चमोली हादसा | चिपको आंदोलन का साक्षी रहा जंगल भी तबाह

  • 12:30 am
  • 15 February 2021

जोशीमठ | चिपको आंदोलन का साक्षी रहा रैणी गांव का वह जंगल भी ऋषिगंगा के सैलाब की भेंट चढ़ गया, जहाँ से 1973 में ‘चिपको आंदोलन’ शुरूआत हुई थी. जहाँ गौरा देवी की अगुवाई में गांव की महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर जंगल बचाया था.

पिछले इतवार की आपदा में ऋषिगंगा के दोनों तरफ़ की घाटियों में क़रीब 200 हेक्टेयर वन क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया. इस जल प्रलय में देवदार, सुराई, चीड़, केल आदि पेड़ों को नुकसान हुआ, साथ ही भारी मात्रा में वन संपदा बर्बाद हो गई.

इस दो सौ हेक्टेयर क्षेत्र में रहने वाले जीव-जंतु कस्तूरी मृग, हिमालयन थार, घुरड़, भूरे भालू के साथ ही दूसरे वन्य जी‍व भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.

सन् 1973 में रैणी गांव के पंगराड़ी जंगल में क़रीब ढाई हज़ार पेड़ काटने के लिए चिह्नित किए गए थे. वन विभाग के कर्मचारी और ठेकेदार मजदूरों को लेकर वहां पहुंच गए. तब रैणी गांव की गौरा देवी की अगुवाई में गाँव की महिलाओं ने कटान का विरोध किया था. वे पेड़ों से चिपक गईं. वन विभाग के लोगों और ठेकदार को बैरंग लौटना पड़ा. यही मुहिम ‘चिपको आंदोलन’ और गौरा देवी ‘चिपको वूमन’ के तौर पर पहचानी गईं.

इस जंगल को हरा-भरा रखने में क्षेत्र की महिलाएं अब भी आगे रहती हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदा इस जंगल के बड़े हिस्से को निगल गई. जंगल के निचले क्षेत्र में भूस्खलन भी सक्रिय हो गया है. रैणी गांव के प्रधान भवान सिंह राणा का कहना है कि ग्रामीण अब भी अपने जंगलों को बचाने के लिए जागरुक हैं. चिपको आंदोलन के बाद से इस जंगल को नई पहचान मिली थी. समय-समय पर कई वन विशेषज्ञ यहां शोध करने आते रहे हैं, लेकिन अब तो यह जंगल छिन्न भिन्न हो गया है.

नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क के डीएफओ नंदबल्लभ शर्मा का कहना है कि इस जंगल में केल, सुराई, देवदार, बांज, बुरांस के संरक्षित पेड़ थे, अब जंगल उजाड़ लग रहा है.


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.