नेताजी के विचारों की पुनर्प्रतिष्ठा की ज़रूरत

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते और ओपन प्लेटफ़ार्म फ़ॉर नेताजी के संयोजक चंद्र कुमार बोस लंबे समय तक नौकरी करने के बाद कोलकाता में एक एचआर कंसल्टेंसी कंपनी चलाते हैं. कुछ दिनों राजनीति में भी सक्रिय रहे मगर जल्दी ही मोहभंग हो जाने पर अलग हो गए. इन दिनों देशव्यापी यात्रा करके नेताजी के आदर्शों की पुनर्प्रतिष्ठा और उनकी विचारधारा के प्रसार के काम में जुटे हुए हैं. इसका उद्देश्य दुनिया को यह बताना भी है कि आज़ाद भारत को लेकर नेताजी का सपना क्या था. 21 अक्टूबर आजाद हिंद फ़ौज का स्थापना दिवस मनाने के लिए वह नेताजी की विचारधारा मानने वालों के साथ मुंबई में थे. वह मानते हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए पूरे तंत्र में आमूलचूल बदलाव की ज़रूरत है.

मुंबई के उत्तराखंड भवन में प्रवास के दौरान बातचीत में यह पूछने पर कि आज के दौर में ओपन प्लेटफ़ार्म फ़ॉर नेताजी की भूमिका और उसके असर को किस तरह देखते हैं, उन्होंने कहा, ‘2012 में हम सब ने जब इस प्लेटफ़ार्म का गठन किया था तो सबसे पहला काम और कोशिश यह थी कि नेताजी से जुड़ी फ़ाइलों को सार्वजनिक कराया जाए. हमारी कोशिशों की पहली सफलता यही है कि 75 सालों से नेता जी की जिन फ़ाइलों को गोपनीय रखा गया था, एनडीए सरकार ने 21 जनवरी 2016 को उन्हें सार्वजनिक कर दिया. हमारे इस आंदोलन में बहुत सारे लोग जुड़े थे. इसमें एक्विस्ट और सेना के सेवानिवृत लोगों की सहभागिता रही, जिससे यह संभव हो सका.’

‘अभी किन कामों को पूरा करने पर प्लेटफ़ार्म का ज़ोर है?’, श्री बोस ने बताया, ‘हमारा दूसरा जो सबसे बड़ा मूवमेंट जारी है, वह नेताजी की अस्थियों को जापान के रेनकोजी मंदिर से वापस लाकर भारत में रखे जाने की मांग है. नेताजी ने भारत की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी तो उनकी अस्थियों को जापान के रेनकोजी मंदिर में रखे जाने का कोई औचित्य नहीं है. भारत के आज़ाद होने पर उव्हें वापस लाया जाना चाहिए. 18 अगस्त 1945 में उनके देहांत के बाद उनकी अस्थियों को भारत में रखना ही उनके लिए और हम सब के लिए सबसे बड़ा काम है.’

‘हम चाहते हैं कि नेता जी की अस्थियों को लाकर उसका डीएनए टेस्ट भी कराया जाना चाहिए. हमें इस मामले में कोई एतराज नहीं है, क्योंकि नेताजी की मृत्यु से जुड़ी प्रचलित भ्रांतियों को दूर किया जाना बहुत महत्वपूर्ण है.’

‘इसके अलावा सरकार से हमारी तीसरी बड़ी अपेक्षा दिल्ली में इंडिया गेट के पास नेताजी मेमोरियल बनाए जाने को लेकर है. हमने सरकार से मांग की है कि दिल्ली के कर्तव्य पथ पर आईएनए मेमोरियल स्थापित किया जाए ताकि आम लोग भी नेताजी से जुड़े तथ्यों को देख-जान सकें.’

‘आज़ाद हिंद फौज में 60 हज़ार सैनिक थे, जिसमें से लगभग 26 हज़ार स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में बलिदान दे चुके थे. स्वतंत्रता आंदोलन में यह किसी भी बलिदान का 44% है. विश्व की किसी भी फ़ौज में इतना बलिदान कभी किसी ने नहीं दिया है, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि इन 26 हज़ार सैनिकों में से किसी एक का भी कहीं एक भी पत्थर में नाम नहीं है. अभी हम लोगों ने तलाश करके आज़ाद हिंद फौज के 26 हज़ार सैनिकों की सूची भारत सरकार को दी है. हमारी मांग है कि उनके लिए इंडिया गेट के पास ही नेताजी के बुत के सामने एक मेमोरियल बनना चाहिए. इस स्थान पर जापान के रेनको जी मंदिर से अस्थियां लाकर नेताजी मेमोरियल में अस्थियों को रखा जाना चाहिए.’

देश और देश के बाहर भी मानवीय अधिकार बड़ा मुद्दा है, जिसके लिए वह कई विश्वविद्यालयों, स्कूल और कॉलेज में व्याख्यान आयोजित करते हैं. साथ ही नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी और आजाद हिंद दिवस 21 अक्टूबर को भी वह कार्यक्रम करते हैं. वह कहते हैं, ‘हमारा संगठन देश में ह्यूमन राइट्स पर भी बहुत काम कर रहा है. लोगों में जागरूकता के लिए गांव-गांव जाकर हम सेमिनार आयोजित कर रहे हैं. मानवाधिकारों का जहां हनन हुआ, हम लोग और हमारी टीम, जिसमें कई वकील भी शामिल हैं, वहाँ जाकर उनकी मदद करते हैं और उसका प्रभाव नौजवानों पर काफ़ी पड़ रहा है. यह हमारे मूवमेन्ट की सफलता है कि नेताजी से जुड़ी फाइलों के डिक्लासीफिकेशन के हमारे मूवमेन्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिला. कई देशों के एनआरआई और नेताजी की विचारधारा को मानने वाले हमारे मूवमेंट से जुड़े, जिसका यह नतीजा निकला कि 75 साल बाद नेताजी से जुड़ी गुप्त पत्रावलियां सार्वजनिक हो पाई.’


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