाहता जो तुम अपने खेल से रचते हो. जब तुम लाल बजरी पर लय में खेलते हो तो वो किसी राग की बंदिश से कम कहाँ होता है. ऐसी बंदिश जिसके सम्मोहन में एक बार बंध जाएं तो फिर कभी मुक्त ही ना होना चाहें. कितनी बंदिशें तुमने उस अरीना में बिखरे दी है जो अब हमेशा के लिए रोलां गैरों में कोने कोने में व्याप गयी होंगी जिन्हें आने वाले अनंत काल तक सुना जा सकता है.
इस बार तुम यहाँ आये तो आये. आगे शायद तुम न आ पाओ. समय हाथों से फिसल जो रहा है. जब तुम कहते हो कि 22वां ख़िताब कुर्बान करके तुम नया पैर लेना चाहोगे तो समझ में आता है तुम्हारी चोटों का क्या हाल है.
तुम्हें तुम्हारा ये प्यार मुबारक. ये जीत मुबारक.
राफ़ा तुम खिलाड़ी कहां तुम तो कमाल हो.
तुम्हारा प्रशंसक.
कवर | in.pinterest.com से साभार
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