अम्फान | बोईपाड़ा में बर्बादी के निशान

कुछ तस्वीरें देखीं, पानी में डूबी सड़क पर भीगती-बहती किताबों की. किताब यानी बांग्ला में बोई और बोईपाड़ा यानी किताबों का बाज़ार. कलकत्ता की बोईपाड़ा कॉलेज स्ट्रीट में तूफ़ान अम्फान के गुज़र जाने के बाद किताबों की बर्बादी का मंज़र है.

कॉलेज स्ट्रीट की कई ख़ूबियां हैं. इस इलाक़े को पुराने कलकत्ते की गर्दन माना जाता है. इस सड़क के थोड़ी देर के लिए भी अवरूद्ध होने से पूरा कलकत्ता ट्रैफिक में फंस जाता है. स्टूडेंट्स को कोई मोर्चा निकालना हो तो वे इसी सड़क से गुज़रते हैं. किसी मुद्दे पर आंदोलन करना हो तो इसी सड़क के किनारे बैठते हैं. किसी पार्टी या नेता को चुनाव प्रचार करना है तो वो इसी सड़क को चुनते हैं. स्टूडेंट्स का मेला वहां हमेशा ही लगा रहता है. सुबह से लेकर शाम तक छात्रों का जमघट. इसके अलावा वहां कई बड़े स्कूल और कॉलेज हैं. कलकत्ता विश्वविद्यालय और प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय की इमारतें इसी सड़क के किनारे हैं. सड़क के किनारे नई-पुरानी किताबों की बेशुमार दुकानें हैं. जो किताबें आपको कहीं नहीं मिलतीं वो कॉलेज स्ट्रीट में तो मिल ही जाती हैं. हर विषय की पुरानी किताबें बहुत ही सस्ते में वहां मिलती हैं. सस्ते में उपलब्धता का मतलब ज्ञान की व्यापक पहुंच. लेकिन दो रोज़ पहले के तूफ़ान में शहर के दूसरे हिस्सों की शक़्ल की तरह कॉलेज स्ट्रीट का चेहरा भी बदला हुआ है. दुकानों में पानी भर गया है, किताबें भीग गई हैं, नष्ट हो गई हैं. हज़ारों किताबें और किताब के दुकानदार बर्बाद हो गए हैं. कलकत्ते में ऐसा बर्बादी का मंज़र चारों तरफ दिखाई दे रहा है. अम्फान अपने पीछे विनाश के निशान छोड़ गया है.

बंगाल में आंधी-तूफ़ान आना कोई नई या बड़ी बात नहीं है. छोटे-बड़े तूफ़ान वहां हर साल आते ही रहते हैं. वहां के लोग इस तरह के तूफ़ान को झेलने के आदी हो गए हैं. लेकिन इस बार के हालात बहुत अलग थे. मौसम विभाग ने पहले ही सचेत कर दिया था, लोगों को भी अंदेशा हो गया था कि यह तूफ़ान पहले से ज्यादा भयानक और ख़तरनाक है. सरकार ने भी इसके लिए पहले से तैयारियां कर रखी थी और लाखों लोगों को निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचा दिया था. 20 मई को दोपहर तीन बजे के बाद चक्रवात आया तो सारी तैयारियां नाकाफी साबित हुईं.  190 किलोमीटर की रफ़्तार चलीं हवाएं और इसी के साथ घनघोर बारिश. कलकत्ता, हावड़ा, पश्चिम मिदनापुर, दक्षिण चौबीस परगना, उत्तर चौबीस परगना (इसी जिले में मेरा भी घर है) आदि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए. कितनी ही जानें चली गईं, कितने ही घायल लोग अस्पताल में पड़े हुए हैं, पांच हज़ार से ज़्यादा घर उजड़े हैं, हज़ारों लोगों के पास रहने और कहने के लिए अपना घर तक नहीं और सैकड़ों लोग अनिश्चितकाल के लिए विस्थापित-बेघर हो गए हैं. तस्वीरों में सड़कों के किनारे उजड़ी हुई बेशुमार झुग्गियां और कच्चे मकान दिखते हैं, जो लोगों की लाचारी-बेबसी की कहानी हैं. गंगा के किनारे बसे हुए हज़ारों लोगों के घर पानी में बह गए. बंगाल के लोगों ने ऐसा विकराल तूफ़ान अपनी जिंदगी में पहले कभी नहीं देखा.

जो लोग बंगाल के जनजीवन से अनजान हैं, वे सोशल मीडिया या अख़बारों-चैनलों की तस्वीरों से अंदाज़ लगा सकते हैं कि प्रकृति अगर बर्बाद करने पर उतारू हो जाए तो क्या हो सकता है? शहर अस्त-व्यस्त हैं और लोग अभी तक सदमे में, इससे उबरने में उन्हें थोड़ा वक़्त लगेगा.

(लेखक प्रेसिडेंसी कॉलेज में छात्र रहे. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं)

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