कुल्लू दशहरा | देव दर्शन इस बार दूर से ही
कुल्लू। इस बार यहां दशहरे के उत्सव में जुटने वालों को देवों के दर्शन दूर से ही करने होंगे. श्रद्धालुओं को देवरथ, मुख-मोहरे छूने की इज़ाजत नहीं होगी, साथ ही सभी को चेहरा ढंकना ज़रूरी होगा. रथयात्रा में सिर्फ़ दो सौ श्रद्धालु ही शामिल हो सकेंगे. सुरक्षा इंतज़ाम देखने के लिए छह सौ से अधिक सुरक्षा कर्मी रहेंगे. दशहरा उत्सव 25 अक्टूबर को शुरू होगा और 31 अक्टूबर तक चलेगा.
महामारी की वजह से इस बार दशहरा उत्सव में हमेशा की तरह से श्रद्धालुओं की भागीदारी नहीं हो सकेगी और न ही वह रौनक दिखाई देने के आसार हैं, जिसके लिए कुल्लू का दशहरा दुनिया भर में जाना जाता है. पिछले साल दशहरा उत्सव में 280 देवरथ शामिल हुए थे और हज़ारों की तादाद में उनके कारकून, हारियान और देवलु. इस बार उत्सव में जब सिर्फ़ दो दिन बचे हैं, न तो कोई ख़ास तैयारियां दिखाई दे रही हैं और न ही माहौल. अलबत्ता रथ यात्रा के लिए रथ मैदान सजाने का काम तेज़ी से चल रहा है.
इस बार देव परंपराओं को निभाने भर की मंशा है. देवी-देवताओं के देवलुओं, हरियानों तथा बाक़ी लोगों को ख़ुद को सैनिटाइज़ करके रहना होगा. देवताओं के अस्थायी शिविर में निर्धारित जगह से ही दर्शन करना संभव होगा. प्रतिमा या रथ को छूना निषेध होगा. हर रोज़ सुबह-शाम सभी देव शिविरों को सैनिटाइज़ किया जाएगा.
कुल्लू दशहरा की विशिष्टता
पूरे देश में जब दशहरा ख़त्म हो जाता है, कुल्लू में तब दशहरा उत्सव की शुरुआत होती है. हिमाचल के लोगों की संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के प्रतीक इस उत्सव में रावण, कुम्भकर्ण या मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते. नगर देवता रघुनाथ जी की वंदना से शुरू होने वाले इस उत्सव में पारंपरिक पोशाकों में सजे-धजे लोग तुरही, बिगुल, ढोल और नगाड़े लेकर बाहर निकलते हैं. सभी अपने ग्राम्य देवता का पूजन करके उनके रथ के साथ जुलूस बनाकर निकलते हैं. देवताओं की प्रतिमाएं बेहद आकर्षक सजावट वाली पालकी में लेकर चलते हैं. नगर परिक्रमा करने वाले इस जुलूस के साथ चलने वालों में नटी नृत्य करने वाले नर्तक भी होते हैं. लोग मानते हैं कि इस मौक़े पर देवलोक से एक हज़ार देवी-देवता पृथ्वी पर उतरते हैं.
कवर फ़ोटो |Kondephy, CC BY-SA 3.0
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