कुसूरः वर्दी के भीतर के इंसान से अंतरंग साक्षात्कार

  • 9:40 pm
  • 2 February 2020

इक्कीसवें भारत रंग महोत्सव का उद्घाटन जब मंडी हाउस के कमानी ऑडिटोरियम में हो रहा था उसके कुछ घंटे पहले शाहीन बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए बैठे लोगों पर एक युवक ने गोली चलाने की कोशिश की, वहां पुलिस का भारी बंदोबस्त था. शाम को भारत रंग महोत्सव का उद्घाटन एक ऐसे नाटक से हुआ, जो एक पुलिस अधिकारी के अपराध बोध के बारे में था. वैसे तो ये संयोग मात्र है लेकिन यथार्थ की घटना एक सतत सामाजिक आलोड़न के कारण घटित हुई थी, वहीं रंगमंच इस सामाजिक हलचल की पहचान कर उसे दर्शकों के सामने रख रहा था. दोनों यानी यथार्थ की घटना और नाटक एक दूसरे से अलग लेकिन कितना जुड़े हुए. वैसे आजकल यथार्थ भी कम नाटकीय नहीं जिसमें निरंतर बदलते दृश्यों की नाटकीयता में समाज फंस गया है. शाहीन बाग में दोनों दिन गोली चलाने वाले युवक पुलिस की तरफ बढ़े, जिनसे उन्हें खौफ़ खाना चाहिए था लेकिन वो अपराध करने के बाद पुलिस की पकड़ में सुरक्षित हुए. क्या अपराधियों का भरोसा पुलिस पर बढ़ता जा रहा है? वहीं पुलिस जो एक विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में घुस कर छात्रों को मार रही थी, इसी शहर में एक दूसरे विश्वविद्यालय में नकाबपोश छात्रों को मार रहे थे तो पुलिस मुकदर्शक बनी हुई थी. पुलिस की वर्दी के भीतर का इंसान क्या सोच रहा था? क्या ताक़त की जगह पर बैठे व्यक्ति के मन में अपराध बोध होता है कभी, अगर हो तो क्या समाज उससे बेहतर नहीं होगा? प्रस्तुति देख कर निकलने के बाद ये सवाल जेहन में उभरने लगते हैं.

भारंगम की उद्घाटन प्रस्तुति ‘कुसूर’ डेनिश फिल्म ‘द मिस्टेक’ से प्रेरित है, हिंदी नाट्य आलेख तैयार किया है संध्या गोखले ने जो सहायक निर्देशक भी हैं. अस्सी मिनट की प्रस्तुति ‘कुसूर’ से अमोल पालेकर ने पच्चीस वर्षों के बाद निर्देशक और अभिनेता के रूप में जब रंगमंच पर वापसी की है तो ऐसा कथ्य चुना है जो वर्दी के भीतर के इंसान से अंतरंगता में साक्षात्कार करवाता है. कथ्य इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति का गलती करना कोई बड़ी बात नहीं है बड़ी बात गलती को स्वीकार करना है, गलती को सही ठहराने का लिए तर्क जमा करना नहीं है. प्रस्तुति एक समुदाय विशेष के प्रति समाज के लगातार जजमेंटल होते चले जाने और उससे उत्पन्न हो सकने वाले समस्याओं को भी रेखांकित करता है.

‘कुसूर’ एक बरसाती रात के बारे में है. सेवानिवृत पुलिस अधिकारी दंडवते पुलिस कंट्रोल रूम में स्वयंसेवा करते हैं, इसी कंट्रोल रूम में तरह तरह के कॉल आते हैं जिससे शहरी परिवेश का भी पता चलता है और पुलिस के काम करने की मुश्किलों का भी. इस रात एक कॉल डरी हुई महिला का आता है जिसकी मुश्किल सुलझाने में दंडवते तत्परता से काम करते हैं, वो पुलिस के तंत्र के साथ अपने संपर्कों का भी सहारा लेते हैं, मामला सुलझाते सुलझाते दंडवते का सामना अपने अतीत, अपने पूर्वग्रह से होता ही समाजिक परिवेश का भी उद्घाटन होता है. एक पुराने केस का फैसला भी होना है जिसका इंतजार दंडवते, उसका साथी पुलिस अधिकारी, और मीडिया भी कर रही है इसी में यह कॉल दंडवते के अतीत को वर्तमान के सामने खड़ा कर देता है.

तंत्र में ताक़त की जगह पर रहने वाले लोग निरंकुश हो जाएं तो क्या होगा? हर तरह की मुसीबत में लोग पुलिस का भरोसा करते हैं उस तक अपनी समस्या पहुंचाना चाहते हैं ऐसे में पुलिस अगर अपने दायित्व से मुंह मोड़ ले तो…? नाटक में यह सवाल मुखर नहीं है लेकिन दण्डवते के अपराध बोध में इस दायित्व को ठीक से निभाने की तत्परता और गलती कर देने के एहसास में यह डर छुपा हुआ है. कावेरी कहती है कि आप पुलिस हैं आप मार सकते हैं, क्या सच में? पुलिस की वर्दी के पीछे जो इंसान है उसमें इंसानियत की बहाली कैसे होगी, अपने भीतर के साक्षात्कार से ही, प्रस्तुति शिद्दत से यह बात दर्शकों के सामने रखती है.

मंच पर पच्चीस साल बाद वापसी कर रहे अमोल पालेकर ने दंडवते के किरदार को संजीदगी से अभीनित किया है. अमोल एक उम्रदराज पुलिस अधिकारी के भीतर के अपराध बोध, होशियारी, थकान, हताशा को ब्यौरे में अभिव्यक्त करते हैं. किरदार को छोटी छोटी शारीरिक और भाषिक भंगिमा के सहारे यथार्थवादी विन्यास देते हैं. यह किरदार मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती भाषा में बात करते हुए लोगों की समस्या सुनता है. मंच पर सबसे अधिक समय तक अमोल पालेकर रहते हैं, तीन किरदार आते हैं ओर चले जाते हैं. फोन कॉल्स और उससे बातचीत में कहानी क्लाइमेक्स तक पहुंचती है. प्रकाश परिकल्पना अभिनेता अमोल पालेकर के चेहरे की एक एक भंगिमा को उभारती है, अमोल के कुछ-कुछ एक्शन क्लिशे और गणितीय लगते हैं, लेकिन तरह तरह के फोन कॉल से जूझते अमोल तनाव और तत्परता दोनों को ही उभारते हैं, विदग्धता को भी. प्रस्तुति की परिकल्पना थ्रिलर की तरह है. किसी अप्रत्याशित के घटित होने की आशंका लगातार बनी रहती है. मंच परिकल्पना युक्तिपूर्ण है दो टेबल, कुछ बल्ब, कम्प्यूटर, टेलिफोन, विंग्स जिस पर मुंबई का नक्शा छपा हुआ है, के सहारे पुलिस कंट्रोल रूम का माहौल बना हुआ है. पृष्ठध्वनि थ्रिलर का परिवेश तो बनाती ही है, चूंकि फोन कॉल्स भी उसी परिकल्पना का हिस्सा है जिससे अभिनेता को तालमेल बैठाना है तो उसका भी कुशल सामंजस्य है.

प्रस्तुति से पहले भारंगम के उद्घाटन सत्र में विदूषी रीता गांगुली ने कहा था कि अभिनेता बगैर लाइट, स्टेज, कॉस्ट्यूम को कम्युनिकेट कर देगा अमोल पालेकर ने साबित किया कि कम तामझाम, तकनीक का युक्तिपूर्ण इस्तेमाल और कथ्य, जिसमें कौतूहल का समावेश से और अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया जा सकता है. नये अभिनेता सीख सकते हैं कि बुनियाद अभिनय ही है, जो दर्शकों को बांधे रखता है.

‘कुसूर’ की प्रस्तुति के पहले इक्कसीवें भारत रंग महोत्सव का उद्घाटन हुआ. विशिष्ट अतिथि थीं विदुषी रीता गांगूली, अभिनेता निर्देशक मोहन आगाशे और संस्कृति विभाग की सचिव निरुपमा कोतरू. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रभारी निदेशक सुरेश शर्मा ने स्वागत भाषण में कहा कि भारंगम में पिछले बीस सालों मे 25 हजार घण्टों की प्रस्तुति हुई है.अध्ययन हमारा मुख्य कार्य है जो नाट्य प्रशिक्षण प्रस्तुति के बिना पूरा हो नहीं सकता. भारंगम में खेले गए नाटक प्रशिक्षकों के लिये प्रस्तुति का पाठ उपलब्ध कराते हैं. भारंगम की चयन प्रक्रिया पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि बहुलता विविधता वाले देश मे चुनाव का पैमाना तय करना कठिन है फिर भी देश की विविधता के प्रतिनिधित्व का प्रयास रहता है. रानावि के प्रकाशन कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि रंगकर्मियों पर लिखे 12 मोनोग्राफ प्रकाशित होंगे जिसमें सत्तू सेन और ओम शिवपुरी पर लिखा मोनोग्राफ इस भारंगम में उपलब्ध होगा.

मंच पर संस्कृति मंत्रालय की सचिव ने दर्शकों से कहा कि टिकट कटा कर नाटक देखें और रंगमंच की मदद करें. मोहन आगाशे ने अपने संक्षिप्त भाषण में कहा कि अधिक तकनीक एकांत पैदा करता है सामूहिकता नहीं, और रंगमंच यथार्थ और आभासी में फर्क करना सीखाता है और जीवंत बनाए रखता है. रीता गांगुली ने रानावि के अपने शिक्षक जीवन को याद किया, अपने गुरु इब्राहिम अलकाज़ी को और अपने विद्यार्थियों को भी. अपने चुटीले अंदाज में उन्होंने कहा कि ईश्वर की कृपा से ढाई हजार ग़ज़लें याद हैं और जो नहीं याद है गाती नहीं हूं. एक्टर के लिए वक़्त की अहमियत है उसकी पाबंदी बहुत ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि हमारे देश में 10वीं क्लास के बाद कुछ सिखाया नहीं जाता इसलिए और युवा छात्रों को रानावि में प्रवेश देने पर विचार करना चाहिए ताकि प्रशिक्षण में उनका ईगो आड़े न आए. उद्घाटन सत्र को कार्यकारी अध्यक्ष अर्जुन देव चारण ने भी संबोधित किया धन्यवाद ज्ञापन अभिलाष पिल्लई ने किया. गौरतलब है कि भारत रंग महोत्सव विश्व का एक महत्त्वपूर्ण रंग महोत्सव है, इस साल इसका इक्कसीवां संस्करण है, जो एक फरवरी से इक्कीस फरवरी तक चलेगा जिसमें सौ से अधिक प्रस्तुतियां होंगी. सेटेलाइट महोत्सव देहरादून, शिलांग, पुदुच्चेरी और नागपुर में होगा.

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