हुक़्क़े और तंबाकू में नफ़ासत तो लखनऊ की ईजाद

मजलिसों और महफ़िलों का हाल हम बयान कर चुके, अब ज़रूरत मालूम होती है कि हम गोष्ठी के लिए आवश्यक वस्तुओं का भी सविस्तार वर्णन करें क्योंकि ये वे चीज़ें है जिनसे समाज ओंर उसके आचार-व्यवहार का पता चलता है. सभा-समाज में आमंत्रित मेहमानों के लिए एक नहीं अनेक वस्तुएं हैं, जिनका हम अवसर आने पर जिक्र करेंगे. मगर फ़िलहाल सबसे ज़्यादा महत्व की चीज़ें हुक़्क़ा, ख़ासदान, लुटिया और उगालदान हैं.ये इतनी ज़रूरी चीज़ें हैं कि रईसों के साथ रहने वाले नौकरों के पास लाजिमी तौर पर मौजूद रहा करती हैं. चंद रोज़ पहले ऊंचे वर्ग के धनिकों के साथ एक नौकर के हाथ में हुक़्क़ा भी रहा करता था. मगर अब यह तरीका छूट गया. हुक़्क़ा दरअसल दिल्ली की ईजाद है और वहीं शाही भिंडीख़ानों में विभिन्न प्रकार के हुक़्क़े तैयार किए गए थे.

लखनऊ ने जो कुछ तरक़्क़ी की वह सबसे पहले पेचवानों, चिलमों और चीज़ों के आकार-प्रकार के सुधार से संबंधित है. दिल्ली के हुक़्क़े भद्दे और बदशक्ल थे. लखनऊ में वे ही बहुत मुनासिब और ख़ुशनुमा बना दिये गये. फिर तांबे, पीतल, फूल और जस्त के हुक़्क़े के अलावा मिट्टी के हुक़्क़े ऐसे ख़ूबसूरत बन गये जो लोगों को अपनी नफ़ासत और नज़ाकत के लिहाज़ से बहुत ही पसंद आये और अक्सर लोगों को मिट्टी के नाज़ुक, हल्के, ख़ुशनुमा और सोंधे हुक़्क़े क़ीमती हुक़्क़ों से ज्यादा अच्छे मालूम हुए.

हुक़्क़े की शक्ल में सुधार होने के बाद ख़ुद तंबाकू में अजीब-अजीब ख़ूबियां पैदा की गयीं. तंबाकू को गुड़ या शीरे में मिलाकर कूट लेना शायद दिल्ली की ही ईजाद है जिसकी वजह से तंबाकू के सुधार में हिंदुस्तान दुनिया के मारे मुल्कों और संसार की सभी जातियों से श्रेष्ठ है. तंबाकू सारी दुनिया में पिया जाता है. चुरुट, सिगरेट और पाइप के लिए तंबाकू में सुधार करने में अगर्चे योरुप ने बहुत अधिक कोशिशें कीं और तरह-तरह की नफ़ासतें पैदा कर दीं, मगर यह तदबीर किसी को न सूझ सकी कि शीरा या गुड़ मिलाकर तंबाकू की कड़वाहट और गला पकड़ने की तासीर मिटाई जाये और धुंए में एक प्रकार का आनंद और ठहराव पैदा किया जाये. उसके बाद लखनऊ ने यह तरक़्क़ी की कि खमीरा मिलाकर और खुशबूएं शामिल करके तंबाकू जैसी बदबूदार और नागवार चीज़ को इतना सुगंधित ओर बढ़िया बना लिया गया कि चिलम भरके रखते ही सारा कमरा ख़ुशबू से महक उठता है और जो हुक़्क़ा न पीते हों उनका भी जी चाहने लगता है कि दो-एक कश खेंच लें.

हिंदुस्तान के कुछ स्थानों का तंबाकू बहुत अच्छा होता है और उन शहरों के नाम से तंबाकू मशहूर भी हो गया है. मगर वह प्रसिद्धि किसी इंसानी कोशिश का नतीजा नहीं. कोशिश और तदबीर से जो नफ़ासत तंबाकू में लखनऊ ने पैदा की है और किसी शहर को नसीब नहीं हुई. अक्सर शहरों के लोग ख़मीरे को पसंद नहीं करते या यह शिकायत करते है कि उससे नज़ला हो जाता है. मगर यह सब सिर्फ़ इस कारण से है कि उन्हें इसकी आदत नहीं है. यह वैसा ही है जैसा अंग्रेज़ों को कोरमा पसंद नहीं है या उसे हजम नहीं कर सकते. तंबाकू के साथ हुक़्क़े की दूसरी चीजों में भी तरक़्क़ी हुई, चिलमें भी पहले से ज़्यादा नाज़ुक और नफ़ीस और ख़ुशनुमा हो गयीं. चेंबरों (हुक़्क़े की नली और फ़र्शी की नली के बीच में स्वास्तिक के आकार की चीज़) में भी तरक़्क़ी हुई, उनमें ख़ूबसूरत तिहरी चांदी की जंजीरें लगाई गयीं, तरह-तरह की मुंहनालें ईजाद हुईं, फिर फूलों के नफ़ीस और दिलकश हुक़्क़े ईजाद हुए. ग़रज़ यहां की सोसाइटी ने हुक़्क़ेक संवारा और सजाया और दुलहन बना दिया.

(अब्दुल हलीम ‘शरर’ की किताब ‘गुज़िश्ता लखनऊ’ से साभार)
कवर फ़ोटोः विकीमीडिया कॉमन्स

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