पंजाब | कोरोना-काल के कर्फ़्यू का नया चेहरा

  • 2:37 pm
  • 29 April 2020

महामारी ने दुनिया का चेहरा और लोगों की ज़िंदगी बदल दी है. ज़ाहिर है कि भाव और अभिव्यक्ति में भी इस बदलाव का असर दिखाई देने लगा है. पंजाब में लॉक डाउन के दौरान संक्रमण का हाल देखते हुए सरकार ने सूबे में कर्फ़्यू आयद कर दिया. और लोगों को कर्फ़्यू यह तजुर्बा भी पुराने तजुर्बों से फ़र्क लगा है. ताज़ा कर्फ़्यू के दौरान क़ायदे का उल्लंघन करने पर सूबे में अब तक पांच हज़ार लोगों के चालान हुए मगर इनमें से किसी को जेल नहीं भेजा गया.

पंजाब में कर्फ़्यू के इतिहास में पहली बार इतना लंबा दौर आया है. यह भी पहली बार ही है कि लोगों को पुलिस से बहुत शिकायत नहीं है और न पुलिस उन्हें खाक़ी का ख़ौफ़ दिखा रही है. फ़्लैग मार्च निकलता है तो फूल बरसते हैं, उन्हें रोककर बच्चे उनकी शान में गीत गाते हैं. रोज़ कहीं न कहीं से ऐसी ख़बरें मिलती है कि पुलिस वालों ने घर जाकर जन्मदिन की बधाई और फूल दिए, दस लोगों के बीच होने वाले ब्याह में शिरकत की. कई जगह वधुओं की डोली को पुलिस एस्कॉर्ट कर रही है. ज़िंदगी के उदास पलों में पुलिस साथ दे रही है. ख़ुशी या ग़म के मौक़े पर दस से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी है. पुलिस वाले अर्थियों को कंधा देकर श्मशान भी पहुंचा रहे हैं. पंजाब में अब तक कोरोना से जितनी मौतें हुईं हैं, सबके दाह-संस्कार में पुलिस के हाथ जरूर लगे. यह मंज़र भी पहली बार दरपेश है. डर की निगाह से देखी जाने वाली पुलिस लोगों के बीच नायक बन रही है. थानों से गाली-दुत्कार की बजाए लंगर मिल रहा है! पुलिस वाले ज़रूरतमंदों के ठीए-ठिकानों तक जाकर खाना-दवाइयां पहुंचा रही है. सोशल मीडिया में तो चर्चे हैं ही, चौपालों की गुफ्तगू में भी तारीफ़ होती है.

पटियाला में निहंगों से मुठभेड़ में हाथ कटाने वाले और अब एएसआई से सब-इंस्पेक्टर बन चुके हरजीत सिंह को हीरो की इज़्ज़त हासिल है. 27 अप्रैल को पंजाब के 80 हजार पुलिस कर्मियों ने, जिनमें डीजीपी से लेकर आम सिपाही तक शामिल थे, हरजीत सिंह के नाम का बैज लगाया तो लोगों ने भी अपने तरीके से सराहना की भावनाओं का इज़हार किया. संक्रमण से लड़ते हुए जान गंवाने वाले लुधियाना के एसीपी अनिल कोहली को बेशुमार लोगों ने सोशल मीडिया के जरिये श्रद्धांजलि दी. कुछ लोगों की वजह से उनके घर वालों के तिरस्कार की बात मालूम हुई तो बड़ी तादाद में लोगों ने उनके परिवार के लिए समर्थन जताया.

हिन्दुस्तान में ‘कर्फ़्यू’ की अवधारणा अंग्रेज़ों की देन है. अंग्रेज़ी के इस शब्द का मतलब व्यावहारिक तौर पर लोग यही जानते हैं कि उनकी दिनचर्या पर ताला, मजबूरी का एकांतवास, घर में क़ैद और बाहर पुलिस का सख़्त पहरा. पंजाब ने सन् 1919-20, 1944-45, 1947-48,1966 के बाद 1984 में कर्फ़्यू का लंबा दौर देखा. जून 84 का कर्फ़्यू सबसे त्रासद था – फ़ौज की संगीनों के साये में लागू कर्फ़्यू. ज़िंदगी की रफ्तार इस तरह से भी थमती है और रोकी जाती है, ऐसा बहुतों ने पहली बार देखा और भुगता था.
अब से पहले ड्यूटी मजिस्ट्रेट कर्फ़्यू का आदेश देते वक्त लिखा करते थे कि नागरिकों की हिफ़ाज़त के लिए या ‘बिगड़े हालात’ सुधारने के मद्देनजर इसे लागू किया जा रहा है. नागरिक हिफ़ाज़त और बिगड़े हालात का असली मतलब हिंसा की आशंका होता था. पुलिस और अर्धसैनिक बल गलियों-बाज़ारों में फ्लैग मार्च निकालते ताकि शरारती लोग देख लें और बाज़ आएं. ताज़ा कर्फ़्यू का नया समाजशास्त्र है. लोग-बाग अराजक और असामाजिक तत्वों से नहीं बल्कि ख़ुद से ही डरे हुए हैं. सरकारी ज़बान में यह कर्फ़्यू मुकम्मल तौर पर कामयाब है, और बिना राइफलों-बंदूकों के कामयाब है.

कर्फ़्यू के उल्लंघन पर आईपीसी की धारा 188 और 144 लगती है यानी थानेदार थाने से ही जमानत दे सकता है. मौजूदा कर्फ़्यू के दिनों में क़रीब पांच हजार मामले इन धाराओं में हुए और कोई भी आरोपी लॉकअप या जेल में नहीं डाला गया. जिनकी जमानत के लिए कोई नहीं आया, उन्हें भी ‘स्वजमानत’ पर छोड़ दिया गया. और यह सिलसिला जारी है. पुलिस को अपरोक्ष हिदायत है कि कर्फ़्यू भंग करने के आरोपियों को सलाखों में न डाला जाए और न उन पर कोई सख्ती. कर्फ़्यू का यह नया चेहरा और नया समाजशास्त्र है.

आवरण चित्र | प्रभात की ‘इरोज़न’ सीरीज़ से


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