पंजाब | घर लौटने के इंतज़ार में बुरी बीत रही है मजदूरों पर

  • 5:07 pm
  • 26 May 2020

जालंधर रेलवे स्टेशन | 26 मई

घर लौटने के लिए ट्रेन के इंतजार में बैठी सुनीता यादव बेहोश हो गईं. वजह आसमान से बरसती आग और भूख! सुनीता के पति योगेश्वर यादव नहीं चाहते कि उनकी तस्वीर मीडिया में आए. शायद इसलिए कि मीडिया में तस्वीर आने के बाद कहीं उनका जाना न टल जाए. और वे किसी सूरत घर लौट जाना चाहते हैं. वे सुनीता को होश में लाने की कोशिश जुटे हैं क्योंकि गाड़ी चलने की घोषणा किसी वक़्त भी हो सकती है. फ़ौरी तौर पर सुनीता का ‘फिट’ दिखना लाजमी है, वरना रेलवे और सेहत महकमे के लोग ट्रेन में चढ़ने ही नहीं देंगे. गोरखपुर का यह यादव परिवार वापस जाने के पिछले छह दिनों से सड़कों पर धक्के खाता फिर रहा है. जिस दड़बेनुमा जगह में उनकी रिहाइश थी, उसके मालिक ने खाली करा ली. सड़क और उम्मीद ही उनका सहारा थे. योगेश्वर के अनुसार दो दिन से उन लोगों ने खाना नहीं खाया. फ़िक्र की बात यह है कि सुनीता को पांच माह का गर्भ है.

गर्मी और भूख और अवसाद और बीमारियां से मजदूर लगातार जूझ रहे हैं. स्थानीय लोगों को आम बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टरी परामर्श हासिल नहीं हो पा रहा है तो लॉकडाउन के बाद अचानक ‘हाशिए का समाज’ बन गए इन मजदूरों की क्या बिसात? खाना नहीं, पानी नहीं और ठिकाना नहीं, पास में फूटी कौड़ी नहीं – ऐसे में केमिस्ट से भी दवाई ले पाना उनके लिए मुमकिन नहीं. यों मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दो दिन पहले कहा था कि प्रवासी मजदूरों को कोई दिक्कत हरगिज़ नहीं होने पाएगी और सरकार उनका ख़ास ख़्याल रखेगी. जालंधर, लुधियाना, अमृतसर, पटियाला और बठिंडा में कई बड़े परिसरों में मजदूरों के कैंप बने हुए हैं. इन कैंप में वे मजदूर हैं, जो घर लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं. कई अस्थायी मजदूर कैंप भी हैं. जालंधर के बल्ले-बल्ले फार्म हाउस में प्रवासी मजदूर कैंप बना दिया गया है. इस फार्म हाउस के ठीक सामने फ्लाईओवर है. इन दिनों फ्लाईओवर के नीचे हजारों प्रवासियों का पड़ाव है. सरकारी दावों के विपरीत इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. यहां आज मुनादी हुई है कि मजदूर घर न लौटें क्योंकि काम-धंधा शुरू हो गया है. भूखे-प्यासे श्रमिकों को उम्मीद थी कि ऐसी घोषणाओं से पहले फौरन उन्हें रोटी-पानी मुहैया कराया जाएगा. गया के अजीत सिंह कहते हैं कि इसी जगह कल कई मजदूर लू-गर्मी और भूख-प्यास से बेहोश हो गए. बैठे लोगों ने ऊंचे सुर में नारे लगाए तो पुलिस आ गई. लाठियां बरसाईं और उन्होंने दुबककर किसी तरह ख़ुद को बचाया. और यह रोजमर्रा की बात है.

पंजाब में रह रहे साढ़े दस लाख से ज्यादा मजदूरों ने घर वापसी का पंजीकरण कराया है. चार लाख से ज्यादा जा भी चुके हैं. अंदाज़ा है कि करीब तीन लाख ऐसे भी हैं, जो छुपते-छुपाते किसी सवारी से या फिर पैदल ही लौट गए हैं. बाक़ी को इंतजार हैं और इंतज़ार में ज़िंदगी किस क़दर बदहाल है, यह कहीं भी जाकर देखा जा सकता है.
ज्यादातर मजदूरों ने अपने ठीहे-ठिकाने या तो ख़ुद खाली कर दिए हैं या उनसे जबरन ख़ाली करा लिए गए है. बहुतेरे मजदूरों ने मकान मालिकों के बंधन से मुक्त होने के लिए अपने घरों से पैसे मंगवाए. जो नहीं मंगवा पाए, उनका सामान रख लिया गया बल्कि छीन लिया गया, यहां तक कि सफर के दौरान की ज़रूरत मोबाइल फोन भी. मजदूरों में कइयों पर हिंसा भी हुई लेकिन कोई अपील-दलील नहीं. जालंधर में 15 प्रवासी मजदूरों के एक डेरे में जायदाद के मालिक ने उनकी रेज़गारी तक छीन ली.

हो यह भी रहा है कि जिन श्रमिकों ने किसी तरह अपनी रिहाइश के लिए किसी तरह किराया पेशगी दे दिया, ख़बर देकर रेलवे वाले ही दांव दे गए और बताए वक़्त पर ट्रेन नहीं मिली तो लौटने पर मालिक मकान उन्हें रहने नहीं दे रहे है. ज्यादातर मामलों में तो कमरों पर मालिकों के मोटे ताले लटके मिलते हैं औऱ बाक़ी जगहों से उन्हें फजीहत करके खदेड़ दिया जाता है.

मंडी गोविंदगढ़ में क़रीब पांच सौ मजदूर इन्हीं कुछ वजहों के चलते सोमवार को पुलिस से भिड़ गए. श्रमिकों ने पुलिस पर पथराव किया तो पुलिस ने जवाब में हर हथकंडा अपनाया. कई मजदूर घायल हुए. पुलिस वाले भी. ऐसी घटनाएं लुधियाना और जालंधर में भी हो चुकी हैं लेकिन अफ़सर इस पर पर्दा डालकर ख़ामोश हो जाते हैं.

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