उत्पलेंदु चक्रवर्ती नहीं रहे
कोलकाता | बहुतेरे लोग अभी विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि उत्पलेंदु चक्रवर्ती अब इस दुनिया में नहीं है. सोमवार यानी 19 अगस्त की शाम उत्पलेंदु चक्रवर्ती को दिल का दौरा पड़ा और देखते ही देखते वे चले गए. इसके थोड़ी देर पहले ही उत्पलेंदु चक्रवर्ती चाय पी रहे थे.
बांग्लादेश में हुई थीं पैदाइश : उत्पलेंदु चक्रवर्ती का जन्म बांग्लादेश में राजशाही संभाग के पाबना जिले के शंख गांव में 1948 में हुआ था. उनके पिता निर्मल रंजन चक्रवर्ती शिक्षक थे. बाद में पिताजी का प्रभाव ऐसा पड़ा कि उत्पलेंदु चक्रवर्ती भी शिक्षक हो गए. बांग्लादेश से कलकत्ता आने के बाद उत्पलेंदु चक्रवर्ती ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्काटिश चर्च कॉलेज से स्नातक किया और फिर एक स्कूल में टीचर बन गए.
छात्र जीवन से राजनीति में थीं रुचि : उत्पलेंदु चक्रवर्ती को छात्र जीवन से राजनीति में दिलचस्पी थीं. बंगाल के पुरुलिया ज़िले में आदिवासियों के बीच भी उन्होंने समय गुजारा. बाद में सब कुछ छोड़ कर सिनेमा को अपना लिया और मूवी कैमरा हाथ में लेकर सिनेमा बनाने लग गए.
पहली फ़िल्म पर राष्ट्रपति पुरस्कार: वर्ष 1980 का आख़िरी दिन था. उससे ठीक पहले 1979 में मूवी कैमरा उठाया और फ़िल्म बनाना शुरू कर दिया. इस फ़िल्म का नाम था ‘मोयना तदंत’ (पोस्टमार्टम). यह उत्पलेंदु चक्रवर्ती की पहली फ़िल्म थीं. 28वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह में उनकी इस पहली बांग्ला फिल्म को निर्देशक की प्रथम फ़िल्म का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला और रातों-रात राष्ट्रीय फ़लक उन्हें पहचाना जाने लगा.
‘चोख’ (आई) : वर्ष 1982 आते-आते उत्पलेंदु चक्रवर्ती ने अपनी दूसरी फ़ीचर फ़िल्म शुरू की. नाम था ‘चोख’ (आई, आंख). इस फ़िल्म को भी वर्ष 1983 में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला. यह 30वां राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह था, जिसमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मकार के रूप में उत्पलेंदु चक्रवर्ती को नवाज़ा गया. इस बांग्ला फिल्म में ओमपुरी और श्यामानंद जालान ने डूबकर अभिनय किया था. अब न ओमपुरी हैं और न श्यामानंद जालान और न ही उत्पलेंदु चक्रवर्ती, पर उनकी इस फ़िल्म की तासीर को इस बात से भी समझ सकते हैं कि ‘चोख’ (आंख) को उसी वर्ष बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में भी ख़ूब सराहना मिली. और जब बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल से उत्पलेंदु लौटे, तो देश भर ख़ासकर बंगाल के घर-घर में लोग उनका नाम की चर्चा कर रहे थे.
‘देवशिशु’ : वर्ष 1985 में उत्पलेंदु चक्रवर्ती ने एक हिंदी फ़िल्म बनाई, जिसका नाम था ‘देवशिशु’. इसमें स्मिता पाटिल, ओमपुरी, रोहिणी हट्टंगड़ी, साधु मेहर और श्यामानंद जालान ने बेहद ख़ूबसूरत अभिनय किया था. काफी दमदार विषय था ‘देवशिशु’ का. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पलेंदु चक्रवर्ती की ‘देवशिशु’ भी काफी सराही गई. कई पुरस्कार भी मिले. स्विट्जरलैंड के लोकार्नो फिल्म महोत्सव में भी यह फ़िल्म सराही गई. उसके बाद वर्ष 1984 में सत्यजित राय के संगीत पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई ‘द म्यूज़िक ऑफ़ सत्यजित राय’. उत्पलेंदु की इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म की भी काफी सराहना हुई.
आख़िरी वक्त में भावनात्मक बिखराव: ढ़ेर सारी फ़ीचर फ़िल्म और नौ डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाने वाले उत्पलेंदु चक्रवर्ती आख़िरी वक्त में बिखर गए थे. कुछ महीने पहले अपने कमरे में गिर जाने से उनकी कमर की हड्डी टूट गई थीं. सांस लेने में भी उत्पलेंदु को दिक़्क़त होती थीं.
उत्पलेंदु ने दो शादियां की थीं. पहली पत्नी इंद्राणी चक्रवर्ती से काफ़ी पहले तलाक़ हो गया था और दूसरी पत्नी शतरूपा सान्याल से उनकी बनती नहीं थीं. शतरूपा सान्याल भी काफ़ी दिनों से अलग रहती थीं. इस तरह, उत्पलेंदु चक्रवर्ती भावनात्मक रूप से लगातार टूटते चले गए थे.
78 वर्षीय उत्पलेंदु चक्रवर्ती ने फ़िल्मों के निर्देशन के साथ ही कुछ फ़िल्मों की कहानियाँ भी लिखीं और कई फ़िल्मों में संगीत दिया.
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