गिरीश कर्नाड के नाटक ‘अग्नि और बरखा’ में एक प्रसंग है, जब नाटक के अंतर्गत इंद्रविजय नाटक का मंचन होना है. नाटक में अरवसु को वृत्रासुर की भूमिका करनी है इसके लिए उसे वृत्रासुर का मुखौटा पहनना पड़ता है और अभिनय के दौरान वह भूमिका से बाहर निकल कर वृत्रासुर को जीने लगता है. [….]