मानवता के साथ खड़े रहने को असली खेल मानते थे सीनियर

  • 8:26 pm
  • 25 May 2020

हॉकी के महान खिलाड़ी ओलंपियन बलबीर सिंह सीनियर अक्सर कहा करते थे, “मैंने प्रतिद्वंद्वी टीमों पर सैकड़ों गोल स्कोर किए हैं पर अब मौत की बारी है, जब चाहे मुझ पर गोल दाग सकती है.” 25 मई की सुबह उनकी यही बात सच हो गई.

मोगा के हरीपुर खालसा गांव में जन्मे बलबीर सिंह दोसांझ के बलबीर सिंह सीनियर बनने और फिर उम्र भरे बने रहने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. उनके नए नामकरण का श्रेय जसदेव सिंह को जाता है, जो ख़ुद खेल और रेडियो की दुनिया की नायाब आवाज़ रहे. हुआ यूं कि 1958 में टोक्यो में हुए एशियन खेलों में बलवीर सिंह की कप्तानी में संसारपुर के बलवीर सिंह कुलार टीम में शामिल थे. कंमेंटेटर जसदेव सिंह ने बलबीर सिंह दोसांझ को सीनियर और बलबीर सिंह कुलार के नाम के साथ जूनियर जोड़ दिया ताकि कंमेंट्री सुनने वालों को कोई भ्रम न रहे.

पंजाब में हॉकी और बलबीर नाम के संग का रंग यों कुछ ऐसा है भी कि जसदेव सिंह को मुश्किल में डालता रहा और वे नए-नए तरीके ईजाद करते रहे. एक बार दिल्ली के नेहरू राष्ट्रीय क्लब में अलग-अलग टीमों से नौ बलवीर हॉकी खेलने के लिए मैदान में उतरे तो खेल का आंखों देखा हाल सुना रहे कमेंटेटर संकट में पड़ गए कि किस बलबीर को क्या कहा जाए? तब भी कमेंटेटर जसदेव सिंह ने साफ़ शिनाख़्त के लिए बलबीर सीनियर, बलवीर जूनियर, बलवीर पंजाब पुलिसवाला, बलबीर रेलवेवाला, बलवीर सेनावाला, बलवीर दिल्लीवाला और बलवीर नेवीवाला के नामों से संबोधित करके धुंधलका साफ किया था.

हॉकी के खेल में उनकी उपलब्धियां बताने के लिए कितने ही विशेषण उनके नाम के साथ लगते रहे – पंजाब में खेल की दुनिया के लोग आदर से ‘हॉकी देवता’ कहते, मैदान पर ख़तरनाक सेंटर फॉरवर्ड से ख़ौफ़ खाने वाले उन्हें ‘टेरर ऑफ डी’ पुकारते. ओलंपिक में देश को तीन गोल्ड मेडल जिताने वाले बलबीर सिंह को हॉकी का ‘दूसरा ध्यानचंद’ कहा गया. खेल में जीत की कितनी ही कहानियां हैं, जिनके नायक बलबीर सिंह सीनियर ही रहे. वह भारत के इकलौते खिलाड़ी हैं, जिन्हें विश्व स्तर के 16 आईकॉन खिलाड़ियों में जगह हासिल है.

इतिहास उन्हें भारत-पाक विभाजन के दौरान एक पुलिस अधिकारी के तौर पर निभाई गई ड्यूटी के लिए भी याद रखेगा. 1947 में वह लुधियाना के सदर थाना में तैनात थे. दंगे छिड़े तो बलबीर सिंह सीनियर ने जान पर खेलकर सैकड़ों लोगों की हिफ़ाज़त की और उन्हें महफ़ूज़ ठिकानों पर भेजा. वह कहा करते थे कि “विभाजन बहुत बड़ा दु:स्वप्न था. मानवता के पक्ष में खड़े तथा टिके रहना असली खेल है. बाक़ी खेल बाद की बातें हैं.”

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