करतबी घुड़सवार जो आधुनिक सर्कस का जनक बना
सर्कस का ज़िक्र होते ही प्रशिक्षित जानवरों के तमाशे, नट, विदूषक या कलाबाज़ों के करतब की याद आ जाती है मगर इन सबका इतिहास तो पुराना है. 18वीं सदी के आख़िर में इन सबको मिलाकर जो तमाशा बनाया गया, वही आधुनिक सर्कस की बुनियाद बना. और इसका श्रेय अंग्रेज़ी घुड़सवार सेना में हवलदार मेजर रह चुके फ़िलिप एस्ट्ली को है. एस्ट्ली ने 9 जनवरी 1768 को लंदन में वॉटरलू रेलवे स्टेशन के क़रीब एक मैदान में घोड़े पर सवार होकर असंभव समझा जाने वाला करतब करके दिखाया था. दर्शकों के बीच एक तंग घेरे में घोड़े पर सवार होकर वह तलवार लहराते हुए घूमे, जबकि उनका एक पांव काठी पर और दूसरा घोड़े के सिर पर था.
एस्ट्ली के इस करतब को लोगों ने इतना पसंद किया कि जल्दी ही उन्होंने कुछ घुड़सवार, जोकर और पार्श्व संगीत के लिए साजिंदों को बाक़ायदा नौकरी पर रख लिया. जिस रिंग में वह करतब दिखाते थे, सन् 1770 में उसके ऊपर छत बनवाकर उन्होंने उसे ‘एस्ट्ली एम्फ़ीथिएटर’ कहा. उनके इस सर्कस को इतनी ख्याति मिली कि सन् 1772 में उन्हें किंग लुई XV के सामने घुड़सवारी के अपने हैरतअंगेज़ करतब दिखाने के लिए वर्साय आने का न्योता मिला. वहां जाकर उन्हें लगा कि फ्रांस उनके करतब के लिहाज़ से बेहतरीन ठिकाना है. 1782 में उन्होंने वहां भी स्थायी शो का इंतज़ाम किया. अपनी ज़िंदगी में एस्ट्ली ने पूरे यूरोप में 18 सर्कस स्थापित किए. एस्ट्ली ने हालांकि ख़ुद अपने प्रदर्शन को कभी सर्कस नहीं कहा मगर तब तक मनोरंजन के इस नए माध्यम को सर्कस के नाम से मान्यता मिल चुकी थी.
एस्ट्ली एम्फ़ीथिएटर अब नहीं है मगर एम्फ़ीथिएटर को और एस्ट्ली के कारनामों को तमाम कहानी-क़िस्सों में जगह मिली, चार्ल्स डिकेन्स और जेन ऑस्टिन के उपन्यासों में भी इसका ज़िक्र हुआ है. डांस की तीन धुनें भी एस्ट्ली के नाम हैं – एस्ट्ली राइड्स, एस्ट्लीज़ फ़्लैग और एस्ट्लीज़ हॉर्नपाइप. जहां एस्ट्ली का एम्फ़ीथिएटर था, वहां दुनिया के पहले सर्कस और इसे बनाने वाले एस्ट्ली की याद दिलाती एक पट्टी लगी हुई है.
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