मिथ्यासुर | धर्म और राजनीति के मेल से धुंधलाया सत्य-मिथ्या का भेद

बरेली | संहिता मंच की पहल ने बहुतेरे लोगों का यह भ्रम तोड़ने का काम ज़रूर किया है कि मंचन के लिए नए नाटकों की बहुत कमी है, कि नए नाटक नहीं लिखे जा रहे हैं. नई पीढ़ी के लोग तमाम भारतीय भाषाओं में नाटक लिख रहे हैं, बढ़िया और दमदार लिख रहे हैं और अपने समय को सलीक़े से दर्ज भी कर रहे हैं. विंडरमेयर थिएटर में बीइंग एसोसिएशन के संहिता मंच 25 नाट्य उत्सव में शामिल तीन नाटकों ने यह बात ज़ोरदार ढंग से रेखांकित की है.
उत्सव के दूसरे दिन उजागर ड्रामैटिक एसोसिएशन और वेद सत्पथी के नाटक ‘मिथ्यासुर’ का मंचन हुआ. यह नाटक मानवताके विकास में कथा-कहानियों के महत्व, राजसत्ता, और धर्म की आड़ लेकर फैलाए गई अज्ञानता के साथ ही हक़ीक़त, तार्किकता, विज्ञान, सत्य और मिथ्या के जटिल संबंधों की मुखर अभिव्यक्ति है. प्रणय पांडे का लिखा यह नाटक अजीत सिंह पलावत ने निर्देशित किया है.
‘मिथ्यासुर’ 18वीं सदी के हिंदुस्तान में केंद्रित कथा है. यह ज़िंदगी के सफ़रनामे की ऐसी मीमांसा है, जिसमें सत्य और मिथ्या पड़ाव के रूप में सामने आते हैं. एक प्राचीन मंदिर का राजपुराहित सोमदेव अपने आराध्य दैत्यराज कुम्भ का उपासक है. यह कुम्भ कोई मामूली दैत्य नहीं. यह तो सोमदेव के सपने में आकर राजसत्ता पर नियंत्रण रखता है, राजा तक पर उसका प्रभाव है. यह दैत्य नाराज़ होता है, तो ख़ुश होने के लिए नरबलि माँगता है. फिर अचानक दैत्य सोमदेव के सपनों से ग़ायब हो जाता है. ऐसे में राज्य का कामकाज भला कैसे चलता? और यही वह वक्त था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी की फ़ौज सरहद तक चढ़ी चली आई थी और राजा को जंग शुरू करने के लिए दैत्यराज की इजाज़त दरकार थी. इस नाज़ुक मौक़े पर नाटक राजपुराहित सोमदेव और तर्क और विज्ञान पर यक़ीन करने वाली राजकुमारी रेवती के बीच द्वंद्व के ज़रिये सत्य और मिथ्या के बीच खिंची रेखा की तलाश करता है.
नाटक में अर्पित शाश्वत ने सोमदेव, साहिल आहुजा ने दैत्यराज, अनिष्का सिंह ने रेवती, अभिनंदन गुप्ता ने सुरजन, शुभम पारीक ने राजा धर्मपाल, अभिनय परमार ने अखंड, भास्कर शर्मा ने राजदूत की भूमिका निभाई. मंच पर सहयोगी कलाकारों में विजय पाटीदार, प्रतीक्षा कोते, अतिशय अखिल, अनिमेष विनोद पत्थे शामिल रहे. वाद्य यंत्रों पर अनिमेष विनोद पत्थे, अतिशय व अखिल रहे, वेशभूषा और मंच परिकल्पना इप्शिता चक्रवर्ती सिंह, संगीत परिकल्पना मोहित अग्रवाल, प्रकाश परिकल्पना आदित्य, नृत्य संरचना रजनीश चाक्यार, माधव चाक्यार, मुखसज्जा रितु शर्मा ने की. सह-निर्देशन इप्शिता चक्रवर्ती सिंह ने किया.
दया दृष्टि चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. बृजेश्वर सिंह ने बताया कि उत्सव के तीसरे और आख़िरी दिन इतवार को बंगलूरु की संस्था ‘कहे विदूषक’ के कलाकार ‘रोमियो एंड शकुंतला’ प्रस्तुत करेंगे. उत्सव के बाद सोमवार की शाम को ‘वेटिंग फॉर नसीर’ का मँचन होगा. सभी नाटक शाम 7.30 बजे से होंगे.
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