अलखराम का घोड़ी चढ़ना माधवगंज का यादगार वाक़या होगा

  • 3:08 pm
  • 2 June 2021

महोबा | पहाड़ों के सौंदर्य के बीच बसे बुंदेलखंड के इस छोटे से ज़िले के चार ब्लॉकों में एक है पनवाड़ी. इसी पनवाड़ी ब्लॉक के गांव माधवगंज में ऐसा पहली बार होगा, जब अनुसूचित बिरादरी का कोई दूल्हा घोड़ी चढ़कर अपनी दुल्हन लेने जाएगा. गांव के अलखराम अहिरवार का ब्याह 18 जून को तय हुआ है.

काशीपुरा ग्राम पंचायत में माधवगंज के साथ ही दो और गाँव हैं – करपहाड़िया और चंदनपुरा. पंचायत की आबादी क़रीब 2200 है. माधवगंज गांव में 400 यादव, 125 अहिरवार और एक घर राजपूत परिवार का है. आज तक माधवगंज में अनुसूचित बिरादरी का कोई दूल्हा घोड़ी चढ़कर बारात नहीं ले गया. जितनी भी बरातें निकली हैं, दूल्हा पैदल ही जाता रहा है. मगर घोड़ी चढ़ना अलखराम की ख़्वाहिश है.

दिल्ली की प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहे अलखराम ने साल 2018 में जैसे-तैसे इंटर पास किया. मामूली खेती-किसानी और ज़रूरत पड़ने पर मजदूरी कर लेने वाले परिवार के लिए उसका इतना पढ़ लेना काफ़ी था. तभी तो बहुत दिनों तक उन्हें परिचितों-रिश्तेदारों से बधाइयां मिलती रहीं. उनके कुछ काम किए और पैसे पाए. तब अलखराम ने नौकरी करके पैसे कमाने की सोची. कई दिन इसी कशमकश में बीत गए कि कौन-सी नौकरी करें. और फिर नौकरी देगा कौन? गांव के और लोगों को दिल्ली की राह पकड़ते देख अलखराम ने भी वहीं तक़दीर आज़माने की सोची.

अपने पिता को बताया. पांच बेटियों की शादी से फ़ारिग होकर तंगहाली का पट्टा लिए घूम रहे गयादीन ने ज़रा भी ना-नुकुर नहीं की. वह घर में कहने लगे – अच्छा है, कुछ कमाएगा तो घर के ही काम आएंगे. इसका छोटा भाई हरिओम भी ढंग से पढ़-लिख लेगा. आख़िर एक रोज़ अलखराम को लेकर वह ख़ुद स्टेशन गए और उसे ट्रेन पर चढ़ा आए.

दिल्ली दिलवालों की, अलखराम ने ऐसा सुना था. वहां पहुंचकर यह बात सच लगने लगी. ज्यादा हाथ-पांव नहीं मारने पड़े. कुछ जानने वालों ने मदद की और कुछ ख़ुद की मेहनत से एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिल गई. जी लगाकर काम किया तो कंपनी का मालिक भी ख़ुश हो गया.

गाँव के परिवेश से निकले अलखराम के लिए दिल्ली की दुनिया एकदम थी – नई जगह, नया परिवेश, किसिम-किसिम के लोग और तरह-तरह विचार. धीरे-धीरे इन सबका असर गहराने लगा. दिल्ली अलखराम की सोच-विचार में बदलाव की जगह साबित हुई. और सच कहें, तो घोड़ी चढ़ने की इच्छा भी वहीं बलवती हुई. जैस-जैसे उनकी यह इच्छा दृढ़ होती, यह संशय भी गहराता जाता कि सदियों पुरानी रूढ़ियां तोड़ पाना क्या संभव होगा?

‘हां, यह सोचकर ही परेशान हो जाता था मैं’, अलखराम ने कहा, ‘गांव में हमारे जाति-समाज में कभी कोई घोड़ी नहीं चढा़, तो क्या मुझे चढ़ने देंगे? शुरू-शुरू में बहुत परेशान रहा. लेकिन फिर सोचा कि घर वालों को अपने मन की बात बता दूं. देखते हैं कि वे क्या कहते हैं. सच कहूं तो उस समय जैसे मेरे पंख निकल आए, जब पिताजी ने कहा कि इसमें हर्ज क्या. उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी नहीं कि जो अब तक नहीं हुआ, वह आगे भी न हो. शुरुआत हो जाएगी तो आगे चलेगी ज़रूर.’

बक़ौल अलखराम, ’18 जून को शादी पड़ गई है. जो तय किया है, वह तो अब करूंगा ही. इसीलिए सोशल मीडिया पर पोस्ट करके लोगों से मदद मांगी.’

दो दिन बाद ही भीम आर्मी के जिला अध्यक्ष आकाश रावण ने घर आकर भरोसा दिलाया. कहा – ‘ख़्याल अच्छा है, यह ज़रूर होगा.’

और अगले दिन ही पूर्व मंत्री ध्रूराम आ गए. उन्होंने भी अलखराम की पीठ ठोकी.

अलखराम के घोड़ी पर चढ़ने को लेकर यों किसी ने एतराज नहीं किया है मगर उनके सशंकित पिता को लगा कि कौन जाने पुरानी सोच वाले लोग उनके समाज में कुछ नया होते हुए या रूढ़ियां टूटते न देख सकें. तो अलखराम को लेकर गयादीन महोबकंठ थाने जा पहुंचे. अर्ज़ी देकर कहा कि घोड़ी के साथ निकलने वाली बारात की हिफ़ाज़त की जाए. एसओ सुनील तिवारी ने कहा है कि ज़रूरत होगी, तो सुरक्षा ज़रूर दी जाएगी.

एडीएम राम सुरेश वर्मा ने बताया कि उन्हें कोई अर्ज़ी तो नहीं मिली मगर एसडीएम से इस बारे में बात करेंगे. प्रशासन पूरा सहयोग करेगा.

ग्राम प्रधान महीपत श्रीवास कहते हैं, इसमें बुरा क्या है. अलखराम घोड़ी ज़रूर चढ़ेगा. माधवगंज के ही बालादीन अहिरवार कहते हैं, अलखराम की पहल पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. रामकुमार यादव भी बोले, संविधान ने सभी को समान अधिकार दिए हैं. अलखराम ने किसी आशंका की बात सोचकर आवाज़ उठाई है तो सुरक्षा का इंतज़ाम होना चाहिए.

कवर | उदयपुर की एक दीवार / प्रतीकात्मक चित्र


अपनी राय हमें  इस लिंक या feedback@samvadnews.in पर भेज सकते हैं.
न्यूज़लेटर के लिए सब्सक्राइब करें.