पंजाब | हर तरफ़ ही कामगारों के क़ाफ़िले
पूरब के मजदूर पंजाब से भी निकल पड़े हैं. पैदल ही सफ़र की ठानकर वे बड़ी तादाद में सड़कों पर हैं. पंजाब के पुराने बाशिंदों को कुछ बेहद पुराने मंज़रों की याद दिलाते इन मजदूरों को अपनी मंज़िल का पता है मगर वो है बहुत दूर. सफ़र आसान नहीं मगर अब तो निकल पड़े ही हैं.
शनिवार को सरहिंद से गुजरते ऐसे ही एक काफ़िले में शामिल रमेश यादव और अर्जुन यादव से मालूम हुआ कि लुधियाना की फैक्ट्रियों में काम करने वाले वे क़रीब डेढ़ सौ परिवारों के लोग हैं, जो साथ ही निकले हैं. लॉकडाउन और कर्फ़्यू के बाद फैक्ट्रियों पर ताले लग गए और उनकी रोजी पर भी. हुकूमत का हुक़्म है कि घरों से बाहर न जाएं. वे ख़ुद भी नहीं जाना चाहते थे. लेकिन घंटाघर के पास की कॉलोनियों के जिन मकानों में वे आबाद थे, उनके मालिकों ने उन्हें इस आशंका के चलते घर छोड़ देने को कहा कि वे लोग अब किराया कहां से देंगे? ये सारे ही लोग उत्तर प्रदेश में बहराइच के गांवों के हैं. इस काफ़िले में इनके साथ बुज़ुर्ग़ और छोटे बच्चे भी, इनमें से कुछ बीमार हैं. और लुधियाना से बहराइच की दूरी एक हज़ार किलोमीटर से ज्यादा है. बस का सफ़र ही 15 घंटे से ज्यादा का है. एक अख़बारनवीस ने इस मामले की जानकारी लुधियाना के उपायुक्त को व्हाट्सएप के ज़रिये दी, टेक्स्ट मैसेज भी भेजा मगर कोई जवाब न आया.
सरहिंद से कुछ आगे है राजपुरा. यह पंजाब-हरियाणा की अधिकृत सीमा भी है. वहां के एक सहयोगी सरबजीत ने इतवार को इस काफ़िले के लोगों से बात की. फ़िलहाल की ख़बर यह है कि बहराइच जाने वाला कामगार परिवारों का यह काफ़िला पानी के सहारे सफ़र कर रहा है. ऐन सड़क पर गुरुद्वारों से अलबत्ता रास्ते भर कुछ न कुछ मिलता रहा. लंगर से मिला खाना रास्ते के लिए भी बांध लिया है लेकिन आगे क्या? सिर्फ़ पानी? थकान होने पर और बुज़ुर्गों-बच्चों, बीमारों का ख़याल करके ये लोग दो-तीन घंटे चलकर सड़क के किनारे लेट जाते हैं.
प्रसंगवश, कर्फ़्यू से पहले भीलवाड़ा के कुछ परिवार झाड़ू बेचने जम्मू गए थे. वहां से अब ये पैदल अपने घरों के लिए निकल पड़े है. वाया जीटी रोड. कल ये लोग जब फतेहगढ़ साहिब में मंडी गोविंदगढ़ पहुंचे तो इनमें आठ महीने की गर्भवती समता भी थी, जो हांफ रही थी. समता को सिविल अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद पटियाला रेफर किया गया है.
लुधियाना औद्योगिक नगरी है तो मोहाली पंजाब के आधुनिक शहरों में एक. 29 मार्च को मोहाली में ऐसे ही बेशुमार कामगारों की कतारें देखीं गईं जो शहर छोड़़ कर उत्तर प्रदेश-बिहार या दूसरे राज्यों में अपने घर जाने की कोशिश कर रहे थे. मोहाली का बलौंगी गांव छोड़कर जा रहे किशन सिंह के अनुसार शुक्रवार को गांव के नज़दीक झुग्गी बस्ती में कुछ लोगों को सरकारी राशन के पैकेट ज़रूर बांटे गए, लेकिन उन जैसे मजदूर परिवारों तक नहीं पहुंचे जो वहां छोटे-छोटे कमरों में बड़ी तादाद में रहते हैं. किशन के साथ एक वार्ड में 11 मजदूर रहते थे. अब काम न मिलने के चलते उन्हें खाने-पीने की दिक्क़त होने लगी तो उन्हें यही एकमात्र रास्ता नज़र आया.
जालंधर में भी यही हाल है. कर्फ़्यू लगने के बाद मजदूर लौटने लगे हैं. उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के रहने वाले शिवराम अपने साथियों के साथ पैदल गांव जा रहे हैं. कहते हैं कि सहारनपुर तक ऐसे ही पैदल जाएंगे और उसके बाद बस या कोई और साधन मिल गया तो ठीक वरना यह सफ़र पैदल ही जारी रहेगा.
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