बकस्वाहा बचाने की ख़ातिर आईयूसीएन में याचिका
बांदा | बुंदेलखंड के बकस्वाहा जंगल में हीरा खनन का मुद्दा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के बाद अब संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) पहुंच गया है. गुना के पर्यावरण कार्यकर्ता डा.पुष्पराग शर्मा ने 13 जुलाई को आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर) को एक याचिका भेजी है.
याचिका में बकस्वाहा वन क्षेत्र की जैव विविधता और पुरातात्विक महत्व के शैल चित्रों का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2.15 लाख पेड़ों के कटान से जंगली जानवरों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों को भी भारी नुकसान पहुंचेगा. जंगल के बीच बहने वाली नदी का अस्तित्व भी ख़त्म हो जाएगा.
पिछले दिनों गुना से बकस्वाहा पहुंचे पर्यावरण पैरोकारों के जत्थे को वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने रोक लिया. पर्यावरण पैरोकारों का आरोप है कि उन्हें दो घंटे तक बंधक बनाकर गांवों में घुमाया गया. इसके पूर्व इस जत्थे ने जंगल में पेड़ों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया.
बकस्वाहा जंगल, केन और बेतवा नदियों के किनारे के लाखों पेड़ों को काटने की योजना के विरोध में पीपल, नीम, तुलसी अभियान के संस्थापक डॉ. धर्मेंद्र और मुजफ्फरपुर की एक टीम 24 जुलाई से साइकिल यात्रा शुरू करेगी.
साइकिल यात्रा की शुरुआत मुजफ्फरपुर से होगी. टीम के सदस्य और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र सिद्धार्थ झा ने बताया कि साइकिल यात्रा पटना से होकर आरा, बनारस, मिर्जापुर, प्रयागराज और बांदा के रास्ते छतरपुर के बकस्वाहा जंगल पहुंचेगी. रास्ते में वे लोगों में जंगल बचाने के प्रति अलख जगाएंगे.
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