धोनी के क्रिकेट की परिभाषा – रन महत्वपूर्ण, तकनीक नहीं
![](https://samvadnews.in/wp-content/uploads/2020/08/M.S.-Dhoni-BCCI-Twitter.jpg)
महेंद्र सिंह धोनी के अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट के शुरूआती दिन थे. टीम में उनकी जगह स्थायी नहीं हुई थी. अपने पहले मैच की पहली गेंद पर बिना रन बनाये ही वह आउट हो चुके थे. भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए जूझ रहे थे. दिनेश कार्तिक उनकी जगह लेने के लिए मुँह बाये खड़े थे. बिहार-झारखण्ड जैसे राज्य से भारतीय क्रिकेट टीम में खेलना ही बड़ा सपना था. उनका कोई गॉडफ़ादर भी नहीं था.
उसी समय के एक मैच की मुझे स्मृति है. हरभजन सिंह गेंदबाजी कर रहे थे. उनकी गेंद पर धोनी ने विकेट के पीछे चपलता से एक कैच लपका. जैसा कि आमतौर पर होता है सारे लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं, हाथ मिलाते हैं. गेंदबाज और कैच लेने वाला फ़ील्डर तो विशेष रूप से उछलते हुए हाथ मिलाते हैं. पूरी टीम पिच पर खड़ी होकर एक दूसरे को बधाई दे रही थी लेकिन एक-दो खिलाड़ियों के अलावा किसी ने भी धोनी से हाथ नहीं मिलाया. धोनी टीम से अलग ही खड़े रहे. जबकि बाक़ी सब आपस में हँसी-मज़ाक कर रहे थे और गले मिल रहे थे. गेंदबाज हरभजन ने तो धोनी की तरफ़ देखा भी नहीं. हालाँकि जब धोनी ने 148 और 183 रन की पारी खेल दी तब तो सारे बंधन टूट गए. सब लोग उनके दोस्त बन गए. सबसे ज्यादा ख़ुश सहवाग हुए क्योंकि दोनों क्रिकेट के बने-बनाये नियम को तोड़कर बल्लेबाजी करते थे. सहवाग को तो जैसे बिछड़ा हुआ भाई मिल गया था.
धोनी ने अपने रिटायरमेंट की घोषणा करते हुए इंस्टाग्राम पर जब एक वीडियो पोस्ट की तो उसमें सभी साथी खिलाडियों के साथ हरभजन सिंह की भी फ़ोटो थी. फ़ोटो में हरभजन विकेट लेने के बाद धोनी की तरफ हाथ बढ़ाये हुए हैं और धोनी भी हाथ बढ़ाकर उनको बधाई दे रहे हैं. इसी तरह युवराज के पिता योगराज सिंह ने एक समय प्रेस कांफ्रेंस करके खुलेआम धोनी पर युवराज के कॅरिअर को तबाह करने का आरोप लगाया था लेकिन धोनी ने उसका जवाब नहीं दिया था. इस वीडियो में युवराज सिंह की भी कई तस्वीरें हैं. आशीष नेहरा ने विकेट के पीछे कैच छोड़ देने पर माँ को लेकर जो गाली दी उसको भी धोनी ने नजरअंदाज किया. वीडियो में नेहरा की भी फ़ोटो है.
वैसे खेल के मैदान पर यह सामान्य बात है, पर कई बार लोग इन बातों को दिल से भी लगा लेते हैं और जीवन भर माफ़ नहीं करते. बहुत सारे क्रिकेटरों की ऐसी कहानियाँ हैं भी. यह उदाहरण सिर्फ़ यह बताने के लिए है कि धोनी ने अपने मन में कभी किसी के लिए कटुता नहीं रखी इसलिए मैदान पर तनावरहित होकर इतिहास रचते रहे. वह जहाँ से आए थे उनके पास पाने को बहुत कुछ था और खोने को बहुत कम. उन्होंने अपना जीवन सिर्फ पाने में लगाया. हालाँकि उन पर कई खिलाड़ियों को जल्द सन्यास लेने के लिए मजबूर करने का आरोप भी है. यह भी सच है कि धोनी अगर सपोर्ट करते तो उनको और मौक़े मिल सकते थे पर धोनी ने पुराने के बजाय नए खिलाड़ियों पर ज्यादा भरोसा जताया.
सुनील गावस्कर ने एक बार सन्यास लेने के संबंध में कहा था कि सन्यास तब लेना चाहिए जब लोग कह उठें – क्यों? यह नहीं कि तब, जब लोग कहने लगें कि – क्यों नहीं? अपने ज़माने में गावस्कर ने भी अच्छे फ़ॉर्म में रहते हुए सन्यास लिया था और कल धोनी ने भी शीर्ष पर रहते हुए सन्यास की घोषणा कर दी. भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरिज़ के दौरान 2014 में भी बिना शोर-शराबे के वे टेस्ट क्रिकेट से विदा हुए थे. अभी उनकी टीम चेन्नई सुपरकिंग आईपीएल की तैयारी में जुटी थी. धोनी ने अभ्यास सत्र के बाद अचानक मोबाइल निकाला और इंस्टाग्राम पर एक वीडियो शेयर करके सन्यास की घोषणा कर दी. साथी खिलाड़ी उनके इरादे को भाँप भी न पाए.
कैसा संयोग है कि धोनी की बायोपिक में उनकी भूमिका निभाने वाले सुशांत सिंह राजपूत ने दो महीना पहले ख़ुदकुशी कर ली और अब धोनी ने भी लगभग उसी दिन अपना बल्ला खूँटी पर टांग दिया. उन्होंने शाम को 7.29 बजे से ख़ुद को रिटायर माने जाने का आग्रह किया. लगभग यही वह समय है जब वे विश्वकप में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ अपने अंतिम मैच में भी रन आउट हुए थे और भारतीय टीम विश्वकप से बाहर हो गई थी. शायद उस मनहूस समय की पीड़ा उनके मन में अब तक रही होगी. नियति का खेल देखिए जो बल्लेबाज चपल फील्डर पोलार्ड द्वारा गेंद फम्बल का मज़ाक किए जाने के बाद भी दौड़ कर रन ले लेता है, वह अपने पहले और आख़िरी दोनों मैच में रन आउट हो गया.
धोनी के साथ सुरेश रैना ने भी संन्यास ले लिया. हिन्दी के युवा लेखक सत्य व्यास ने फ़ेसबुक पर लिखा कि “सुरेश रैना 2 अक्टूबर के लाल बहादुर शास्त्री हो गए.” ज़ाहिर सी बात है कि रैना अगर किसी दूसरे दिन संन्यास लेते तो उनकी अलग से चर्चा होती. एक साथ संन्यास लेने की वजह से धोनी की चर्चाओं में वे दब गए. ऐसा भी नहीं है कि रैना को इस बात का एहसास नहीं था लेकिन अपने कप्तान के साथ उनका लम्बा समय मैदान पर गुज़रा है. एक तरह से धोनी रैना के आजीवन कप्तान रहे हैं. भारतीय टीम से लेकर चेन्नई सुपर किंग तक. उसके ख़राब फ़ॉर्म के बावजूद धोनी ने उन पर सब दिन भरोसा जताया. एक कप्तान का भरोसा खिलाड़ी की बर्बाद ज़िन्दगी को ट्रैक पर ला सकता है. शायद उसी के सम्मान में रैना ने ऐसा किया हो. जब कोई नया गेंदबाज पिट रहा होता तब भी वह उनके लिए रणनीति बनाते थे और अपने अनुभव से उसे विकेट दिला देते थे. जबकि आमतौर पर ऐसी स्थिति में बाक़ी खिलाड़ी या कप्तान उदासीन रहते हैं. रैना, कुलदीप, चहल, रोहित शर्मा, जडेजा जैसे खिलाड़ियों को स्थापित करने में धोनी का बड़ा रोल रहा है.
एक बार क्रिकेट खेलने के लिए अपने एक दोस्त को बुलाने मैं उसके घर गया तो उनके चाचा ने मुझे घेर लिया. वे स्थानीय कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे और खेल को बर्बादी का धंधा समझते थे. पूछा कि तुम लोग जो क्रिकेट के पीछे एतना पगलाए रहते हो, कोई है जो बिहार से आज तक इंडिया के लिए खेला है? उस वक्त मेरे पास कोई जवाब नहीं था. बाद में मैंने अपने स्तर से खोजबीन की तो पता चला कि रमेश सक्सेना और सुब्रतो बैनर्जी ने एक-एक टेस्ट खेला है. सबा करीम वैसे तो बिहार के खिलाड़ी थे पर जब उन्होंने बिहार छोड़ कर बंगाल टीम से खेलना शुरू किया तब जाकर उनको इंडियन टीम से खेलने का मौका मिला. तो कुल मिलाकर क्रिकेट में बिहार शून्य बटा सन्नाटा था. इसलिए जब बिहार-झारखण्ड में धोनी का हल्ला उठा तो हम लोगों के भी अरमान जाग उठे.
मैंने धोनी के बारे में अख़बारों में पढ़ा और कुछ म्यूच्युअल फ्रेंड्स से उनकी तारीफ़ सुनी. एक बार जब मैंने अपने कुछ दोस्तों को ये कहा कि धोनी नाम का एक खिलाड़ी जल्द ही भारतीय टीम में खेलेगा तो सबने मेरा मज़ाक उड़ाया. उस समय पहली बार ‘क्रिकेट सम्राट’ में धोनी की तस्वीर छपी थी. अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के अलावा रणजी खिलाड़ियों की तस्वीर तब मैग्ज़ीन में न के बराबर छपती थीं. फ़ोटो में धोनी के बाल थोड़े बड़े थे और वह नेट में बल्लेबाजी कर रहे रहे थे. सर पर हेलमेट की जगह टोपी थी. कुछ ही दिनों बाद इंडिया ए टीम के साथ उनकी जिम्बाब्वे और केन्या की यात्रा हुई. दिनेश कार्तिक भी उस टीम में थे. शायद संदीप पाटिल कोच थे. पहला मौक़ा कार्तिक को ही मिला लेकिन जैसे ही बाद में धोनी को मौका मिला उन्होंने दो शतक बना दिए और कीपिंग में भी कैच और स्टंप करने का पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इसके बाद भी पहले कार्तिक को ही प्रमोट करने की कोशिश हुई पर उसके बाद जो हुआ वो अब इतिहास है.
धोनी और सहवाग के आने से पहले भारत में बल्लेबाजी एक ख़ास किताबी शैली में की जाती थी. जिसे कॉपी बुक स्टाइल कहा जाता था. जो इसको फॉलो नहीं करता था उसे अच्छा बल्लेबाज नहीं माना जाता था. कोच भी ऐसी ही बल्लेबाजी सिखाते थे. जो इसके विपरीत बल्लेबाजी करता था उसे देहाती मानते थे. लोग उसका मज़ाक बनाते थे कि हवा में तलवार भांज रहा है. कोच नेट में बैटिंग पर रोक लगा देते थे. जब धोनी ने अपने ‘देहाती अंदाज’ में कॉपी बुक स्टाइल वाले बल्लेबाजों से ज्यादा रन बनाकर दिखा दिया तब भारत के क्रिकेट प्रशिक्षकों की भाषा बदल गई. अब तो वे कहते हैं कि जैसे भी हो रन बनाओ. रन बनाना महत्वपूर्ण हैं. विकेटकीपर को कैच लेने के बाद बन्दर की तरह गुलाटी मारना सिखाया जाता है. इस तरह कैच लेने से गिरने के बाद कम चोट लगती है. दिनेश कार्तिक भी उसी तरह गुलाटी मारते थे.
विश्व के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर में से एक गिलक्रिस्ट भी गोता लगाते हुए कैच पकड़ते थे. उसमें एक लय होती थी. लेकिन धोनी कैच लेने के बाद ऐसे गिरते थे मानो जैसे कोई पेड़ कटने के बाद धप्प से जमीन पर गिरता है. यह देखने में अटपटा लगता था. धोनी भले अन्दर से फिट थे, मजबूत थे मगर बाहर से उनका लुक एक फिट खिलाड़ी जैसा नहीं दिखता था. कोहली या आस्ट्रेलिया के खिलाडियों के शरीर से तुलना करके इस बात को समझ सकते हैं. स्टंप करने की भी तुलना करें तो आप देखेंगे कि एडम गिलक्रिस्ट भी बॉल को पहले अपने ग्लव्ज़ में लेते हैं फिर स्टंप करते हैं. पर, धोनी दोनों काम एक साथ करते हैं. वो गेंद को पकड़ने के बजाय झटका देते हुए विकेट की तरफ ले जाते हैं. इससे उनका समय बचता है और वे तेज स्टंपिंग कर पाते हैं. मैंने जितने भी मैच देखे, उसमें सिर्फ एक या दो बार उनको स्टंपिंग मिस करते देखा. परफ़ेक्शन के मामले में वे गिली से लेकर हर्शल गिब्स तक किसी से कम नहीं थे. अपने अटपटेपन के बावजूद धोनी की मौलिक तकनीक सब पर भारी पड़ी. अब नए क्रिकेटरों के लिए यही असली तकनीक है. ऋषभ पन्त तो हर जगह उनकी ही कॉपी करता है.
धोनी का पैतृक घर उत्तराखंड है, जो पहले उत्तरप्रदेश का हिस्सा था. उनकी परवरिश राँची में हुई. क्रिकेट की शुरूआत बिहार से हुई. उन्होंने दिल्ली में भी लम्बे समय तक क्रिकेट का अभ्यास किया. आईपीएल में चेन्नई की टीम से खेलते रहे. दरअसल धोनी सही मायने में पूरे इंडिया का प्रतिनिधित्व करते थे. धोनी राँची जैसे छोटे शहर से थे लेकिन नेम-फ़ेम के बावजूद उन्होंने खुद को किसी बड़े शहर में स्थायी रूप से सेटल नहीं किया. उन्हें अपने शहर के मंदिरों में ही आस्था थी. उन्हें राँची की सड़कों पर ही बाइक चलाना पसंद था. अपने शहर में धोनी ने फार्मिंग भी शुरू की. उनकी जो रुचियाँ बचपन से थी वे उसी पर सब दिन कायम रहे. आराम के दिनों में भी वह ज्यादा प्रैक्टिस राँची में ही करते थे.
एक मध्यवर्गीय आदमी की तरह जीवन में हर चीज़ का प्लान बी तैयार रखते थे. धोनी ने बुनियादी चीज़ों पर ध्यान दिया. कूल रहे. दवाब नहीं लिया. यह भी संभव था कि क्रिकेट में उनके सारे दांव नहीं चलते पर संयोग से सब चल गए. गांगुली ने जो ज़मीन बना दी उसका फ़ायदा धोनी को मिला. ख़ुद को ज्यादा हाईलाइट करने की जगह वे लो-प्रोफ़ाइल बने रहे. ट्राफी जीतने के बाद फ़ोटो सेशन के दौरान सबसे साइड में खड़ा हो जाना उनकी अपनी विशेषता थी. धोनी की सबसे मजबूती थी उनका मैदान में हर वक्त इन्व़ल्व होना. बैटिंग नहीं कर रहे हैं तो कीपिंग, कीपिंग नहीं तो फील्डिंग, फील्डिंग नहीं तो बॉलिंग. इससे उनकी क्रिकेटिंग समझ सबसे अलग हुई. रणनीति बनाने में यही अनुभव काम आया. इसलिए वे भारत के अनोखे कप्तान बने जिसने भारत को नम्बर एक टीम बनाया, साथ ही क्रिकेट के दोनों फॉर्मेट का विश्वकप और चैम्पियंस ट्रॉफी अपने नाम किया.
(लेखक ख़ुद क्रिकेट के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं. हाल ही में जेएनयू से डॉक्टरेट की उपाधि.)
फ़ोटो | बीसीसीआई के ट्वीटर हैंडिल से साभार.
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