चार्ल्स कोरिया मानते थे कि शहरों को बर्बाद करते हैं बाज़ार

  • 9:31 am
  • 16 June 2020

साबरमती आश्रम के ‘महात्मा गांधी संग्रहालय’ और भोपाल के ‘भारत भवन’ या कोलकाता में सॉल्ट लेक के ‘सिटी सेंटर’ और जयपुर के ‘जवाहर भवन’ में कोई एक साम्य खोजना बहुत मुश्किल नहीं है. आप इन इमारतों के वास्तुकार को याद कर सकते हैं. वास्तु के परंपरागत मूल्यों को बनाए रखते हुए उसे आधुनिक चेहरा देने का वाले वास्तुकार और शहरी योजनाकार चार्ल्स कोरिया. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के “ मिशिगन ब्वॉय” और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ़ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स की तरफ़ से “भारत के महान वास्तुशिल्पी” के ख़िताब से नवाज़े गए चार्ल्स कोरिया.

चार्ल्स कोरिया ने आधुनिक भारत की वास्तुकला को दुनिया भर में एक नई पहचान दी. आज़ाद हिन्दुस्तान की वास्तुकला को विकसित करने में उनकी निर्णायक भूमिका रही. वास्तुकला के साथ ही भारतीय कलाओं और विचार के क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है. सिकंदराबाद में जन्मे चार्ल्स कोरिया ने मुंबई के ‘सेंट जेवियर कॉलेज’ से पढ़ाई की और बाद में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन’ और ‘मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ (एमआईटी) से. हिन्दुस्तान लौटकर उन्होंने काम की शुरुआत की और कम समय में ही देश के श्रेष्ठ वास्तुकारों के बीच पहचान बना ली. दिल्ली की ‘जीवन भारती’ बिल्डिंग, ‘ब्रिटिश काउंसिल’ बिल्डिंग, दिल्ली नेशनल क्राफ्ट म्यूज़ियम, मध्य प्रदेश का विधानसभा भवन, नवी मुंबई का जवाहर कला केन्द्र, गोवा में कला अकादमी जैसी कई इमारतें उनकी परिकल्पना हैं. लिस्बन, एमआईटी अमेरिका, बोस्टन, टोरंटो में भी चार्ल्स कोरिया का काम देखा जा सकता है. टोरंटो में उनका डिज़ाइन किया हुआ ‘आग़ा ख़ां म्यूज़ियम’ और ‘इस्माइली सेंटर’ की तारीफ़ करते हुए, वास्तुकला समीक्षक ह्यू पीयरमैन ने लिखा था, ‘‘कोरिया ने यहां जिस तरह से प्रार्थना घर का निर्माण किया है, वह अद्भुत है. अत्याधुनिक और उतना ही रहस्यमयी.’’

वास्तुकार होने के साथ-साथ वह शहरी योजनाकार भी थे. 1970 के दशक में जब सरकार को नई शहरी योजनाएं बनाने का विचार आया, तो उन्हें बनाने से लेकर उन पर अमल की ज़िम्मेदारी चार्ल्स कोरिया को दी गई. उन्होंने दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और बंगलूरू की टाउनशिप का डिज़ाइन बनाया. आज हम देश में कम आय वर्ग के लिए कई किफ़ायती आवास निर्माण योजनाएं देखते हैं, इन योजनाओं की शुरूआत चार्ल्स ने ही की थी. आज जिस तरह महानगरों में बिना किसी योजना के अंधाधुंध इमारतें बन रही हैं, वे इनके ख़िलाफ़ थे. उनका कहना था, ‘‘बाज़ार की शक्तियां शहर नहीं बनातीं, बल्कि उन्हें बर्बाद करती हैं.’’

चार्ल्स कोरिया दिल्ली के कनॉट प्लेस को डिज़ाइन करने वाले रॉबर्ट रसेल टोर से ख़ासे प्रभावित थे, लेकिन उन्होंने जल्दी ही अपनी विशिष्ट शैली विकसित कर ली. अपनी मौलिक सोच, भारतीय परम्परा के अनगिनत तत्वों और आधुनिकता के मेल से उन्होंने एक नई वास्तुभाषा विकसित की, जो बिल्कुल अनूठी है. उनके डिज़ाइन किए हुए भवनों में एक ख़ास तरह की भव्यता और सौंदर्य देखने को मिलता है. ये इमारतें अपनी भव्यता से हमें चौंकाती नहीं, बल्कि इन्हें देखना सुख की अनुभूति देता है. वास्तुकला में उन्होंने कई नए प्रयोग किए. ‘ओपेन टू स्काई स्पेस’ को उन्होंने मूल मंत्र की तरह अपनाया था. चार्ल्स कोरिया इमारतों का डिज़ाइन कुछ इस तरह से करते थे कि उनमें सूरज की किरणें दिन में एक बार ज़रूर आएं. यही वजह है कि उनके डिज़ाइन में जालियों और छज्जों को ख़ास अहमियत मिलती. ये जाली और छज्जे, वे मौसम को ध्यान में रखकर डिज़ाइन करते थे. वह इस बात का भी हमेशा ख़्याल रखते कि इमारतों में हवा और रोशनी के लिए अलग से ऊर्जा न ख़र्च करना पड़े, बल्कि वे सहज ही उपलब्ध हों.

‘भारत भवन’ की एक ख़ूबी इसकी रोशनी व्यवस्था भी है. यहां हर एक कोने में प्राकृतिक रोशनी पहुंचती है. ‘जवाहर कला केंद्र’ के डिज़ाइन में उन्होंने जयपुर की नागर शैली और भवन निर्माण योजना को ध्यान में रखते हुए इमारत के निर्माण, शैली और भित्तिचित्रों में स्थानीय परंपराओं का निर्वहन किया है. महाराजा जय सिंह ने जयपुर को वास्तु के आधार पर नौ खण्डों में बसाया था. ये नौ खण्ड नौ ग्रहों के प्रतीक थे. जवाहर कला केंद्र में भी चार्ल्स कोरिया ने इसी नवखण्डीय वास्तु को अपनाते हुए नौ चौकों को मिलाकर परिसर की रचना की है.

वास्तुकार चार्ल्स कोरिया ने देश और विदेश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी. शहरीकरण पर राष्ट्रीय आयोग के वे पहले अध्यक्ष हुए. 1984 में मुंबई में शहरी डिज़ाइन अनुसंधान संस्थान की स्थापना की. यह संस्थान पर्यावरण संरक्षण और शहरी समुदायों में सुधार के लिए काम करता है. वास्तुकला के लिए उन्हें ‘आग़ा ख़ां पुरस्कार’, ‘प्रीमियर इम्पीरियल ऑफ़ जापान’ और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (रीबा) के ‘रॉयल गोल्ड मेडल’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. भारत सरकार ने 1972 में ‘पद्मश्री’ और 2006 में ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया. रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स ने जब उन्हें ‘भारत का महान वास्तुकार’ का ख़िताब दिया तो इस सम्मान पर चार्ल्स ने बड़ी विनम्रता से कहा, ‘‘शायद सबसे ज्यादा प्रयोगधर्मी ठीक रहता…लेकिन महानतम कहने के बाद कोई स्पेस नहीं बचता.’’ चार्ल्स कोरिया ने अपनी ज़िंदगी भर का काम तकरीबन छह हज़ार रेखांकन, मॉडेल, नोट्स और प्रोजेक्ट्स आदि ‘रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स’ को ही दे दिए थे ताकि उनका रखरखाव ठीक तरह से हो सके. ज़िंदगी के आख़िरी दिनों में वह पानी के पुनर्चक्रण, ऊर्जा पुनर्नवीकरण, ग्रामीण बसाहट और क्षेत्रीय जैव विविधता को लेकर अध्ययन-अनुसंधान कर रहे थे. उनके दिमाग में और भी कई योजनाएं थीं, जो साकार होतीं, लेकिन उसके पहले 16 जून 2015 को 84 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.


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