पुस्तक अंश | एनिमल फ़ार्म

बड़े बखार के एक सिरे की तरफ एक चबूतरे पर मेजर पहले ही अपने पुआल के बिस्तर पर आराम से पसरा हुआ था. उसके ऊपर एक शहतीर से एक लालटेन लटकी हुई थी. उसकी उम्र बारह बरस की थी और पिछले कुछ अरसे से वह कुछ मुटिया गया था, लेकिन उसके बावजूद वह अभी भी राजसी ठाठ-बाटवाला सूअर था. उसे बधिया नहीं किया गया था. हालाँकि उसके आगे के नुकीले दाँत कभी काटे नहीं गए थे, फिर भी वह देखने में बुद्धिमान और उदार लगता था. काफी पहले से ही अलग-अलग पशु आने शुरू हो गए थे और अपने-अपने हिसाब से आराम से बैठ रहे थे.

सबसे पहले तीनों कुत्ते, ब्लू बैल, जेस्सी और पिंचर आए. फिर सूअर आए तो चबूतरे के एकदम सामने पुआल पर पसर गए. इसके बाद मुर्गियाँ आईं जो खिड़कियों की सिल पर जा बैठीं. कबूतर फड़फड़ाते हुए शहतीरों पर बैठ गए. भेड़ों और गायों ने अपने लिए सूअरों के पीछे जगह तलाश ली और बैठे-बैठे जुगाली करने लगीं. गाड़ीवाले दोनों घोड़े बौक्सर और क्लोवर एक साथ आराम से धीरे-धीरे चलते हुए आए. वे अपने बड़े-बड़े रोएँदार सुम इतनी सावधानी से रख रहे थे कि कहीं कोई छोटा-मोटा जानवर पुआल में न छिपा बैठा हो. क्लोवर थोड़ी मोटी ममतामयी घोड़ी थी जो अब अधेड़ावस्था में पहुँच रही थी. अपने चौथे बछड़े को जनने के बाद वह अपनी पुरानी फीगर कभी वापस नहीं पा सकी थी. बौक्सर अच्छा खासा कद्दावर पशु था. वह कोई अठारह हाथ ऊँचा था और उसमें औसत दरजे के दो घोड़ों के बराबर ताकत थी. उसकी नाक पर एक सफेद धारी थी, जिसकी वजह से वह कुछ-कुछ फूहड़-सा लगता था. वह अव्वल दरजे का बुद्धिमान भी नहीं था. लेकिन एक बात थी, उसके चरित्र की गंभीरता और काम करने की अकूत ताकत की वजह से सब उसका बहुत सम्मान करते थे.

घोड़ों के बाद सफेद बकरी मुरियल और बैंजामिन नाम का गधा आए. बैंजामिन बाड़े का सबसे पुराना प्राणी था और बहुत अधिक खब्ती था. वह कभी किसी से बात नहीं करता था, लेकिन जब वह बोलता तो आम तौर पर कोई न कोई कटाक्ष ही करता. उदाहरण के लिए वह कहेगा कि भगवान ने उसे पूँछ इसलिए दी है कि वह मक्खियों को उड़ा कर उन्हें दूर रखे, लेकिन जल्द ही न तो उसके पास पूँछ रहेगी और न ही मक्खियाँ रहेंगी. बाड़े पर वही केवल ऐसा पशु था जो कभी हँसता नहीं था. इसकी वजह पूछने पर वह यही कहता कि उसे कुछ भी ऐसा नजर नहीं आता जिस पर हँसा जा सके. अलबत्ता सबके सामने स्वीकार न करते हुए भी वह बौक्सर के प्रति निष्ठावान था. दोनों अक्सर अपनी रविवार की छुट्टियाँ एक साथ फलोद्यान के परेवाले छोटे पशुबाड़े में, साथ-साथ चरते हुए, लेकिन बिल्कुल भी बात किए बिना गुजारते थे.

दोनों घोड़े अभी बैठे ही थे, जब बत्तख के बच्चों का झुंड कमजोर आवाज में चिंचियाता हुआ एक पंक्ति में बखार में घुसा. उनकी माँ मर चुकी थी. यह झुंड इधर-उधर लपकता-झपकता अपने लिए कोई ऐसी जगह तलाश रहा था, जहाँ उन्हें कोई बड़ा जानवर अपने पैरों तले न कुचल सके. क्लोवर ने अपने आगे के पैरों से उनके चारों तरफ एक दीवार-सी खड़ी कर दी. बत्तख के बच्चे इसके भीतर दुबक कर बैठ गए और पलक झपकते ही सो गए. सबसे आखिर में मौली आई. वह एक खरदिमाग खूबसूरत सफेद घोड़ी थी, जो जोंस की खचड़ा-गाड़ी खींचती थी. वह गुड़ की भेली मुँह में चुभलाते हुए मस्ती से आई और आगे-आगे ही बैठ गई. वह अपनी सफेद अयाल इधर-उधर लहराने लगी. वह उस पर बँधे लाल रिबनों की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहती थी. उसके भी बाद में बिल्ली आई. उसने हमेशा की तरह सबसे गरम जगह के लिए आसपास देखा, और बौक्सर और क्लोवर के बीच की जगह में खुद को सिकोड़ लिया. वहाँ वह मेजर के पूरे भाषण के दौरान संतुष्ट भाव से घुरघुराती रही. उसने मेजर का कहा हुआ एक भी शब्द नहीं सुना.

अब तक मोसेस, पालतू काले कव्वे के सिवाय सभी प्राणी पधार चुके थे. वह पिछवाड़े की तरफ एक टाँड़ पर सोया हुआ था. जब मेजर ने देखा कि अब सब आराम से अपनी जगह बैठ चुके हैं और ध्यान से उसकी बात का इंतजार कर रहे हैं तो उसने अपना गला खखारा और कहना शुरू किया :
‘साथियो, आप लोग कल रात के मेरे उस अजीब सपने के बारे में सुन ही चुके हैं. लेकिन मैं सपने की बात बाद में करूँगा. मुझे उससे पहले कुछ और कहना है. मुझे नहीं लगता, कॉमरेड्स कि अब मैं आनेवाले बहुत से महीनों में आप लोगों के साथ रह पाऊँगा और मरने से पहले मैं यह अपना कर्तव्य समझता हूँ कि जो कुछ बुद्धिमत्ता मैंने हासिल की है, उसे आप लोगों को देता जाऊँ. मैंने भरपूर जीवन जी लिया है. जब मैं अपने थान में अकेला पड़ा रहता था तो मुझे सोचने के लिए खूब वक्त मिला और मुझे लगता है कि मैं यह कह सकता हूँ कि मैं इस धरती पर जीवन के स्वरूप को, ढर्रे को और साथ ही साथ अब जी रहे किसी भी पशु को समझता हूँ. इसी के बारे में मैं आप लोगों से बात करना चाहता हूँ.

‘साथियो, आप ही बताइए, हमारी इस जिंदगी का स्वरूप क्या है? ढर्रा क्या है? इसमें झाँक कर देखें, हमारी जिंदगी दयनीय है, इसमें कड़ी मेहनत है और हम अल्पजीवी हैं. जब हम पैदा होते हैं तो हमें सिर्फ इतना ही खाने को दिया जाता है कि हमारी ठठरियों में साँस भर चलती रहे. हममें से जो साँस भर लेने की ताकत रखते हैं, उन्हें शरीर में खून की आखिरी बूँद तक काम करने पर मजबूर किया जाता है, और उस पल के आते ही, जब हमारी उपयोगिता खत्म हो जाती है, हमें घिनौनी क्रूरता के साथ कत्ल कर दिया जाता है. इंग्लैंड में कोई भी ऐसा पशु नहीं है जो एक बरस का हो जाने के बाद खुशी का या फुरसत का मतलब जानता हो. इंग्लैंड में कोई भी पशु आजाद नहीं है. पशु की जिंदगी दुर्गति और गुलामी की जिंदगी है. यह एक कड़वी सच्चाई है.

‘लेकिन क्या यह प्रकृति का एक सीधा-सादा-सा नियम है? क्या हमारी यह हालत इसलिए है कि हमारी धरती इतनी गरीब है कि यह इस पर रहनेवालों को एक शानदार जिंदगी मुहैया नहीं करा सकती? नहीं दोस्तो, नहीं. हजार बार नहीं. इंग्लैंड की मिट्टी उपजाऊ है, यहाँ की जलवायु अच्छी है. इसमें इतनी क्षमता है कि अब इस पर जितने पशु रह रहे हैं, उससे कई गुणा अधिक पशुओं का खूब अच्छी तरह से भरण-पोषण कर सकती है. हमारे अकेले बाड़े से एक दर्जन घोड़े, बीस गाएँ, सैंकड़ों भेडें, खूब आराम से, सम्मान की ऐसी जिंदगी बसर कर सकती हैं जिसकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते. हम क्यों इस तंगहाली में जिए चले जा रहे हैं? क्योंकि हमारी मेहनत की कमोबेश पूरी की पूरी उपज हमसे मनुष्यों द्वारा चुरा ली जाती है और यही, साथियों, हमारी सारी समस्याओं का जवाब है. इसे सिर्फ एक ही शब्द में बयान किया जा सकता है – आदमी, मनुष्य, मानव. मनुष्य ही हमारा असली दुश्मन है. मनुष्य को सामने से हटा दीजिए और भूख और अतिश्रम की जड़ ही हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो बिना कुछ भी पैदा किए उपभोग करता है. वह दूध नहीं देता, वह अंडे नहीं सेता, वह इतना कमजोर है कि हल नहीं चला सकता. वह इतना तेज नहीं दौड़ सकता कि खरगोश तक पकड़ सके. फिर भी वह सब पशुओं का मालिक है. वह उन्हें काम में जोत देता है और उन्हें खाने के लिए इतना ही देता है कि वे भूखे न मरें. बाकी सब कुछ वह अपने लिए रख लेता है. हम अपनी मेहनत से मिट्टी गोड़ते हैं. हमारी लीद से, गोबर से मिट्‌टी उपजाऊ बनती है, और फिर भी हममें से एक भी ऐसा नहीं, जिसके पास अपनी चमड़ी के अलावा एक दमड़ी भी हो.

आप गाएँ जो इस समय मेरे सामने बैठी हैं, आपने पिछले बरस कितने हजार लीटर दूध दिया है? और क्या हुआ उस दूध का जिसे पी कर आपके बछड़े हट्‌टे-कट्‌टे बनते हैं? उस दूध की एक-एक बूँद हमारे दुश्मनों के गले के नीचे उतरी है और तुम मुर्गियो, पिछले बरस भर में तुमने कितने अंडे दिए और उनमें से कुल कितने अंडे से कर तुमने चूजे बनाए? बाकी सारे अंडे बाजार में बिकने पहुँच गए ताकि जोंस और उसके आदमियों की कमाई हो सके. और तुम क्लोवर, क्या हुआ उन चार बछड़ों का जिन्हें तुमने जना था, और जो बुढ़ापे में तुम्हारा सहारा और आँखों का तारा बनते? साल भर का होते ही उन्हें बेच दिया गया. अब तुम उनमें से किसी को भी दोबारा नहीं देख पाओगी. बदले में तुम्हें क्या मिला? चार बार जचगियों और खेतों में कड़ी मेहनत के बदले तुम्हारे पास मामूली राशन और एक थान के अलावा और है क्या? इसके बावजूद हम जो कंगाली-बदहाली की जिंदगी जीते हैं उसे भी नैसर्गिक उम्र तक कहाँ जीने दिया जाता है?

मैं अपने लिए नहीं खीझता या भुनभुनाता क्योंकि किस्मत ने थोड़ा-बहुत मेरा साथ दिया है. इस समय मैं बारह बरस का हूँ और मेरे चार सौ से भी ज्यादा बच्चे हुए हैं. एक सूअर का यही प्राकृतिक जीवन होता है. लेकिन आखिर में कोई भी जानवर इस क्रूर तलवार की मार से नहीं बच सकता. तुम जो नन्हें-मुन्ने बलिसूअर मेरे सामने बैठे हुए हो, तुम्हें माँस के लिए ही पाला जा रहा है. बरस भर बीतते-बीतते तुम सब अपनी-अपनी जान बचाते हुए चिचियाते फिरोगे. हममें से हरेक का यही बुरा हाल होना है. गायें, सूअर, मुर्गियाँ, भेड़ें, सबका. यहाँ तक कि घोड़ों और कुत्तों की जिंदगी में भी इससे बेहतर कुछ नहीं लिखा हुआ है. तुम बौक्सर, जिस दिन भी तुम्हारी इन मजबूत माँसपेशियों की ताकत खत्म हो जाएगी, जोंस तुम्हें घोड़ा कसाई के पास बेच आएगा. वह तुम्हारा गला रेतेगा और तुम्हें उबाल कर तुम्हारी बोटियाँ लोमड़ियों का शिकार करनेवाले कुत्तों के आगे डालेगा और जब कुत्ते बुढ़ा जाते हैं, उनके दाँत झर जाते हैं तो जोंस उनकी गरदन से ईंट का एक टुकड़ा बाँध देता है और उन्हें नजदीक के ताल-तलैया में ले जा कर डुबो देता है.

‘क्या अब यह बात दिन की रोशनी की तरह साफ नहीं है साथियो कि हमारी इस जिंदगी की सारी विपत्तियों के पीछे मनुष्य जाति के अत्याचार ही हैं? सिर्फ आदमी से छुटकारा पा लीजिए और हमारी सारी मेहनत की उपज पर हमारा अधिकार हो जाएगा. हम रातों-रात धनवान और आजाद हो सकते हैं. इसके लिए हमें करना क्या होगा? यही कि हम दिन-रात लगे रहें, मन लगा कर हाड़-तोड़ मेहनत करें और यहाँ से मनुष्य जाति को उखाड़ फेंके. साथियो, आप लोगों के लिए यही मेरा संदेश है. विद्रोह (बगावत), मुझे नहीं पता यह बगावत कब होगी. इसमें एक सप्ताह भी लग सकता है और सौ बरस भी, लेकिन मुझे पूरा यकीन है, अपने नीचे बिछे पुआल की तरह मैं साफ-साफ देख पा रहा हूँ कि देर-सबेर हमें न्याय मिलेगा. दोस्तो, जितनी भी जिंदगी बची है तुम्हारी, उसके एक-एक पल के लिए अपनी निगाह उसी पर गड़ाए रखो और इससे भी ज्यादा खास बात यह है कि मेरे इस संदेश को उन तक भी पहुँचाओ जो तुम्हारे बाद इस धरती पर आएँगे, ताकि आनेवाली पीढ़ियाँ तब तक संघर्ष करती रहें जब तक जीत हासिल नहीं हो जाती.

‘और याद रखो, कॉमरेड्स, तुम अपने संकल्प से कभी डिगो नहीं. कोई भी तर्क-कुतर्क तुम्हें बहकाए-भटकाए नहीं. इस बात पर कान मत धरो कि आदमी और पशु के हित एक से हैं और एक की संपन्नता ही दूसरे की संपन्नता है. यह सब झूठ है, बकवास है. आदमी सिर्फ अपना स्वार्थ साधता है, किसी और प्राणी का नहीं. हम सब पशुओं में, जीवों में पूरी एकता होनी चाहिए. संघर्ष के लिए मजबूत भाईचारा. सभी मनुष्य शत्रु हैं. सभी पशु साथी हैं. कामरेड हैं.’
यह सुनते ही चारों तरफ गजब का शोर उठा. हर्ष ध्वनि होने लगी. जब मेजर बात कर रहा था तो चार तगड़े चूहे अपने बिलों से बाहर सरक आए और उकड़ू बैठे उसकी बात ध्यान से सुनने लगे. अचानक कुत्तों की निगाह उन पर पड़ गई. चूहे गजब की फुर्ती से अपने बिलों की तरफ छलाँग लगा कर ही अपनी जान बचा पाए. मेजर ने अपना पैर उठा कर शांति बनाए रखने का इशारा किया.
‘कॉमरेड्स,’ उसने कहा, ‘यहाँ हमें एक बात साफ-साफ तय कर लेनी चाहिए. जंगली पशु जैसे चूहे और खरगोश – वे हमारे शत्रु हैं अथवा हमारे मित्र? चलिए मतदान करके तय कर लेते हैं. मैं बैठक के सामने यह सवाल रखता हूँ कि क्या चूहे कॉमरेड हैं?’
तुरंत मतदान कर लिया गया, जबरदस्त बहुमत से यह तय कर लिया गया कि चूहे कॉमरेड हैं. वहाँ केवल चार ही प्राणी असहमत थे. तीन कुत्ते और बिल्ली. बिल्ली के बारे में बाद में पता चला कि उसने दोनों तरफ मतदान किया है. मेजर ने अपनी बात जारी रखी.

‘अब मुझे ज्यादा कुछ नहीं कहना है. मैं सिर्फ अपनी बात दोहराता हूँ. मनुष्य और उसके सभी कर्मों और उसके तरीकों के प्रति अपनी दुश्मनी की बात हमेशा याद रखो. जो भी दो पैरों पर चले, वह शत्रु है. जो चार पैरों पर चलता है, वह मित्र है. और यह भी याद रखो कि मनुष्य के खिलाफ लड़ते वक्त ऐसा कतई न हो कि हम उसी जैसे लगने लगें. उस पर विजय पा लेने के बाद भी उसकी बुराइयों को मत अपनाना. कोई भी पशु कभी भी किसी घर में न रहे, या बिस्तर पर न सोए या कपड़े न पहने, या नशा-पानी न करे, या तंबाकू सेवन न करे, या रुपए-पैसे को हाथ न लगाए, या कारोबार न करे. मनुष्य की ये सारी आदतें ही पाप हैं. और सबसे बड़ी बात, कोई भी पशु अपने ही बंधु-बिरादरों पर अत्याचार न करे. कमजोर और शक्तिशाली, चतुर या बोदा, हम सब भाई-भाई हैं. कोई भी पशु कभी किसी दूसरे पशु को न मारे. सभी पशु बराबर हैं.

‘साथियो, अब मैं आपको कल रात के अपने सपने के बारे में बताऊँगा. यह सपना मैं आप लोगों के सामने बयान नहीं कर सकता. यह उस वक्त की धरती का सपना है, जब यहाँ आदमी का नामो-निशान भी नहीं रहेगा. लेकिन इस सपने ने मुझे वह सब कुछ याद दिला दिया जो मैं कभी का भूल चुका था. बहुत बरस बीते, जब मैं एक नन्हा-सा सूअर था, मेरी माँ और उसकी साथिन सूअरनियाँ एक बहुत पुराना ऐसा गाना गाया करती थीं, जिसकी सिर्फ धुन और शुरू के तीन शब्द ही उन्हें पता थे. मैं इस धुन को अपने छुटपन से ही जानता था, लेकिन अरसा हुआ, यह मेरे दिमाग से उतर गई थी. अचानक ही कल रात, वही धुन मेरे सपने में लौट आई. और इससे भी बड़ी बात यह हुई कि गीत के बोल भी लौट आए – मुझे पूरा यकीन है, यह वही बोल हैं जो सदियों पहले पशु गाया करते थे, और कई पीढ़ियों तक उनकी स्मृति से उतरे रहे. कॉमरेड्स, अब मैं वह गीत आप लोगों को गा कर सुनाऊँगा. मैं बूढ़ा हो चला हूँ. मेरी आवाज कर्कश हो गई है, लेकिन जब मैं आपको इसकी धुन सिखा दूँगा तो आप लोग इसे खुब अच्छी तरह गा सकेंगे. गीत का मुखड़ा है, ‘इंग्लैंड के पशु’.’

जनाब मेजर ने अपना गला खखारा और गाना शुरू किया. वह कह ही चुका था कि उसकी आवाज कर्कश है, लेकिन उसने काफी अच्छा गाया. उसकी धुन में कंपन था. कुछ-कुछ ‘क्लेमैन्टाइन’ और ‘ला कुकुराचा’ के बीच का. गीत के बोल इस तरह से थे :
इंग्लैंड के पशु, आयरलैंड के पशु,
देश-देश और जलवायु के पशु
खुशियों भरी मेरी बातें सुनो
स्वर्णिम भविष्य की बातें सुनो.

आएगा वह दिन देर-सबेर
दुष्ट आदमी दिया जाएगा खदेड़
और इंग्लैंड के फलदार खेतों में
पैर पड़ेंगे सिर्फ पशुओं के.

हमारी नकेलें जाएँगी छूट,
पीठ से बोझा जाएगा छूट,
लगामें, जीन जल जाएँगी
नहीं बरसेंगे कोड़े क्रूर.

कल्पना से कहीं अधिक अमीर
गेहूँ जौ, जई और घास
बनमेथी, फलियाँ, चुंदर-मूल
होंगे इक दिन हमारे पास.

चमकेंगे धूप में इंग्लैंड के खेत
पीएँगे मीठा पानी भर-भर पेट
बहेगी मीठी सुंगधित वास
वह दिन जब हम होंगे आजाद.

करें उस दिन के लिए मेहनत खूब
निकलें प्राण बेशक उससे पूर्व
गाएँ, घोड़े, हंस और गिद्ध
सब करें मेहनत आजादी के लिए.

इंग्लैंड के पशु, आयरलैंड के पशु,
देश-देश और जलवायु के पशु
ध्यान से सुनो और खूब फैलाओ
स्वर्णिम भविष्य की मेरी बातें सुनाओ.

इस गीत को गाते-गाते पशु चरम उत्तेजना से भर गए. मेजर ने अभी गाना खत्म भी नहीं किया था कि सब पशुओं ने इसे खुद ही गाना शुरू कर दिया. सबसे भोंदू पशुओं की जुबान पर भी इसकी धुन चढ़ गई और उन्होंने भी कुछेक शब्द सीख भी लिए. जहाँ तक समझदार पशुओं जैसे सूअरों और कुत्तों का सवाल था, कुछ ही पलों में तो उन्हें पूरा गाना ही याद हो गया. और फिर थोड़ी देर के शुरुआती अभ्यास के बाद पूरा बाड़ा एक जबरदस्त स्वर मेल के साथ ‘इंग्लैंड के पशु’ गीत गाने लगा. गायों ने इसे रँभा कर गाया. कुत्तों ने रिरियाया. भेड़ों ने मिमिया कर अपना स्वर दिया तो घोड़ों ने हिनहिना कर साथ दिया. बत्तखों ने काँ-काँ की. गीत ने सबको इतने उल्लास से भर दिया कि उन्होंने इसे लगातार पाँच बार गाया. वे तो इसे सारी रात ही गाते रहते, अगर बीच में रुकावट न आ जाती.

दुर्भाग्य से शोर-शराबे ने मिस्टर जोंस की नींद में खलल डाल दिया. वह बिस्तर से उछला. उसे पक्का यकीन हो गया कि बाड़े में कोई लोमड़ी घुस आई है. उसने अपने बेडरूम के कोने में हमेशा पड़ी रहनेवाली बंदूक उठाई और अँधेरे में तड़ातड़ छह गोलियाँ चलाईं. बंदूक की गोलियाँ बखार की दीवार में जा धँसीं. बैठक अफरा-तफरी में खत्म हो गई. हर कोई अपने सिर छुपाने की जगह की तरफ लपका. चिड़ियाएँ टाँड़ पर जा उड़ीं, पशु पुआल में ही पसर गए और पल भर में ही पूरा बाड़ा नींद के आगोश में था.

(‘एनिमल फ़ार्म’ का यह हिन्दी अनुवाद कथाकार सूरज प्रकाश ने किया है. हिन्दी समय से साभार.)


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