चंबल नदी में अब सात हज़ार घड़ियाल
इटावा | चंबल नदी में घड़ियालों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. पिछले साल हुए चंबल सैंक्चुअरी के सर्वेक्षण के मुताबिक दिसंबर तक यहाँ क़रीब सात हजार घड़ियाल रहे. देश में सबसे ज्यादा घड़ियाल चंबल नदी में ही पाए जाते हैं.
राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की आपस में सटी सीमा पर क़रीब 5400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है. इसे राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य भी कहा जाता है. यह अभयारण्य विलुप्तप्राय घड़ियाल, लालमुकुट कछुआ व गंगा सूंस (डॉल्फ़िन) के संरक्षण और विकास के लिए बनाया गया है.
पुरा मुरैंग से पचनदा तक क़रीब 80 किलोमीटर के इलाक़े में घड़ियालों का प्रजनन केंद्र है. सन् 1978 में बनी चंबल सैंक्चुअरी में घड़ियालों के बसेरे के लिए नदी के पानी में प्रचुर ऑक्सीजन थी. इसे प्रजनन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए घड़ियाल के दस जोड़े यहाँ छोड़े गए थे. शुरुआत में लोग यहां मछलियों का शिकार भी करते थे, जिसकी वजह से घड़ियालों को खुराक मिलने में दिक़्क़त होने लगी. नतीजा यह कि कई साल तक इनकी तादाद में बहुत धीमी गति से बढ़ी. कुछ अर्से से शिकार पर सख़्ती से रोक का असर यह हुआ है कि घड़ियालों का प्रजनन भी तेज हुआ.
अंडों की देखभाल से बढ़े घड़ियाल
घड़ियालों के प्रजनन का समय दिसंबर से शुरू होता है. मादा एक बार में 20 से 25 अंडे देती है. आसपास आबादी होने की वजह से कई बार गांव वाले अगर अंडों की जगह तक पहुंच जाएं तो घड़ियाल अंडे वाली जगह छोड़कर चले जाते हैं. अंडों से निकले बच्चे भटककर अक्सर गांवों तक पहुंच जाते हैं. सैंक्चुअरी के क्षेत्र अधिकारी हरिकिशोर शुक्ला ने बताया कि अंडों के संरक्षण के लिहाज़ से निगरानी की जाती है. कोशिश रहती है कि बच्चों को मादा घड़ियाल से दूर न होने दिया जाए.
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