गाँधी समाधि | आदिपुर और रामपुर में भी
तीस जनवरी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का शहीद दिवस है. उन्हें याद करके कृतज्ञता जताने के साथ ही नेता और गणमान्य लोग राजघाट जाकर उनकी समाधि पर फूल चढ़ाते हैं. दिल्ली में राजघाट पर बापू की समाधि के बारे में दुनिया जानती है मगर बापू की दो और समाधियों के बारे में स्थानीय लोगों के सिवाय कम लोग ही जानते हैं.
दिल्ली के बाहर महात्मा गाधी की एक समाधि गुजरात में कच्छ ज़िले के आदिपुर शहर में है और दूसरी उत्तर प्रदेश के रामपुर शहर में. बापू से लोगों के लगाव और उनकी स्मृति अपने क़रीब रखने की भावना से प्रेरित होकर बनी ये समाधियाँ स्थानीय लोगों के बीच राजघाट की तरह ही पहचानी जाती हैं.
आदिपुर की गाँधी समाधि
देश के बंटवारे के बाद कच्छ में सरकार ने जो शरणार्थी कैंप बनाया था, उसे आदिपुर कहा गया. बड़ी तादाद में सिंध के अलग-अलग इलाक़ों से आए शरणार्थी यहाँ आबाद हुए. बंटवारे के बाद सिंध से हिंदुस्तान आए गाँधीवादी भाई प्रताप दयालदास ने गाँधी जी से कुछ ज़मीन दिलाने की प्रार्थना की थी ताकि पाकिस्तान से आए सिंधी लोगों को बसाया जा सके. गाँधी जी के कहने पर कच्छ रियासत के तत्कालीन महाराज विजयराजाजी ने 18 हज़ार एकड़ ज़मीन दान दे दी.
इसी ज़मीन पर सर्वोदय के सिद्धांत के आधार पर आदिपुर और गाँधीधाम की नींव पड़ी. गाँधीधाम की नींव रखने के लिए भाई प्रताप ने टेलीग्राम भेजकर महात्मा गाँधी का कच्छ आने के लिए आमंत्रित किया. दुर्भाग्य यह कि भाई प्रताप का भेजा टेलीग्राम 30 जनवरी को ही दिल्ली पहुंचा था, और उसी रोज़ शाम को गाँधी की हत्या हुई.
भाई प्रताप गाँधी के क़रीबी थे और चाहते थे कि आदिपुर में आबाद हुए शरणार्थियों की स्मृति में गाँधी हमेशा बने रहें. यही वजह थी कि भाई प्रताप गाँधी जी की अस्थियाँ आदिपुर लाए. उनके साथ ही आचार्य कृपलानी, कच्छ के महाराज और इलाक़े के तमाम लोगों ने पूरे विधि विधान से कांडला नदी में गाँधी की अस्थियों का विसर्जन किया और उसी रोज़ गाँधीधाम की नींव भी रखी.
गाँधीधाम से पाँच किलोमीटर दूर है – आदिपुर. इसी आदिपुर में अस्थिकलश रखकर गाँधी समाधि बनवाई गई. गाँधीधाम और आदिपुर की नागरिक सुविधाओं की देखरेख का ज़िम्मा उठाने वाला ‘सिंधु पुनर्वास निगम’ आदिपुर में गाँधी समाधि की देखरेख करता है. समाधि के चारों ओर बने ख़ूबसूरत पार्क में शहरी सुबह-शाम सैर के लिए आते हैं.
रामपुर में गाँधी समाधि
रामपुर के तत्कालीन नवाब रज़ा अली ख़ाँ अपने उदारवादी और प्रगतिशाली रवैये के लिए पहचाने गए. वह गाँधी के क़रीबी सहयोगी में भी शामिल रहे. गाँधी के निधन के बाद नवाब रज़ा अली खाँ ने अपने शहर में गाँधी की स्मृति अक्षुण्ण रखने की नीयत से समाधि बनवाने का इरादा किया.
बापू के निधन के बाद नवाब रज़ा अली ख़ाँ उनके परिवार के लोगों से मांगकर अस्थियाँ रामपुर लाए. 11 फ़रवरी 1948 को जब वह अस्थिकलश के साथ रामपुर पहुंचे, बड़ी तादाद में लोग रेलवे स्टेशन पर मौजूद मिले. नवाब ने कोसी नदी में अस्थियों का विसर्जन किया और एक हिस्सा चाँदी के कलश में रख ले आए.
शहर के बीचोबीच यह कलश रखकर उन्होंने गाँधी समाधि बनवाई. चार साल पहले प्रदेश सरकार इसके आसपास एक पार्क बनवाकर सामधि का सुंदरीकरण कराया.
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