मुनस्यारी | लाइकेन गार्डन में इंटरप्रिटेशन सेंटर बनेगा

मुनस्यारी | देश के पहले लाइकेन गार्डन में इंटरप्रिटेशन सेंटर बनाने की तैयारी है ताकि यहाँ आने वाले सैलानियों और शोधार्थियों को गार्डन में मौजूद लाइकेन की सभी क़िस्मों के बारे में विस्तार से जानकारी मिल सके. पिछले साल ही शुरू हुए लाइकेन गार्डन में अभ तक बीस हज़ार से ज़्यादा लोग पहुँचे हैं.

लाइकेन संरक्षित करने और इस पर शोध के उद्देश्य से क़रीब दो हेक्टेयर में बने इस पार्क में लाइकेन की 60 से 70 प्रजातियां ऐसी हैं, जो प्राकृतिक रूप से इस इलाक़े में पाई जाती हैं. पचास से ज़्यादा प्रजातियां बाहर से लाकर यहां रखी गई हैं. लाइकेन भूरे या पीले रंग की ऐसे वनस्पति है, जो दीवारों, चट्टानों, पेड़ की छाल और पत्थरों पर पांच हज़ार मीटर की ऊंचाई तक उगता है.

शैवाल और कवक के संयुक्त गुणों की वजह से इसे शैवाक कहा जाता है. पहाड़ों में इसे झूलाघास और पत्थर के फूल के नाम से भी पहचानते हैं. पारिस्थितिकी तंत्र में इसकी अहम भूमिका है क्योंकि लाइकेन प्रदूषण सहन नहीं कर पाते. किसी जगह पर इनके घटने या बढ़ने के आधार पर वायु प्रदूषण का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.

वन क्षेत्र अधिकारी शैलेष घिल्डियाल के मुताबिक लाइकेन के बारे में जानकारी के लिए शोधार्थी भी आ रहे हैं, सैलानियों को भी लाइकेन की प्रजातियों के बारे में विस्तार से बताया जाता है. पार्क में डायनासोर का बुत यह बताने के लिए है कि प्रकृति में लाइकेन डायनासोर काल से हैं. चिड़िया भी लाइकेन से अपने घोंसले बनाती है.

लाइकेन गार्डन के ज़रिये हिमालय के इलाक़े की पारिस्थितिकी के बारे में चेतना के प्रसार के साथ ही लाइकेन के संरक्षण में लोगों की भागीदारी तय करना भी है.


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