धान की रोपाई करते हुए रो पड़ीं सैकोट गांव की महिलाएं
गोपेश्वर | अपने खेतों में आख़िरी बार धान की रोपाई करने वाली महिलाएं इन मौक़े को यादगार बनाने के लिए जागर गा रही थीं, और गाते-गाते वे रो पड़ीं.
पुरखों के जिन खेतों में मेहनत करके वे अपने कुनबे के लिए अनाज पैदा करती आईं, अब वहाँ रेल की पटरियाँ बिछाई जानी हैं. ठीक है कि ट्रेन आएगी तो बाहर की दुनिया से राबिता रखने में सहूलियत हो जाएगी, खेतों के बदले मुआवज़ा भी मिल जाएगा, लेकिन यह अपनी ज़मीन से अलगाव की तक़लीफ़ थी जो आंसू बनकर छलक पड़ी.
दशोली ब्लॉक का सैकोट गांव गोपेश्वर से 15 किलोमीटर दूर है. इस गाँव में क़रीब डेढ़ सौ परिवार आबाद हैं, जिनकी आजीविका खेती और पशु पालन ही है. कमाने के लिए गांव छोड़कर बाहर जाने का यहां का इतिहास नहीं है.
गांव में घरों के इर्द-गिर्द दूर तक फैले खेत हैं. यहां घान की रोपाई की तैयारी भी महीने भर पहले से शुरू हो जाती है. निराई-गुड़ाई के लिए गांव भर की महिलाएं इकट्ठा होकर काम करती आई हैं. घर के बाहर यह उनके मिलने-जुलने और दुख-सुख साझा करने का ठिकाना भी होता है.
इस बार धान की रोपाई मगर गांव भर के लोगों के लिए ख़ास बन गई. सबेरे से ही खेतों में पानी लगाया और बेलों की जोड़ी के साथ ही ढोल-दमाऊं भी लेकर खेतों में पहुंचे. महिलाओं ने जीतू बगड़वाल के जागरों के साथ धान की रोपाई की. गीत-संगीत के साथ हुई इस रोपाई की तस्वीरें बनाईं, वीडियो बनाए.
दरअसल, सैकोट गांव में रेलवे का स्टेशन बनना है. रेलवे ने इसके लिए गांव की दो सौ नाली से ज़्यादा ज़मीन अधिग्रहित की है. यानी अब आगामी साल से गांव के खेतों में धान की रोपाई नहीं हो सकेगी.
अक्षत नाट्य संस्था के अध्यक्ष कमल किशोर डिमरी, विजय वशिष्ठ, हरीश सेमवाल, चंडी थपलियाल, ओम प्रकाश पुरोहित, उमेश चंद्र थपलियाल और विवेक नेगी इस मौक़े पर साथ रहे और आख़िरी रोपाई का डिज़िटल दस्तावेज़ भी तैयार किया.
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