जिन्न दिखाकर डॉक्टर को जादुई चिराग़ बेचा

वे दोनों ख़ुद को तांत्रिक कहते थे और वह डॉक्टर. उन दोनों ने जिन्न दिखाकर डॉक्टर को जादुई चिराग़ बेच दिया. ख़ुद को अलादीन मानते हुए डॉक्टर चिराग़ घिसते रहे और 31 लाख रुपये दे देने पर ख़ुद को कोसते रहे. जिन्न नहीं आया तो वह थाने आ गए.
मेरठ की एक ख़बर है, जो पिछले कुछ दिनों से मीडिया में मंडरा रही है. ठगी की यह ख़बर ख़ासी दिलचस्प है, साथ ही विज्ञान और तर्क बरतने वालों की ख़ुद की समझ का आईना भी है. ब्रह्मपुरी इलाक़े में खैरनगर के डॉ. लईक अहमद को दो तांत्रिकों इकरामुद्दीन और अनीस ने अलादीन का चिराग़ बेच दिया. इस चिराग़ की क़ीमत कहीं डेढ़ करोड़ तो कहीं ढाई करोड़ लिखी गई. अंग्रेज़ी के एक न्यूज़ पोर्टल में तो साढ़े तीन करोड़ रुपये बताई गई है. जो बात पक्के से कही गई है, वो यह कि डॉ. लईक इस सौदे के बयाने के तौर पर 31 लाख रुपये दे चुके थे.
ख़बरों के मुताबिक, दोनों ने चिराग रगड़कर जिन्न बुलाया और डॉ. लईक़ को यकीन दिलाया कि यही जिन्न जब उनका हुक़्म मानना शुरू कर देगा तो धन-दौलत का अम्बार लगा देगा. डॉक्टर ने पुलिस को बताया कि ठगों के चिराग रगड़ने से जो जिन्न उनके सामने आया था, उसने अरबी क़िस्सों के किरदारों की सी पोशाक पहन रखी थी. अलादीन का चिराग़ ख़रीदने के बाद जब जिन्न हाज़िर नहीं हुआ तब डॉक्टर को मालूम हुआ कि जो उसने देखा था, वह धोखा था.
डॉक्टर ने पुलिस के पास जाकर ठगी की शिकायत की. पुलिस ने दोनों ठगों को गिरफ़्तार कर लिया.
ख़बरों में जो नहीं बताया गया
डॉ.लईक को लंदन से लौटा हुआ डॉक्टर लिखा गया है. मगर डॉक्टर के तौर पर उनकी योग्यताओं का कोई पता इन ख़बरों में नहीं मिलता. लंदन का ज़िक्र शायद उनके मालदार होने की सनद के तौर पर किया गया हो. उनके ठगी का शिकार होने के वाक़ये से कम से कम उनके लालच का पता तो मिलता ही है. और बुज़ुर्गों की यह बात सही साबित होती है कि लालच इंसान की अक़्ल पर पर्दा डाल देता है.
क़िस्सों का चिराग़ हक़ीकत कैसे
बहुतेरे लोगों की जिज्ञासा यह जानने में भी हो सकती है कि कहानियों वाला अलादीन का चिराग़ इकरामुद्दीन और अनीस के पास कहाँ से आया? मतलब डॉक्टर ने भला यह सोचा या पूछा क्यों नहीं कि काल्पनिक चिराग़ असलियत में किस तरह तब्दील हो गया? और जिन्न आया ही था तो अपनी (या अब ठगों के कारनामे पढ़ने वालों की) तसल्ली के लिए उससे कुछ मंगा ही लेते – मसलन उड़ने वाला क़ालीन या बनारसी पान या मेरठ की गजक ही. चिराग़ ख़रीदने का बयाना गजक खाने के बाद देते तो कहानी थोड़ी-सी लॉजिकल भी हो जाती.
क़ानून अपना काम करे मगर ठगों का अभिनंदन होना चाहिए
ठगों का चातुर्य और डॉक्टर को प्रभावित करने के उनके आत्मबल-कौशल का सार्जनिक अभिनंदन तो बनता है. रक़म ठगने के उनके अपराध पर क़ानूनन जो मुनासिब हो, कोर्ट उन्हें दे सज़ा दे मगर ज़माने की आंख खोल देने वाले उनके कारनामे की क़द्र होनी चाहिए. क़ानून तो शायद इसकी इज़ाजत न दे मगर डॉक्टर की डिग्रियों की जाँच भी होनी चाहिए. आख़िर उनके इलाज पर भरोसा करके ही तो मरीज़ उनके पास आते रहे हैं. और जिस अलादीन के चिराग़ की सच्चाई पर चौथी जमात पास बच्चा भी यक़ीन नहीं करेगा, उस पर भरोसा करने वाले डॉक्टर से इलाज करना चाहिए या कि नहीं, इस पर भी विचार करना ज़रूरी लगता है.
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