कोठी ख़ास बाग़ सहेजना चाहते हैं नवाब रामपुर के वारिस

रामपुर | गुज़रे ज़माने की रियासत के आख़िरी नवाब रज़ा अली ख़ां के पोते नवाब काज़िम अली ख़ां उर्फ़ नवेद मियां ने कहा कि उनकी मंशा है कि रियासत की ज़ायदाद के बंटवारे के बाद सभी पक्षकारों की रज़ामंदी से ख़ासबाग़ पैलेस को नया रूप देकर पर्यटन केंद्र और होटल के रूप में विकसित किया जाए.

कहा कि देश की कई रियासतों में शासकों के वंशजों ने ऐसा किया है. इससे पैलेस संरक्षित रहे, रियासतों का गौरवशाली अतीत भी लोगों के बीच रहा और पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है.

नवाब ख़ानदान की ज़ायदाद के बंटवारे की प्रक्रिया इन दिनों ज़िला जज की कोर्ट में चल रही है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, क़रीब 2600 करोड़ की मिल्कियत का बंटवारा सोलह पक्षकारों के बीच शरीयत की रोशनी में किया जाएगा.

नवाब ख़ानदान के वारिसों में से एक और पूर्व मंत्री नवाब काज़िम अली ख़ां ने बताया कि उनकी और कई दूसरे पक्षकारों की मंशा है कि कोठी ख़ास बाग़ के नाम से मशहूर ख़ासबाग पैलेस को बंटवारे के बाद भी बेचा न जाए बल्कि इसे सहेजा जाए.

उन्होंने कहा कि ख़ासबाग पैलेस से वंशजों की भी भावनाएं जुड़ी हुई हैं. कोशिश होगी कि इसकी भव्यता बरक़रार रखते हुए इसे रामपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं की विरासत के प्रतिनिधि भवन के तौर पर सहेजा जाए. रियासत के निजी शस्त्रागार के दो हज़ार से ज़्यादा हथियार भी इसका हिस्सा होंगे.

क़रीब 54 एकड़ में फैले ख़ासबाग़ पैलेस में 205 कमरे हैं. यूरोपीय ढंग के इस महल का वास्तु शिल्प इस्लामिक-ब्रिटिश शैली का अद्भुत मेल है. रिहाइश और दफ़्तर के कमरों के साथ ही इसमें जलसाघर, सिनेमाघर भी बनाए गए.

इतालवी संगेमरमर, बर्मा से मंगाई गई सागौन और बेल्जियम के शीशों से बने फ़ानूस से सजे हॉल एक ज़माने में भव्यता और शान-ओ-शौकत की मिसाल हुआ करते थे. इसे बनाने में ही क़रीब सौ बरस लगे थे. नवाब हामिद अली ख़ां ने इसे बनवाना शुरू कराया था और नवाब रज़ा अली ख़ां के दौर में यह बनकर पूरा हुआ था.


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