भारत-रूस शिखर बैठक | भरोसमंद साझेदारी को बढ़ावा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ 21वीं भारत-रूस शिखर बैठक के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 6 दिसंबर को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं. उनकी यह यात्रा ‘भारत-रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ को और बढ़ावा देने के दोनों नेताओं के निरंतर प्रयासों का हिस्सा है. बहुध्रुवीय और वैश्वीकरण की इस नई व्यवस्था में भरोसेमंद भागीदारों के लिए पारस्परिक हितों के प्रति स्थायी संवेदनशीलता सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. अभूतपूर्व क्षेत्रीय और वैश्विक परिवर्तनों के माहौल में मोदी-पुतिन की यह बैठक न केवल संजीवनी का काम करेगी, बल्कि यह भरोसे-भाईचारे में और अधिक जीवन-शक्ति पैदा कर सकती है.
विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी
भारत-रूस संबंध, बदलते समय और राष्ट्रीय हितों में हो रहे लगातार बदलाव के बावजूद अडिग रहा है. तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद दोनों देशों के बीच संबंध समय के साथ और गहरे ही हुए हैं. यह असाधारण लचीलापन रणनीतिक राष्ट्रीय हित की मजबूत नींव और भू-राजनीति के तालमेल पर बनाया गया है. शीत युद्ध के बाद के युग में भारत आज की वैश्विक बहस में एक आर्थिक महाशक्ति और एक प्रमुख हितधारक के रूप में उभरा है, फिर चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार या आतंकवाद से ख़तरे से निपटने का मसला ही क्यों न हो.
रूस की वैश्विक स्थिति और उपस्थिति, प्रगाढ़ सामंजस्य के दृष्टिकोण से दोनों देशों के लिए फ़ायदेमंद साबित होगी. दोनों देशों के बीच का यह रिश्ता समय के साथ-साथ ज़्यादा बेहतर और गहरा हुआ है. अक्टूबर 2000 में ‘भारत-रूस सामरिक साझेदारी पर घोषणा’ पर हस्ताक्षर के साथ ही रूस भारत के सबसे क़रीबी दोस्तों और सहयोगियों में शुमार हो गया, जिससे रणनीतिक, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, ऊर्जा, परमाणु, व्यापार और वाणिज्य, संस्कृति और दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी जुड़ाव के क्षेत्रों में नए अवसर बने. सुचारु संचालन के लिए यह रणनीतिक साझेदारी एक संस्थागत संवाद-तंत्र द्वारा शासित थी, जिसमें राजनीतिक और आधिकारिक दोनों स्तरों पर प्रमुख हितधारक शामिल थे. दिसंबर 2010 में राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से भारत-रूस संबंधों में उस वक़्त एक नए अध्याय की शुरुआत हुई, जब सामरिक साझेदारी को ‘विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ के स्तर तक बढ़ा दिया गया.
अभिसरण और विचलन
भारत और रूस में विभिन्न क्षेत्रों में फैले अभिसरणों की दुनिया है. रूस भारतीय सशस्त्र बलों के लिए हथियार और आयुध का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो 60 प्रतिशत से अधिक हथियारों की आपूर्ति करता है. इसमें थल सेना, वायु सेना और नौसेना के इस्तेमाल में आने वाले ज्यादातर हथियार शामिल है. भारत ने हाल ही में एस-400 ट्राएम्फ़ मिसाइल सिस्टम सेना में शामिल किया है. सुखोई एसयू-30 लड़ाकू विमान, टी-90 टैंक, क्रिवक श्रेणी का स्टील्थ फ़्रिगेट भारतीय सशस्त्र बलों के प्रमुख हथियार हैं. भारत-रूस रक्षा सहयोग एक क्रेता-विक्रेता मॉडल से आगे बढ़कर सैन्य-तकनीकी सहयोग के नए क्षेत्रों में विकसित हुआ है.
ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम संयुक्त अनुसंधान, विकास और उत्पादन का एक सफल सहयोग था. विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु, ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रमुख प्रेरक शक्ति रहे हैं. वर्तमान में भू-राजनीतिक मतभेदों के कारण हितों और क्षमताओं में आ रहा बदलाव भारत और रूस के बीच के अंतर को बढ़ा रहा है. भू-रणनीति के एल्गोरिथम में, रूस को चीन के साथ जोड़ा गया है और भारत का संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर अधिक झुकाव है. यह विसंगति अफ़गानिस्तान पर भारत और रूस के दृष्टिकोण में स्पष्ट थी. अगर द्विपक्षीय व्यापार की बात करें तो दोनों देश रक्षा और ऊर्जा से लेकर, आईटी, फार्मास्यूटिकल्स, कृषि-उद्योग, खनिज और धातु विज्ञान, उर्वरक और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं. इसके बावजूद 2019–20 में भारत-रूस व्यापार 10.11 बिलियन यूएस डॉलर मूल्य का है, जो उस क्षमता का सही प्रतिबिंब नहीं है जिसका दोहन किया जा सकता है.
स्थिरता और विविधता सुनिश्चित करना
दोनों देशों के बीच सहयोग का दायरा बढ़ाने के लिए ‘2+2’ संवाद की कार्ययोजना तैयार की गई . दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच हुआ ‘2+2’ का उद्घाटन संवाद ‘भारत-रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी’ को नई ऊर्जा देने का वादा है. इस दृष्टिकोण की विशिष्टता न केवल परिणामोन्मुखी सहयोग सुनिश्चित करती है बल्कि आपसी सरोकारों और हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों पर भी विचार-विमर्श करती है. ऐसे समय में जब वैश्विक राजनीति में काफी फेरबदल हो रहा है, तो नेतृत्व के भरोसे के साथ-साथ भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक वास्तविकताओं के साथ तालमेल अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है.
इसलिए यह उभरती हुई राजनीतिक संरचना रिश्तों में आई खटास को दूर करने और आपसी संबंध को और मजबूत करने का मौक़ा है. मोदी-पुतिन शिखर सम्मेलन पर पूरी दुनिया की निगाहें टिकी हुई है, इसलिए इस सम्मेलन के ज़रिए दुनिया को स्पष्ट संकेत देने की ज़रूरत है कि भारत-रूस साझेदारी स्थिरता और विविधता सुनिश्चित करने वाली मज़बूत मैत्री है.
शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा, व्यापार और निवेश, ऊर्जा, और विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे मुद्दों के हावी रहने की संभावना है लेकिन भारत और रूस को ख़ासतौर से दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया में त्रिपक्षीय या अन्य किसी प्रभावी तरीके से काम करने की ज़रूरत है. दोनों देशों के बीच बढ़ता सहयोग इस क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा देगा और बहुपक्षवाद को मजबूत करते हुए अधिक विविधता लाएगा.
दूसरा, दोनों देशों को युवाओं को फिर से जोड़ने और खेल, सांस्कृतिक, औद्योगिक, आध्यात्मिक और धार्मिक अध्ययन सहित विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है. दोनों देशों के युवाओं के बीच बेहतर जुड़ाव भविष्य के लिए नए रिश्ते बनाएगा.
अंत में, बौद्ध धर्म दोनों देशों के लिए अपनी बातचीत का विस्तार करने के लिए एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसका उद्देश्य शांति और स्थिरता स्थापित करना है, और यह इस अशांत दुनिया में मरहम का काम कर सकता है. हम पहले से ही बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण के प्रत्यक्षदर्शी हैं. नालंदा विश्वविद्यालय अपनी अटूट ज्ञान परंपरा के माध्यम से इन दो ज्ञान समुदायों के बीच संबंध विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
(लेखक नालंदा विश्वविद्यालय, राजगीर में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं.)
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