बदमाश जेल में, घोड़ों की देखभाल पुलिस के ज़िम्मे
बरेली | पुलिस लाइंस की घुड़साल में दो घोड़े ऐसे भी हैं, जो पुलिस की मिल्कियत नहीं. ये घोड़े दरअसल उन बदमाशों की अमानत हैं, जो पिछले आठ साल से सज़ा काट रहे हैं. अमानत हैं इसलिए सरकारी काम में लाए नहीं जा सकते.
सन् 2012 में शाहजहांपुर के बंडा थाने की पुलिस ने दो बदमाशों को गिरफ़्तार किया था. पीलीभीत के रामफल और कासगंज के विनोद यादव के पास से पुलिस को ये दोनों घोड़े रेम्बो और फैंटम भी मिले. रामफल और विनोद को तो पुलिस ने जेल भेज दिया, लेकिन घोड़ों को लेकर ऊहापोह रहा. डीआईजी ने इन दोनों को बरेली पुलिस लाइंस में रखे जाने को कहा और तभी से ये घुड़साल में हैं.
गश्त में नहीं कर सकते इस्तेमाल
दोनों की सेहत पुलिस के दूसरे घोड़ों की तरह ही है. लेकिन ये केस की प्रॉपर्टी हैं, इसलिए नियमों के मुताबिक दोनों को गश्त या किसी और सरकारी काम में इनका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. उनकी सेहत के लिहाज से कभी-कभार पुलिस लाइंस के मैदान का एकाध चक्कर ज़रूर लगवा देते हैं.
दोनों घोड़ों पर 20 हज़ार महीने का ख़र्च
घुड़सवार पुलिस के सब-इंस्पेक्टर भगवती प्रसाद ने बताया कि घोड़ों का रखरखाव पुलिस की ज़िम्मेदारी है. एक घोड़े की ख़ुराक पर हर महीने क़रीब दस हज़ार रुपये ख़र्च होते हैं. ज़रूरत पड़ने इलाज-दवा के इंतज़ाम पर जो ख़र्च होता है, वह अलग है.
कवर | रैम्बो और फैंटम.
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