छत्र पहले से, छतरी तो बहुत बाद में आई
बारिश में भीगने से बचने के लिए नहीं, छतरी की ईजाद तो विशिष्ट लोगों को धूप से बचाने के लिए हुई. दुनिया की तमाम सभ्यताओं में छत्र का चलन सदियों पुरानी तस्वीरों या शिल्प में भी देखने को मिल जाता है. कुलीन स्त्रियों या गणमान्य लोगों का रंग धूप में काला होने से बचाने के लिए ही संभवतः इसकी ज़रूरत पड़ी हो
आमतौर पर हम जिसे छाता, छतरी या अम्ब्रेला कहते हैं, उसे ही धूप और बारिश दोनों ही से बचने के लिए इस्तेमाल कर लेते हैं. मगर हमेशा से ऐसा नहीं था.
हिन्दी में जो छत्र है, वह धूप से बचने की युक्ति है. छत्र या परासोल और यह जो परासोल है, फ़्रेंच मूल का हैं. परा का आशय ढाल से है और सोल यानी सूरज. तो परासोल धूप से बचाता है, अलग-अलग क़िस्म के कपड़ों और बनावट में हो सकता है. प्लूई के मायने हैं बारिश, परा में इसे जोड़ देने से बना पराप्लूई, बारिश में काम आता है.
लैटिन में अम्ब्रा के मायने हैं – छाया और अंग्रेज़ी का अम्ब्रेला इसी से बना. हालांकि इटली वाले जो ओम्ब्रेलो इस्तेमाल करते थे, उसका शाब्दिक अर्थ तो छाया है.
इसके अलावा दुनिया भर की तमाम ज़बानों में अलग-अलग नामों से पुकारे जाने वाले छाते का ज़िक्र आज यूं कि चार मई 1715 को एक फ़्रेंच ज्यां मरिया ने पहली बार ऐसा छाता ईजाद किया था, जिसे मोड़कर रखा जा सकता था. इस व्यावहारिक छाते की बदौलत पेरिस के अभिजात लोगों को बारिश के वक़्त घर में बंद रहने के बजाय सड़कों-बाज़ार में निकलने की आज़ादी मिली. इस ‘पॉकेट अम्ब्रेला’ ने दुकानदारों का भी बहुत भला किया.
आवरण | विकीमीडिया कॉमन्स
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