133 साल का जासूस और नाचती हुई आकृतियों का रहस्य
सन् 1887 में छपी कहानी ‘अ स्टडी इन स्कार्लेट’ जासूस शरलॉक होम्स के कारनामों की पहली कहानी थी. एडिनबरा विश्वविद्यालय में मेडिसिन की पढ़ाई करते हुए आर्थर कॉनन डायल अपने एक शिक्षक डॉ. जोसेफ़ बेल की जिन ख़ूबियों से बेहद प्रभावित हुए थे, शरलॉक होम्स का किरदार बहुत कुछ उन ख़ूबियों की ही प्रतिच्छवि था.
पढ़ाई करके लंदन लौटे कॉनन डायल की मेडिकल प्रैक्टिस का यह हाल था कि लिखने के लिए उनके पास फ़ुर्सत भी इफ़रात थी. सन् 1891 में ‘द स्ट्रांड’ मैग्ज़ीन में शरलॉक होम्स के किरदार वाली छह जासूसी कहानियों की श्रृंखला शुरू हुई तो इतनी लोकप्रिय हुई कि प्रैक्टिस-वैक्टीस छोड़कर आर्थर कॉनन डायल फ़ुलटाइम लेखक बन गए.
14 अक्टूबर 1892 को आया उनका संग्रह ‘द एडवेंचर्स ऑफ़ शरलॉक होम्स’ इसी का नतीजा था. 56 कहानियों और चार उपन्यासों के नायक शरलॉक होम्स की मक़बूलियत का अंदाज़ लगाने को यह जानना काफ़ी होगा कि 221-बी, बेकर स्ट्रीट के उसके कल्पित पते पर लोगों के ख़त अब भी आ जाते हैं. डाक महकमा ये ख़त हालांकि शरलॉक होम्स म्युज़ियम को भेज देता है.
तो 133 पहले वजूद में आया कहानियों का नायक जासूस शरलॉक होम्स आज भी पूरी दुनिया में पहचाना जाता है, एक सदी से ज़्यादा का वक़्त गुज़र जाने के बाद भी उसके कारनामों में लोगों की दिलचस्पी बरक़रार है. ‘नाचती आकृतियां’ राजकमल प्रकाशन से आ रहा शरलॉक होम्स के कारनामों की ऐसी ही सात कहानियों का संग्रह है, जिनका अनुवाद संजीव निगम ने किया है. यह कहानी अंश इसी संग्रह से है..
होम्स कुछ घंटों से चुपचाप बैठा था. उसकी पतली, लम्बी कमर उस बर्तन पर झुकी हुई थी जिसमें वह कोई बदबूदार रसायन तैयार कर रहा था. उसका चेहरा छाती की तरफ़ झुका हुआ था. उस वक़्त मुझे वह धूसर पंखों और काली कलगी वाले एक अजीब से बड़े पक्षी जैसा दिखाई दे रहा था.
“तो, वॉटसन, ” उसने अचानक कहा, “तुम दक्षिण अफ्रीकी सेक्युरिटीज़ में निवेश नहीं करना चाहते हो? ”
मैंने उसे आश्चर्य से देखा. हालाँकि मैं होम्स की हैरतअंगेज़ क्षमताओं से परिचित था लेकिन मेरे एकदम आंतरिक विचारों का उसे यूँ पता चल जाना मेरे लिए आश्चर्यजनक था.
“हे भगवान, तुम्हें इसका पता कैसे चला? ” मैंने पूछा.
उसने अपने स्टूल को मेरी तरफ़ घुमाया, उसके हाथ में एक परखनली थी जिससे भाप निकल रही थी, और उसकी गहरी आंखों में एक चमक थी.
“वॉटसन, तुम्हें मानना पड़ेगा कि तुम्हें घोर ताज्जुब हुआ.” उसने कहा.
“यक़ीनन.”
“मैं चाहता हूँ कि तुम इस बात को एक काग़ज़ पर लिखकर हस्ताक्षर कर दो.”
“पर क्यों? ”
“क्योंकि पाँच मिनट बाद तुम कहोगे कि ये तो बड़ा आसान था.”
“नहीं, भरोसा रखो मैं ऐसा कुछ नहीं कहूंगा.”
“तो देखो मेरे प्यारे वॉटसन, ” उसने अपनी परखनली एक रैक में रखी और इस तरह बोलना शुरू किया जैसे कोई प्रोफ़ेसर अपनी क्लास में लेक्चर दे रहा हो, “निष्कर्षों की श्रृंखला बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, सब निष्कर्ष एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं. अगर ऐसा करने के बाद, बीच की सारी बातें हटाकर श्रोताओं को सिर्फ़ शुरुआत और अन्तिम निष्कर्ष बता दिया जाए तो कोई भी आदमी अपना बड़ा चमत्कारी प्रभाव डाल सकता है. अब इसी बात को लो. तुम्हारी बाईं तर्जनी और अँगूठे के बीच के खांचे का निरीक्षण करने के बाद यह बताना कोई ज़्यादा मुश्किल नहीं था कि तुम अपनी छोटी-सी पूँजी को सोने की खदानों में निवेश करने के लिए तैयार नहीं हो.”
“मुझे इसमें कोई तुक नहीं लगती है.”
“हाँ, बहुत सम्भव है कि न लगती हो. अब मैं तुम्हें फटाफट एक सम्बन्ध दिखाता हूँ. देखो ये हैं इस श्रृंखला के बीच के तार :
1. कल रात जब तुम क्लब से लौटे थे तब तुम्हारी बाईं तर्जनी और अंगूठे के बीच चॉक था.
2. चॉक तुम्हारी उँगली में तब लगा था जब तुमने बिलियर्ड्स खेलते वक़्त छड़ी की नोक पर उसका इस्तेमाल किया था.
3. तुम थर्स्टन के सिवाय और किसी के साथ बिलियर्ड्स नहीं खेलते हो.
4. तुमने चार सप्ताह पहले कहा था कि थर्स्टन के पास किसी दक्षिण अफ्रीकी प्रापर्टी का प्रस्ताव है जो एक महीने में ही समाप्त हो जाएगा और वह चाहता था कि तुम उसमें उसके साथ निवेश करो.
5. तुम्हारी चेक बुक मेरी दराज़ में बन्द है और तुमने उसकी चाभी नहीं माँगी.
6. इसका मतलब है कि तुम इस तरह से अपना पैसा निवेश नहीं चाहते हो.”
“हत्त तेरे की, कितना आसान है यह! ”
“बेशक, ” उसने चिढ़ाने वाले ढंग से कहा, “किसी भी गुत्थी को जब सुलझा दिया जाता है तो वह बड़ी बचकानी लगने लगती है. चलो अब एक बिना सुलझी गुत्थी लो. देखते हैं तुम इससे क्या समझते हो, मेरे प्यारे वाटसन.” उसने एक काग़ज़ को मेज़ पर उछाला और फिर अपने रासायनिक विश्लेषण में व्यस्त हो गया.
मैं उस काग़ज़ पर बनी अजीब-सी चित्रलिपि को देखता रह गया. “ अरे, होम्स यह तो किसी बच्चे की चित्रकारी है, ” मैं चिल्लाया. “यह तुम्हारी सोच है.”
“और क्या हो सकती है यह? ”
मैं उस काग़ज़ पर बनी अजीब-सी चित्रलिपि को देखता रह गया. “ अरे, होम्स यह तो किसी बच्चे की चित्रकारी है, ” मैं चिल्लाया.
“यह तुम्हारी सोच है.”
“और क्या हो सकती है यह? ”
“यही बात तो नारफ़ॉक के राइडिंग थोर्प मनोर के मिस्टर हिलटन क्यूबिट जानने को उत्सुक हैं. यह छोटी-सी पहेली पहली डाक से आई है और वे इसके पीछे-पीछे अगली ट्रेन से आ रहे हैं. वॉटसन, देखो, दरवाज़े की घंटी बजी है. मुझे ताज्जुब नहीं होगा अगर दरवाज़े पर वही हों.”
फ़ोटो | विकीमीडिया कॉमन्स
सम्बंधित
राजकमल ने छापा ‘क़ब्ज़े ज़माँ’ का हिंदी अनुवाद
अपनी राय हमें इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.
दुनिया जहान
-
बेसबब नहीं अपनी जड़ों की तलाश की बेचैनीः राजमोहन
-
और उन मैदानों का क्या जहां मेस्सी खेले ही नहीं
-
'डि स्टेफानो: ख़िताबों की किताब मगर वर्ल्ड कप से दूरी का अभिशाप
-
तो फ़ैज़ की नज़्म को नाफ़रमानी की दलील माना जाए
-
करतबी घुड़सवार जो आधुनिक सर्कस का जनक बना
-
अहमद फ़राज़ः मुंह से आग लगाए घूमने वाला शायर
-
फॉर्म या कंटेंट के मुक़ाबले विचार हमेशा अहम्
-
सादिओ मानेः खेल का ख़ूबसूरत चेहरा